CG News: छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ के नाम पर पड़ा इस गांव का नाम, यहां के शिव मंदिर में दर्शन से हर मनोकामना होती है पूरी

CG News: बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर बालोद अर्जुन्दा मुख्य मार्ग पर जगन्नाथपुर गांव में स्थित है. एक छोटा सा शिव मंदिर जो दिखने में तो काफी छोटा है लेकिन बहुत चमत्कारी हैं. जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर के निर्माण से ही गांव का नाम रखा गया हैं.
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शिव मंदिर

CG News: बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर बालोद अर्जुन्दा मुख्य मार्ग पर जगन्नाथपुर गांव में स्थित है. एक छोटा सा शिव मंदिर जो दिखने में तो काफी छोटा है, लेकिन बहुत चमत्कारी हैं. जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर के निर्माण से ही गांव का नाम रखा गया हैं.

भगवान जगन्नाथ के नाम पर पड़ा इस गांव का नाम

यहाँ एक छोटा सा भगवान शिव का मंदिर है. जो बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर बालोद अर्जुन्दा मुख्य मार्ग पर जगन्नाथपुर गांव में स्थित है. मंदिर दिखने में तो काफी छोटा है, लेकिन इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था . बताया जाता है कि सैकड़ो शताब्दी में जगदलपुर का राजवाड़ा परिवार उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर दर्शन के लिए गये थे. जहां से वापस लौटने के दौरान विश्राम करने के लिए बांध किनारे स्थित डुवा गांव रूके. जहां रूकने पर उन्हें वहां का वातावरण पुरी के जगन्नाथ मंदिर जैसा लगा.  तब से उस गांव का नाम डुवा से बदलकर जगन्नापुर कर दिया गया.

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वातावरण को देखकर राजवाड़ा परिवार उसी गांव में रहने का मन बना लिए और छह माह तक वही रूक गये. और जलाशय किनारे दो मंदिरों का निर्माण कराया. समय के साथ साथ देखरेख के आभाव में एक मंदिर नष्ट हो गया तो वहीं दूसरा मंदिर आज भी मौजूद है. जिसमें शिवलिंग और पत्थरों से बनाये गये भगवान गणेश की प्रतिमा मौजूद है. पत्थरों से तैयार किये गये मंदिर के स्तंभों में कई तरह की आकृतियां भी बनी हुई है और मंदिर के शीर्ष पर सुदर्शन चक्र का आकार भी बना हुआ है.

यहां शिव के दर्शन से मनोकामना होती है पूरी

एक पत्थर पर सुदर्शन चक्र का आकार बना हुआ था. जो पहले बांध के किनारे हुआ करता था. ग्रामीण बताते हैं कि जो लोग बांध में नहाने जाते थे और इस पत्थर पर बैठ जाते थे, उसे वह पत्थर गोल घुमाते हुए बांध के बीच में ले जाकर डुबा देता था. जिन्हें तैरने आता था उसकी जान बच जाती थी और जो नहीं तैर पाता था उसकी जान चली जाती थी. इसलिए उस पत्थर को बांध से हटा दिया गया हैं.

मंदिर की मान्यता के अनुसार जो भी इस मंदिर में सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं उसकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है. इसलिए खासकर श्रावण के महीने में सुबह व शाम भक्त माथा टेकने पहुंचते हैं. हर साल शिवरात्रि में इस मंदिर में विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन किया जाता है.

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