कभी लालू के बेहद करीबी रहे श्याम रजक, अब दूसरी बार RJD से टूटा रिश्ता, फिर से JDU में वापसी की अटकलें तेज
Shyam Rajak Quits RJD: बिहार के दिग्गज दलित नेता श्याम रजक ने एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल का साथ छोड़ दिया है. वे पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव के पद पर थे. गुरुवार को सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए उन्होंने पद और पार्टी से इस्तीफा का ऐलान कर दिया. ये पहली बार ऐसा नहीं हुआ है इससे पहले भी उन्होंने एक बार आरजेडी छोड़ी है. पार्टी छोड़ने की वजह बताते हुए रजक ने कविता के जरिए अपना दर्द बयां किया है. अब ऐसी अटकलें लगाई जा रही है कि श्याम रजक दूसरी बार जेडीयू में शामिल हो सकते हैं. हालांकि, इसको लेकर अभी तक उनके द्वारा कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है.
छह बार के विधायक रह चुके श्याम रजक का फुलवारी इलाके में काफी प्रभाव माना जाता है. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद को लिखे अपने इस्तीफे में श्याम रजक ने कहा, मैं राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं. अंत में एक कविता लिखा, मैं शतरंज का शौकीन नहीं था, इसलिए धोखा खा गया. आप मोहरे चल रहे थे, मैं रिश्तेदारी निभा रहा था.
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राजद से मोहभंग हो गया है- श्याम रजक
इस्तीफे के बाद पत्रकारों से बातचीत में श्याम रजक ने कहा कि राजद से मोहभंग हो गया है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार के विजन और नेतृत्व की खुलकर प्रशंसा भी की. हालांकि, उन्होंने अपनी अगली रणनीति के बारे में कुछ नहीं बताया. माना जा रहा है कि रजक जेडीयू में वापसी करेंगे. 2020 तक वो जेडीयू का हिस्सा थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने पाला बदलते हुए आरजेडी में शामिल हो गए थे. हालांकि, विधानसभा चुनाव में उन्हें पहला झटका तब लगा, जब आरजेडी ने उन्हें पारंपरिक सीट फुलवारी से टिकट देने से इनकार कर दिया. आरजेडी ने यह सीट गठबंधन की सहयोगी भाकपा (माले) एल को दे दी और उसने वहां से जीत हासिल कर ली.
आरजेडी में रहते हुए श्याम रजक को दूसरा और बड़ा झटका तब लगा जब लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्होंने दरकिनार कर दिया. हालिया लोकसभा चुनाव में वो समस्तीपुर या जमुई से चुनाव लड़ना चाहते थे. उन्होंने अपने इरादे भी जाहिर कर दिए थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें फिर से मैदान में नहीं उतारा.
लंबे समय से नाराज चल रहे थे श्याम रजक
जानकारी के मुताबिक, आरजेडी नेतृत्व से रजक वैसे तो लंबे समय से नाराज चल रहे थे. लेकिन खासतौर पर यह नाराजगी तब और बढ़ गई, जब 2022 में विधान परिषद में उन्हें टिकट देने पर विचार नहीं किया गया. यानी पहले विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला और सदन में जाने के दूसरे रास्ते (विधान परिषद) को भी बंद कर दिया गया. उसके बाद 2024 का लोकसभा चुनाव आया और पार्टी ने फिर पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. आरजेडी ने जमुई से अर्चना रविदास को मैदान में उतारने का फैसला किया. ऐसे में रजक के सामने समस्तीपुर (आरक्षित सीट) से उतरने का विकल्प बचा, लेकिन यह सीट भी अलायंस में सहयोगी कांग्रेस को दे दी गई. तब से वो जल्द पार्टी छोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे थे.
बता दें कि बिहार सरकार में पूर्व मंत्री रह चुके रजक कभी लालू यादव के बेहद करीबियों में माने जाते थे. हालांकि, लालू के बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के उभरने के बाद वो आरजेडी में हाशिए पर चले गए. आरजेडी सूत्रों बताते हैं कि रजक लंबे समय से नाराज चल रहे थे.
हमेशा चर्चा में रहती थी ‘राम-श्याम’ की जोड़ी
बिहार की राजनीति में जब लालू प्रसाद यादव संगठन से लेकर सरकार का कामकाज खुद देखते थे, उस समय राम-श्याम की जोड़ी का दबदबा माना जाता था. राम कृपाल यादव और श्याम रजक, लालू के लेफ्ट और राइट हैंड कहे जाते थे. राम और श्याम के नाम से यह जोड़ी सियासी गलियारे में इतनी चर्चा में रहती थी कि दोनों नेता अपनी किसी भी मांग को पार्टी हाईकमान से पूरा करवाने में सक्षम माने जाते थे. हालांकि, समय के साथ परिस्थितियां बदलीं और सबसे पहले राम यानी रामकृपाल यादव ने आरजेडी से एग्जिट किया और बीजेपी में शामिल हो गए. उसके बाद अब दूसरा ऐसा मौका आया, जब श्याम रजक को भी आरजेडी छोड़नी पड़ी है.
इसका प्रमुख कारण यही माना जा रहा है कि लालू यादव भले पार्टी सुप्रीमो हैं, लेकिन संगठन से जुड़े सभी निर्णय उनके बेटे तेजस्वी यादव ले रहे हैं और लालू के करीबी और पुराने भरोसेमंद साथियों की एक नहीं चल रही है. पुराने नेता आज खुद को पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं और अपने लिए ही टिकट की जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में उनके सामने एग्जिट करने या मौका मिलने तक इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं बच रहा है.