Chhattisgarh: बस्तर में नक्सलियों ने स्कूलों को बनाया था निशाना, नोडल अधिकारी-शिक्षा दूत… अब इस तरह छात्रों को मिल रही शिक्षा, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
Chhattisgarh News: बस्तर के हालात देश से अलग हैं. यहां शिक्षा भी किसी जंग से कम नहीं है. साल 2005 में यहां सलवा जुडूम अभियान शुरू हुआ और इसके कुछ समय के अंदर ही सिर्फ बीजापुर जिले में ही 300 से अधिक स्कूल बंद हो गए. दक्षिण बस्तर के ऐसे इलाके जो नक्सल प्रभावित थे वो एक झटके में ही 20 साल पिछड़ गए. विस्तार न्यूज़ ने करीब 500 किलोमीटर का सफर किया ताकि आप तक इन स्कूलों के बंद होने की कहानी और इन्हें वापिस शुरू करने का संघर्ष पहुंचा पाए.
बीजापुर शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर पुसनार गांव बसा है. इस गांव तक पहुंचने से पहले ही आपको यहां नक्सलियों की मौजूदगी के सबूत दिखने लगेंगे. नक्सलियों द्वारा जलाई गई गाड़ियां आज भी सड़क किनारे खड़ी हैं. पेड़ों पर नक्सली पर्चे चिपके हुए हैं. गंगालूर थाने के अंदर कई पुलिस कैंप जरूर मौजूद हैं, लेकिन जवान भी इन पर्चों को निकालने का खतरा नहीं उठाते. यहीं रास्ते में गंगालूर से कुछ आगे बद्देपारा में हमें एक खंडहर नजर आया. नक्सलियों ने इस स्कूल को साल 2005 में तोड़ दिया था. करीब 19 साल बाद अब यहां फिर से एक स्कूल खोला जा रहा है.
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बंद स्कूलों के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त
विस्तार न्यूज़ को गंगालूर के बद्देपारा में शुद्रू मिले. उन्होंने बताया कि 2005 में जब नक्सलियों ने उनके गांव का स्कूल तोड़ा उस वक्त वो चौथी क्लास में थे. नक्सलियों द्वारा स्कूल तोड़े जाने के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ गई थी. उनके साथ पढ़ रहे 50 से अधिक बच्चों ने भी इसके बाद कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा. लेकिन 20 साल बाद अब गांव में एक और स्कूल बन रहा है. शुद्रू को उम्मीद है कि उनके बच्चे तो स्कूल जा पाएंगे.
नक्सलियों के आधार वाले इलाके में बाहरी व्यक्ति का घुसना लगभग नामुमकिन होता है. ऐसे में बंद पड़े स्कूलों को वापिस शुरू करना बड़ी चुनौती थी. जिसके बाद सरकार द्वारा बंद स्कूलों के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है. जाकिर खान वो शख्स हैं जिनके जरिए बंद पड़े 300 स्कूलों में से 220 स्कूलों को वापिस शुरू किया गया है.
नक्सलियों के स्मारक के पास पढ़ते हैं बच्चे
इसके बाद हम मुश्किल सफर तय कर पुसनार गांव तक पहुंचे. यहां भी नक्सलियों ने 2005 में स्कूल तोड़ दिया था. पिछले साल तक यहां कोई स्कूल नही था. सबसे करीबी स्कूल भी करीब 15 किलोमीटर दूर था. जिसके लिए एक मुश्किल सफर तय करना पड़ता था. ऐसे में यहां प्रशासन ने पुसनार के ही युवक रितेश को शिक्षा दूत बना दिया. यहां नक्सलियों के स्मारक के बगल में 50 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं.