दिल्ली-NCR में भूकंप के झटके कोई नई बात नहीं हैं. दरअसल, ये इलाका सिस्मिक जोन IV में आता है, जिसका मतलब है कि यहां भूकंप आने की संभावना काफी ज़्यादा रहती है. पिछले कुछ सालों में दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में कई बार भूकंप के छोटे-मोटे झटके महसूस किए गए हैं.
मुंबई का ये तनाव नया नहीं है, लेकिन हर बार ये देश की एकता पर सवाल उठाता है. 1960 से शुरू हुई मराठी अस्मिता की लड़ाई आज सियासी स्वार्थ की भेंट चढ़ रही है. राज और उद्धव की सियासत बिहारियों-यूपी वालों को निशाना बना रही है, लेकिन अगर ये लोग सचमुच चले गए, तो मुंबई का दिल धड़कना बंद हो सकता है.
इस दिल दहला देने वाली वारदात का पता तब चला, जब पड़ोसियों को घर के भीतर से कुछ गड़बड़ महसूस हुई. उन्होंने अंदर जाकर देखा तो सोनल और यशिका की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. तुरंत ही उन्होंने पुलिस को सूचना दी.
Wakefit समय-समय पर ऐसे इंटर्न्स हायर करता रहता है और 'स्लीप इंटर्नशिप सीज़न 5' के विनर को तो 10 लाख रुपये तक मिलेंगे. बाकी चुने गए कैंडिडेट्स को भी 2 महीने के लिए 1-1 लाख रुपये दिए जाएंगे.
नागरिक उड्डयन मंत्रालय के मुताबिक, 25 जून 2025 को AAIB की लैब में ब्लैक बॉक्स के क्रैश प्रोटेक्शन मॉड्यूल (CPM) से डेटा सफलतापूर्वक डाउनलोड कर लिया गया है. अब जांच एजेंसियों के पास वह अहम जानकारी आ गई है, जिससे हादसे की असल वजह का पता चल सकता है.
1912 में राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने 'बुल मूस' नाम की पार्टी बनाई थी. इस पार्टी ने 88 इलेक्टोरल वोट तो हासिल किए, लेकिन अगले चुनाव तक यह पार्टी टिक भी नहीं पाई. इन मिसालों से साफ है कि अमेरिका में नई पार्टियों के लिए अपनी जगह बनाना कितना मुश्किल रहा है.
राजिगंज पंचायत के वार्ड-10 स्थित टेटगामा गांव में अब मातमी सन्नाटा पसरा है. गांव की गलियों में पुलिस गश्त कर रही है, लेकिन दहशत इतनी गहरी है कि अधिकतर घरों पर ताले लटके हैं और लोग अपने घरों से गायब हैं.
निषाद समुदाय को अभी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में गिना जाता है, लेकिन वे लंबे समय से अनुसूचित जाति का दर्जा मांग रहे हैं. संजय निषाद का कहना है कि उनकी पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन ही इसी वादे पर किया था कि निषाद उप-जातियों को आरक्षण दिलाया जाएगा.
चुनाव आयोग के पास 100 से ज़्यादा रिजर्व चुनाव चिह्न हैं. आप अपनी पसंद का कोई भी चिह्न चुन सकते हैं, बशर्ते वह किसी दूसरी पार्टी को पहले से न मिला हो. एक बात का ध्यान रखें, अब पशु-पक्षियों या जानवरों से जुड़े चिह्न नहीं दिए जाते. अगर आपकी पार्टी रजिस्टर हो जाती है, तो आपको एक यूनीक कोड और आपका अपना चुनाव चिह्न मिलता है.
बिहार की सियासत में धार्मिक मुद्दे पहले भी उठते रहे हैं, लेकिन जातिगत समीकरण हमेशा हावी रहे. 1980 और 1990 के दशक में लालू यादव ने मंडल आयोग के सहारे OBC और मुस्लिम वोटरों को एकजुट किया. वहीं, BJP ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए हिंदुत्व को बिहार में लाने की कोशिश की, लेकिन उसे अकेले सत्ता कभी नहीं मिली.