Chhattisgarh News: गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में अमेरिका से आई 70 करोड़ रुपए की मशीन, पानी से लेकर कोयले की बताएगी गुणवत्ता
Chhattisgarh News: गुरु घासीदास विश्वविद्यालय यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास अमेरिका से आई 70 करोड़ रुपए की एक ऐसी महामशीन मौजूद है, जो बिलासपुर को पूरे देश में एक अलग पहचान देगी. इस मशीन का नाम न्यूक्लियर एक्सीलेटर रिसर्च महामशीन, जो पूरे भारत में सिर्फ मुंबई के नासा में रखी गई है. अच्छी बात यह है कि महामशीन से पूरे देश के वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं.
विस्तार न्यूज़ ने पहली बार बताया इसकी खासियत
सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस महामशीन को रखने के लिए एक अलग तरह का सिस्टम तैयार किया गया है. इस मशीन के लिए छोटी-छोटी गलियों के साथ एक ऐसा भवन तैयार किया गया है जो इस मशीन से निकलने वाले रेडियेटर को कंट्रोल करेगा. यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एम के त्रिपाठी के मुताबिक यह देश का सबसे हाई रेडिएटर मशीन है इसके कारण ही न सिर्फ इसकी बनावट बल्कि इसे रखने की व्यवस्था भी अलग तरह से की गई है.
सब्जेक्ट की कोई बाधा नहीं
सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस मशीन का नियंत्रण फिलहाल फिजिक्स डिपार्टमेंट ही कर रहा है, लेकिन एक अच्छी बात यह है की मशीन में रिसर्च को लेकर किसी भी तरह से विषय की बाधा नहीं है. इसमें मेडिसिन, जूलॉजी, केमिस्ट्री समेत कोई और भी डिपार्टमेंट से जुड़े प्रोफेसर और छात्र वर्क कर सकते हैं और वह इसका ज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं.
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पानी की मिनरल से लेकर कोयले की गुणवत्ता तक बताएगी मशीन
यह मशीन अपने आप में अनूठी इसलिए है, क्योंकि इसमें आप जो भी समान डालेंगे यह आपको उसकी गुणवत्ता और उसकी उम्र भी बताएगी. बड़ी-बड़ी खदानों से आया धातु भी कितना सही है, मापदंडों के अनुरूप है या नहीं यह सब बताएगी. आने वाले दिनों में इस मशीन के चलते ही पूरे देश के वैज्ञानिक जिसमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता चेन्नई और दूसरे राज्य के अलावा विदेशों से भी वैज्ञानिक जोड़ने वाले हैं जो अलग-अलग तरह से अपना अपना वर्कशॉप शुरू करेंगे.
एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड ने रोका है काम
दरअसल यह मशीन तब शुरू होगी, जब दिल्ली की परमाणु ऊर्जा डिपार्टमेंट से इसकी मंजूरी मिले. सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति आलोक चकरवाल ने बताया कि एक सप्ताह पहले ही दिल्ली से सीबीआरबी की टीम आई थी जिन्होंने मशीन को देख लिया है और वह जल्द ही इसका लाइसेंस जारी करने वाले हैं इसके बाद इसे शुरू किया जा सकता है.
रेडिएशन इतना की 30 से 40 किलोमीटर तक पड़ेगा असर
असल में इस मशीन का एक साइड इफेक्ट यह भी है, कि इसका रेडिएशन काफी दायरे तक आम जनजाति को नुकसान पहुंचा सकता है. इसीलिए ही यह चेक किया जा रहा है की कहानी इसकी संचालित होने से आम जनजीवन पर इसका कोई बुरा असर तो नहीं पड़ेगा यही कारण है कि फिलहाल एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड विभाग के अधिकारियों की मंजूरी बाकी है जिसके बाद इसे संचालित करेंगे.
काफी उपयोगी है ये मशीन
सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति आलोक चक्रवाल ने बताया कि यह रिसर्च मशीन है, जो की काफी उपयोगी है. इस मशीन से देश भर के कई वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं और आगे भी जुड़ेंगे. क्योंकि इसमें आने वाले दिनों में और भी कई तरह के शोध वर्क होंगे. एटॉमिक एनर्जी बोर्ड ने सप्ताह भर पहले यहां का जायजा लिया है और मशीन को देखा है जल्द ही लाइसेंस जारी होने के बाद यह शुरू हो जाएगी.