Chhattisgarh: सारंगढ़ में है 246 साल पुराना अंग्रेजों का पहला कब्रगाह, जानिए इसके पीछे की कहानी

Chhattisgarh News: यह कब्रगाह 246 साल पुराना है. इसके अलावा इसकी एक खासियत ये भी है कि यह सारंगढ़ के अलावा पूरे भारत में कहीं नहीं है. जिसकी देखरेख अब सारंगढ़ के राज परिवार की अगुवाई में होती है.
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अंग्रेजों का कब्रगाह

Chhattisgarh News: सारंगढ़ जिले के सेमरापाली गांव में अंग्रेजों का पहला कब्रगाह स्थित है, इसे लेकर कहा जाता है कि यह कब्रगाह 246 साल पुराना है. इसके अलावा इसकी एक खासियत ये भी है कि यह सारंगगढ़ के अलावा पूरे भारत में कहीं नहीं है.

जानिए क्या है कब्रगाह की कहानी

इतिहास के पन्नो में आज भी दर्ज है कि गवर्नर ऑफ़ बंगाल ने नागपुर तक रास्ता बनाकर संधि करने के लिए 5 लोगों का दल गठित कर रवाना किया. जिसमें एलेक्जेंडर एलियट नामक व्यक्ति को 5 लोगों के नेतृत्व करने की कमान देकर रवाना किया गया, उस समय प्रत्येक प्रांत, जगहों पर तत्कालीन राजाओं, मुगलों, साम्राज्यों का राजा शासक था. उस समय जिस प्रांत या भूगोल के जिस हिस्सो में जाना होता था वहां के तत्कालीन राजाओं से अनुमति लेना पढ़ता था, जब अंग्रेज का वह दल सारंगढ़ पहुंचा तो तत्कालीन राजा से संधि कर जगह की मांगा की गई, उन्होंने कहा कि हमे यहां ठहरना है, जिस पर तत्कालीन राजा विश्वनाथ सिंह ने विचार कर उन्हें ठहरने के लिए सेमरपाली गांव के सेतु नंदी के बीच जो टापू हुआ करता था. उस जगह को चिन्हांकित कर उन्हे ठहरने के लिए दे दिया, जहां अंग्रेज के 5 लोगों का वो दल जो अगले सुबह नागपुर के लिए रवाना होना था. उसमे का मुखिया एलेक्जेंडर एलियटकी तबीयत अचानक बिगड़ने लगी. जिससे पांच दिन तक मलेरिया बुखार से ग्रसित होने के कारण उसी जगह में एलेक्जेंडर एलियट की मौत हो गई. जिस दिन मौत हुई, वो 12 सितंबर 1778 का दिन था.

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सारंगढ़ का राज परिवार करता है कब्रगाह की देखरेख

जहां गवर्नर ऑफ़ बंगाल ने सारंगढ़ के तत्कालीन राजा विश्वनाथ सिंह से जमीन की मांग की जहां एलेक्जेंडर एलियट का कब्र बन सके. जिसपर तत्कालीन राजा ने विचार विमर्श कर उसी जगह टापू को कब्रगाह बनाने के लिए अनुमति दे दी. जहां गर्वनर ऑफ बंगाल वारेन हेस्टिंग्स ने कब्र गाह बनवाया और वहा एक पत्थर से तरास कर उनकी पूरी जानकारी को अंग्रेजी में दर्शाया गया है, जो आज भी वैसे का वैसा प्रमाण है. जिसको 1950 तक एलेक्जेंडर एलियट का गार्जियन देखने आया करते थे, जहां माल्यार्पण करते थे, जिसकी देखरेख अब सारंगढ़ के राज परिवार की अगुवाई में होती है.

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