Chhattisgarh: 200 बेड के जिला अस्पताल में 4 महीने से ऑक्सीजन प्लांट बंद, गंभीर मरीजों को लौटा रहे डॉक्टर, प्रसूताएं भी परेशान
Chhattisgarh News: बिलासपुर के जिला अस्पताल में दो ऑक्सीजन प्लांट पिछले 4 महीने से बंद पड़े हैं. यही वजह है कि यहां गंभीर मरीजों को वापस लौटाया जा रहा है और प्रसूता महिलाओं को भटकना. यही कारण है कि यहां कई तरह की अव्यवस्थाएं हावी होती जा रही है. गंभीर बात यह है कि जिन वार्डों में बच्चों को रखा जाता है वहां भी हाई पावर सप्लाई के चलते बिजली की समस्या उत्पन्न हो गई है. यही वजह है कि जिला अस्पताल की सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल कुमार गुप्ता ने सीजी एमएससी और लोक निर्माण विभाग को दोनों मामलों को लेकर पत्राचार किया है. इस चिट्ठी में लिखा गया है कि अस्पताल की व्यवस्था और मरीजों की जिंदगी के लिए इन दोनों ही जरूरतों की नितांत आवश्यक है, हालांकि अभी तक इस मुद्दे पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों को लौटा रहे डॉक्टर, प्रसूताएं भी परेशान
जिला अस्पताल आने वाले मरीजों को डॉक्टर का इंतजार करना पड़ रहा है. जिला अस्पताल दो अलग-अलग भाग में बंटा हुआ है. पुरानी बिल्डिंग में 100 बेड का पुराना जिला अस्पताल और नई बिल्डिंग पर मातृ शिशु अस्पताल संचालित है. मातृ शिशु अस्पताल में महिलाओं की डिलीवरी होती है और नए बच्चों का जन्म होता है. जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर गुप्ता की लिखी चिट्ठी के मुताबिक मातृ शिशु अस्पताल में ट्रांसफार्मर से सप्लाई हो रही बिजली हाई पावर यानी ज्यादा वोल्टेज की है, और यही वजह है कि मातृ शिशु अस्पताल के उसे वार्ड में जहां नवजात बच्चों को रखा जाता है और उनका इलाज किया जाता है जिसे एनआईसीयू वार्ड कहा जाता है. बिजली गुल की समस्या और कई तरह की दिक्कत हो रही है. इसके अलावा ऑक्सीजन प्लांट बंद होने से उन गंभीर मरीजों को समस्या हो रही है जिन्हें इसकी जरूरत होती है.
अव्यवस्था के बाद भी जिला अस्पताल को मिला गुणवत्ता सर्टिफिकेट
जिला अस्पताल को कुछ दिन पहले गुणवत्ता को लेकर राज्य शासन ने एक सर्टिफिकेट जारी किया है जिसे लेकर अस्पताल प्रबंधन में जश्न का माहौल है लेकिन गंभीर बात यह है कि यहां बंद पड़े ऑक्सीजन प्लांट की तरफ किसी की नजर क्यों नहीं जा रही? दूसरी बात यह की हो सकता है गुणवत्ता सर्टिफिकेट में ऑक्सीजन प्लांट बंद होने का मामला ज्यादा महत्व नहीं रखता हो लेकिन यह ऑक्सीजन प्लांट मरीज की जिंदगी के लिए ज्यादा महत्व रखता है यही वजह है कि गुणवत्ता सर्टिफिकेट प्रदान करने से पहले जिम्मेदार अधिकारियों को यहां बेहतर तरीके से मुआयना करना था. जिसके बाद ही यहां की गुणवत्ता पर डॉक्टर स्टाफ को वह सर्टिफिकेट जारी करना था.
भटक रहे मरीज, डॉक्टर गायब
जिला अस्पताल शुरुआत से ही डॉक्टरों की जल्दी जाने और मरीजों के भटकने को लेकर बदनाम रहा है. यहां के नामी डॉक्टर को नोटिस और स्पष्टीकरण जैसी बातें आम है क्योंकि खुद सिविल सर्जन ने डॉक्टर को समय पर आने की हिदायत दी है. इसके बावजूद मैरिज सुमित के साथ आते हैं कि उन्हें इलाज मिलेगा लेकिन डॉक्टरों की नहीं मिलने से ना तो उन्हें इलाज मिल पाता और ना ही जांच और दूसरी समस्या का हाल यही कारण है कि भटकाव इस अस्पताल में आने वाले मरीजों का नसीब बन चुका है.
एक अस्पताल में तीन ऑक्सीजन प्लांट, फिर भी प्लांट बंद
जिला अस्पताल 200 बेड का अस्पताल है. कोविड के दौर में यहां तीन ऑक्सीजन प्लांट लगवा दिए गए. दो ऑक्सीजन प्लांट सीजीएमएससी यानी छत्तीसगढ़ मेडिकल कॉरपोरेशन की तरफ से लगवाए गए हैं और एक डीआरडीओ यानी कि केंद्र सरकार की तरफ से. कहीं ना कहीं यह बात भी अधिकारियों के कमीशन खोरी की तरफ इशारा करती है कि आखिर इस अस्पताल में इतने ऑक्सीजन प्लांट की जरूरत क्यों थी? आज स्थिति यह है कि अस्पताल प्रबंधन बाहर से सिलेंडर खरीद कर मरीज को उपलब्ध करवा रहा है. जाहिर सी बात है तीन ऑक्सीजन प्लांट के नाम पर यहां ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गए हैं, लेकिन मरीज को समय पर ऑक्सीजन के लिए भी भटकना पड़ रहा है.
इस मामले में जिले के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर प्रमोद तिवारी का कहना है. जिला अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट को सुधरवाने के लिए सीजीएमएससी को पत्राचार किया गया है, उन्होंने बताया कि जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे जा रहे हैं और जिन मरीजों को जरूरत है, उन्हें इसे उपलब्ध करवाया जा रहा है उनके मुताबिक जिला अस्पताल में प्लांट की मरम्मत सीजी एमएससी को करनी है यही वजह है कि उन्हें पत्राचार किया जा रहा है और बाकी व्यवस्थाएं भी दुरुस्त करवाई जा रही हैं.