Chhattisgarh: पेड़ पर चिड़ियों की तरह घोसला बनाकर क्यों रहते हैं यहां के लोग, मजबूरी या जरुरत?

Chhattisgarh: हाथियों का यहां के गावों में इतना खौफ है कि महिलाएं शाम चार बजे ही रात के लिए खाना बनाने में जुट जाती हैं.
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आम के पेड़ पर मचान

Chhattisgarh: आपने चिड़िया और पक्षियों के घोसले के बारे में तो सुना ही होगा, देखा भी होगा, लेकिन क्या आपने कभी इंसानों के घोसले देखे हैं, नहीं ना आमतौर पर इंसानों के घोसले नहीं बल्कि घर होते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक ऐसा इलाका है, जहां इंसान घर नहीं बल्कि घोसला बना रहे हैं. ताकि वे अपने उस आशियाने में रह सकें. इसकी वजह है हाथियों का आतंक.

हाथियों ने सरगुजा संभाग में 82 लोगों को मार डाला

दरअसल, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 400 किलोमीटर दूर अंबिकापुर में जंगली हाथियों से लोग काफी परेशान हैं और पिछले तीन सालों में ही हाथियों ने सरगुजा संभाग में 82 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है. ऐसे में वहां रह रहे लोगों में भारी दहशत है, इसलिए यहां के लोग अब रात में अपने घरों को छोड़कर पेड़ों के ऊपर घोसला यानी की घर बनाकर रहने को मजबूर हैं.

हाथियों के डर से लोग घर में नहीं रहते हैं

पहले सरगुजा में नक्सलियों का ऐसा खौफ हुआ करता था और लोग घर छोड़कर शहर में रहने लगे थे. लेकिन आज लोग हाथियों के आतंक से इतने खौफ में हैं कि लोग ठीक तरह से अपनी जीवन यापन नहीं कर पा रहे हैं. हमारी विस्तार की टीम जब सरगुजा और रायगढ़ की सीमा से लगे लखनपुर जनपद के गावों में पहुंची तो, दोनों जिलों के लोगों ने जो आपबीती बताई वह परेशान कर देने वाला है. रायगढ़ के बोरो रेंज के ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 7 साल से हाथियों का इतना उत्पात बढ़ा है कि वे किचन का सामान अब घर में नहीं रखते और न खुद घर में रहते हैं.

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आम पेड़ के ऊपर मचान बनाकर रहने के लिए मजबूर

राम यादव ने बताया कि हाथी यहां जंगल में हमेशा घूमते रहते हैं और उनके मकान को तोड़कर वहां रखे आनाज खा जाते हैं. उनके परिवार की एक महिला को हाथियों ने मार डाला. वे डर से अब घर में नहीं सोते क्योंकि हाथी कब पहुंच जाए इसका कोई पता नहीं होता. इसलिए अनहोनी से बचने पेड़ के ऊपर मचान बनाये हैं और उसी में पूरा परिवार रहता है.

अंधेरा होने से पहले मचान पर चढ़ जाते हैं लोग  

हाथियों का यहां के गावों में इतना खौफ है कि महिलाएं शाम चार बजे ही रात के लिए खाना बनाने में जुट जाती हैं. उनका कहना है कि ऐसा इसलिए क्योंकि हाथी शाम ढलने से पहले भी कई बार आ धमकते हैं. इसलिए वे शाम ढलने से पहले ही खाना खाकर मचान में जाने के लिए तैयार रहते हैं. विमला यादव ने बताया कि हाथियों के कारण आसपास के सिरडाही, छुही पहाड़ सहित अन्य बस्ती के लोग परेशान हैं. हाथी फसलों को खाते हैं और 7 साल से वे गर्मी बरसात और ठंड हर मौसम में मचान में ही सोते हैं. कई बार लगता है कि यहां न रहे लेकिन खेती ही सहारा है, यहां से कहीं जायेंगे भी तो कैसे जीविकोपार्जन करेंगे.

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