पूर्व लोकसभा स्पीकर पीडीटी आचारी ने एक रिपोर्ट में बताया था कि संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर करीब 2.5 लाख रुपये का खर्च आता है. इसमें सांसदों के वेतन, भत्तों, सुरक्षा और अन्य प्रशासनिक खर्चे शामिल हैं. यह रकम करदाताओं के पैसों से ही चुकाई जाती है, और इसलिए संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन खर्चों का ध्यान रखना जरूरी होता है.
"ग्लोब एंड मेल" की रिपोर्ट के बाद कनाडा सरकार ने स्पष्ट किया है कि उनके पास भारतीय अधिकारियों को इस हत्या से जोड़ने वाले कोई ठोस सबूत नहीं हैं. यह बयान ऐसे समय पर आया है जब दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में कमी आई है और भारत ने कनाडा से अपने राजनयिक संबंधों में भी कटौती की है.
संबित पात्रा ने अमेरिकी जांच का हवाला देते हुए कहा, "अमेरिका में हुए एक जांच के दौरान जिन चार भारतीय राज्यों का नाम लिया गया था, उन चार राज्यों में उस समय कांग्रेस या उसके सहयोगी दलों की सरकारें थीं. ये राज्य थे - तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़."
अडानी ग्रुप ने इन आरोपों का खंडन किया है और उन्हें पूरी तरह से आधारहीन बताया है. कंपनी ने अपनी सफाई में कहा है कि वे सभी कानूनी नियमों का पालन करते हुए काम कर रहे थे और उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है.
दोनों मामलों में यह साफ हो गया है कि सरकारें जब तक कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करतीं, तब तक उन्हें बड़ी कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. बीकानेर हाउस और हिमाचल भवन की कुर्की के आदेश ने यह दिखा दिया है कि अगर बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो अदालत सख्त कदम उठा सकती है.
चुनावी माहौल में हर छोटी बात भी बड़े विवाद का रूप ले सकती है. आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या असर होगा, यह देखना बाकी है, लेकिन फिलहाल तो महाराष्ट्र चुनाव में यह दोनों मुद्दे विपक्ष और महायुति के बीच सियासी मुकाबले को और भी तीव्र बना रहे हैं.
बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी इस मुद्दे पर सपा पर जबरदस्त हमला बोला है. उन्होंने मृतका की मां का बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने सपा के समर्थकों को "लाल टोपी वाले गुंडे" बताया. अमित मालवीय ने आरोप लगाया कि ये लोग फिर से मैनपुरी में एक आतंकित माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं और राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को कमजोर कर रहे हैं.
एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आरोप लगाने वाला व्यक्ति पहले कई महीनों तक जेल में रहा है, और ऐसी स्थितियों में झूठे आरोप लगाना सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है. उन्होंने बीजेपी के स्तर को लेकर भी कड़ी आलोचना की.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कम हुई हैं. 15 सितंबर से 17 नवंबर 2024 तक पंजाब में केवल 8,404 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट की गईं, जो कि पिछले साल इस दौरान 33,082 थी.
राज्य में इस चुनाव के दौरान सबसे अहम मुद्दा समाज में बढ़ते हुए जातिवाद और आरक्षण से जुड़ी राजनीति है. मराठा समुदाय, जो राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है, लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा है. इस समुदाय में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, खासकर मराठवाड़ा क्षेत्र में.