Bihar News: बिहार में अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही BJP? ‘सम्राट-विजय’ पर दांव लगाने की वजह क्या

Bihar News: दक्षिण बिहार की 20 सीटें जो बीजेपी का गढ़ रही है बीते चुनाव में गठबंधन को इन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.
Samrat Vijay

डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा (फोटो- सोशल मीडिया)

Bihar News: बिहार में अब इंडिया गठबंधन टूटने के बाद सीएम नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ चुके हैं. लेकिन बीजेपी ने इस बार अपनी रणनीति बदली है और दो नए चेहरों पर पार्टी दांव खेला है. अब बीजेपी के इस नए दांव को नए नजरिए से देखा जा रहा है. इसके पीछे बीजेपी की एक बड़ी रणनीति नजर आ रही है. इस दांव के जरिए पार्टी अपने पुरानी खोई हुई जमीन को भी तलाशने में जुटी हुई है.

इसके पीछे की खास वजह दक्षिणी बिहार के इलाके को माना जा रहा है, जो बीजेपी का पुराना गढ़ रहा है लेकिन बीते विधानसभा चुनावों के दौरान इस इलाके में पार्टी ने अपनी पुरानी जमीन खो दी है. बीते साल जब बीजेपी ने बिहार में सम्राट चौधरी को पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी. तब बीजेपी का टारगेट ओबीसी वर्ग था और उसमें भी खास तौर पर कोरी-कुशवाहा वोटर्स जो अभी तक लगभग बीजेपी के खिलाफ जाते नजर आए हैं.

यादवों के खिलाफ ताश जारी

हालांकि यादवों से अलग कोरी और कुशवाहा वर्ग का बड़ा तबका है, जिनके वोटर्स नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. जातीय आंकड़ों के आधार पर देखें तो करीब सात फीसदी आबादी इनकी है, जिसपर बीजेपी की नजर है. ये वही तबका है जो यादव से अलग राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन खोज रहा है. बीजेपी ने इनके लिए नीतीश कुमार की पुरानी रणनीति को उनके ही खिलाफ इस्तेमाल कर दिया.

दरअसल, लालू यादव से पहली बार 1994 में अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में लव-कुश सम्मेलन किया था. जिसके बाद से नीतीश कुमार ने कुर्मी और कोरी वोटर्स को अपने साथ जोड़े रखा है. लेकिन सम्राट चौधरी के जरिए बीजेपी दोहरी रणनीति पर काम कर रही है. पहला तो पार्टी इस वोट बैंक को यादवों के खिलाफ अपने साथ जोड़ना चाहती है और दूसरा नीतीश कुमार के वोटर्स को तोड़कर उन्हें कमजोर करना चाहती है.

40 सालों से सक्रिय

चौधरी का परिवार बीते करीब 40 सालों से बिहार के राजनीति में सक्रिया है, ऐसे में उनकी राजनीतिक विरासत के जरिए बीजेपी इस समीकरण को साध रही है. इसी वजह से बीजेपी ने पिछले साल रोहतास में सम्राट अशोक की जयंती पर आयोजन किया था. इतना ही नहीं, पार्टी के इसी फॉर्मूले पर उपेंद्र कुशवाहा भी फीट बैठते नजर आ रहे हैं. इन दोनों नेताओं के जरिए पार्टी ओबीसी, इसमें खास तौर पर कोरी-कुशवाहा को साधने में लगी है.

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हालांकि दूसरी ओर भूमिहार वर्ग से आने वाले विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाने के पीछे एक और वजह है. दक्षिणी बिहार के ही इलाकों में इस तबके के वोटर्स की बड़ी संख्या है. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव के दौरान ये वोटर्स बीजेपी को छोड़कर महागठबंधन के साथ जाते नजर आए हैं. जिसके कारण आरा, बक्सर, औरंगाबाद, काराकाट, गया, जहानाबाद और सासाराम में बीजेपी को बड़ी हार झेलनी पड़ी थी.

बीजेपी की गढ़ में हार

इन सात लोकसभा सीटों में करीब 42 विधानसभा सीटें आती हैं. एक वक्त में ये पूरा बीजेपी का गढ़ हुआ करता था लेकिन बीते 2020 के चुनाव में पार्टी इन 42 सीटों में से केवल 6 पर जीत दर्ज कर पाई थी. इस इलाके में ही बीजेपी ने सम्राट अशोक के जयंती पर आयोजन किया और अब भूमिहार तबके को भी साधने की कोशिश की है. यानी देखा जाए तो ओबीसी और अगड़ा दोनों को एक साथ बीजेपी ने साधने की पूरी कोशिश की है.

इस इलाके की करीब 20 सीटें बीते बीस सालों से बीजेपी के लिए सेफ सीट मानी जाती रही. लेकिन लगभग इन सभी सीटों पर बीजेपी गठबंधन की बीते चुनाव में हार ने पार्टी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया था. जिसके बाद अब बीजेपी नए समीकरण के साथ इस इलाके में अपनी पुरानी खोई हुई जमीन तलाश रही है.

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