Explained: नेपाल में PM प्रचंड का ‘खेला’, अब भारत विरोधी ओली के साथ मिलकर बनाएंगे सरकार! क्या सफल हुई चीन की चाल?
Explained: नेपाल की राजनीति में भी ‘खेला’ शुरू हो गया है. नेपाली पीएम प्रचंड नेपाली कांग्रेस से अलग होकर पूर्व प्रधानमंत्री ओली की पार्टी के साथ नई सरकार बनाने जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि पीएम पुष्प कमल दहल (Pushpa Kamal Dahal) ने अपने वर्तमान सहयोगी नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया है. नेपाली पीएम प्रचंड नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. ऐसे में अगर कुछ उतार-चढ़ाव हुआ तो भी सरकार गिर सकती है. अब तक नेपाल में माओवादी सेंटर, नेपाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार रही है. नेशनल असेंबली के चेयरमैन के सवाल पर देश की दो प्रमुख पार्टियों के बीच दरार बढ़ने लगी है. ऐसे में इस गठबंधन के जारी रहने पर सवाल उठ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, केपी शर्मा ओली की सीपीएन-यूएमएल पार्टी के साथ-साथ रबी लामिचाने की पार्टी आरएसपी, जेएसपी और जनमत पार्टी प्रचंड सरकार में शामिल होंगी.
गठबंधन क्यों तोड़ना चाहते हैं ‘प्रचंड’?
रिपोर्ट के मुताबिक दहल प्रचंड, वित्त मंत्री प्रकाश शरण महत (नेपाली कांग्रेस नेता) को हटाना चाहते थे. उनका कहना था कि उन्होंने 40 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है. हालांकि, प्रकाश शरण महत ने कहा कि देश की आर्थिक स्थिति पिछले साल की तुलना में अब बेहतर है. दहल की माओवादी सेंटर पार्टी और नेपाली कांग्रेस संसद के ऊपरी सदन राष्ट्रीय परिषद की कुर्सी पर भी दावा कर रहे हैं. इन्हीं सब बातों को लेकर दोनों ही पार्टियों के बीच राजनीतिक खाई बढ़ती गई. अब पीएम प्रचंड ने गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया है. वहीं नेपाली कांग्रेस पार्टी के महासचिव विश्व प्रकाश शर्मा ने कहा कि माओवादी सेंटर के साथ अब गठबंधन लगभग ध्वस्त हो गया है. पार्टी अब नई स्थिति पर चर्चा कर रही है. 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही को समाप्त करने और गणतंत्र बनने के बाद से नेपाल में 13 सरकारें रही हैं.
नेपाली कांग्रेस ने सरकार के साथ नहीं किया सहयोग: गणेश
सीपीएन-माओवादी के सचिव गणेश शाह ने कहा, “चूंकि नेपाली कांग्रेस ने प्रधानमंत्री प्रचंड के साथ सहयोग नहीं किया, इसलिए हम एक नए गठबंधन की तलाश करने को मजबूर हैं.” प्रचंड 25 दिसंबर, 2022 को नेपाली कांग्रेस के समर्थन से तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे. नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद, प्रचंड ने ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएन-यूएमएल से हाथ मिलाया है जिन्हें अब तक प्रचंड का शीर्ष आलोचक माना जाता था. ओली की पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार का समर्थन करने पर दरार के बाद पिछले साल प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.
भारत के साथ अच्छे संबंध बरकरार रख सकते हैं प्रचंड
गणेश शाह के अनुसार, सोमवार को सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष ओली ने प्रधानमंत्री आवास में पीएम प्रचंड से मुलाकात की और एक नया गठबंधन बनाने से संबंधित मामलों पर चर्चा की. विश्लेषकों के मुताबिक ओली की वापसी भले ही हो रही है लेकिन प्रचंड भारत के साथ रिश्तों में संतुलन बनाकर चल सकते हैं. प्रचंड ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने पर बल दिया है. हालांकि ओली एक बार फिर से सीमा विवाद का मुद्दा उठा सकते हैं.
चीन की नापाक चाल
हाल के दिनों में चीन को नेपाल में वामपंथी एकता पर जोर देते हुए देखा गया है. इसके पीछे की मंशा वह नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है. बहादुर देउबा को नेपाल में भारत समर्थक माना जाता है. वहीं केपी ओली पर चीनी प्रभाव नजर आता है. यही वजह है कि शी जिनपिंग की सरकार लगातार केपी ओली को सत्ता में लाना चाहती थी. वह इसमें कुछ हद तक कामयाब भी हो गई है.
भारत विरोधी हैं ओली!
बता दें कि नेपाल के पूर्व पीएम केपी ओली ने साल 2020 में नेपाल के नए नक्शों संबंधी विवाद खड़ा कर लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को अपनी सीमा में दिखाने संबंधी अपनी चाल चल दी थी. इससे पहले भी ओली ने भारत विरोधी रुख साफ कर रखा था. कोविड 19 के समय में ओली ने कहा,’चीन से आए वायरस’ की तुलना में ‘भारतीय वायरस’ ज़्यादा खतरनाक है. ओली का भारत विरोधी नज़रिया 2015 में सामने आया था, जब नेपाल में संविधान के तैयार होने की कवायद हुई. ओली इसके पक्षधर थे, लेकिन भारत ने मधेसियों के अधिकारों को लेकर इसका विरोध किया. दूसरी तरफ, नेपाल में प्रधानमंत्री की रेस में आखिरी वक्त पर ओली के खिलाफ सुशील कोइराला खड़े हो गए और नेपाल में कई लोगों ने माना कि इसके पीछे भारत की रणनीति थी.