धर्म, सियासत और हथकड़ी…छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ्तारी पर क्यों भड़का विपक्ष? असली खेल तो ये निकला
ननों की गिरफ्तारी से बवाल
Chhattisgarh Nuns Arrest: 25 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक नन, सिस्टर प्रीति मेरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस की गिरफ्तारी ने ऐसा सियासी बवंडर खड़ा कर दिया कि मामला अब रेलवे स्टेशन से निकलकर संसद तक पहुंच गया है. विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों पर हमला बता रहा है, राहुल गांधी ने इसे ‘गुंडा राज’ करार दिया, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख डाली, और विपक्षी सांसद छत्तीसगढ़ पहुंच गए.
दूसरी तरफ, बीजेपी नेता भी मैदान में उतर आए हैं और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इसे मानव तस्करी और धर्मांतरण का मामला बता रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर विपक्ष इसे इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना रहा है? पहले भी तो ननों की गिरफ्तारी हुई थी, फिर अब इतना हंगामा क्यों? आइए, इस सियासी ड्रामे को विस्तार से समझते हैं…
दुर्ग स्टेशन से निकली कहानी?
25 जुलाई की सुबह दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने दो ननों और एक अन्य व्यक्ति सुकमन मंडावी को तीन आदिवासी युवतियों के साथ ट्रेन में देखा. ये युवतियां नारायणपुर की थीं और ननों के साथ आगरा जा रही थीं. बजरंग दल ने आरोप लगाया कि ये लोग युवतियों को जबरन धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी के लिए ले जा रहे थे. बस, फिर क्या था? कार्यकर्ताओं ने स्टेशन पर नारेबाजी की, पुलिस को बुलाया और ननों को हथकड़ी लगाकर हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप में केस दर्ज किया, और तीनों को जेल भेज दिया. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. ननों का कहना है कि ये युवतियां अपनी मर्जी से आगरा में फातिमा अस्पताल में नौकरी के लिए जा रही थीं. उनके पास सभी दस्तावेज थे, और परिवार वालों ने भी इसकी पुष्टि की. फिर भी, बजरंग दल और पुलिस ने इसे धर्मांतरण का मामला बना दिया.
क्यों इतना शोर कर रहा है विपक्ष?
विपक्ष ने इस घटना को हाथोंहाथ लिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे ‘गुंडा राज’ बताते हुए कहा कि बीजेपी शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “छत्तीसगढ़ में दो कैथोलिक ननों को उनकी आस्था के कारण जेल में डाल दिया गया. यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है. हम चुप नहीं बैठेंगे.”
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इसे बीजेपी-RSS की साजिश बताते हुए कहा कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और पुलिस की मिलीभगत से ननों को निशाना बनाया गया. विपक्ष का तर्क है कि यह घटना संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है.
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केरल कनेक्शन
दोनों नन केरल की हैं और ‘ग्रीन गार्डन्स’ धार्मिक समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. केरल में ईसाई समुदाय की आबादी करीब 18% है, और यह मामला वहां भावनात्मक मुद्दा बन गया. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर ननों की गिरफ्तारी पर आपत्ति जताई और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की. उन्होंने कहा कि नन सिर्फ नौकरी के लिए युवतियों को ले जा रही थीं, और यह कार्रवाई गलत थी.
केरल के विपक्षी दलों, खासकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने संसद के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया. UDF सांसदों ने तख्तियां लेकर बीजेपी पर अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों का आरोप लगाया.
लोकसभा में मुद्दा उठाने की मांग
विपक्षी सांसदों ने इस मामले को लोकसभा में उठाने की मांग की है. कांग्रेस सांसद बेनी बहनन, फ्रांसिस जॉर्ज, एनके प्रेमचंदन और अन्य ने छत्तीसगढ़ पहुंचकर ननों से जेल में मुलाकात की. CPI(M) की नेता बृंदा करात भी ननों से मिलने पहुंचीं और बजरंग दल पर सवाल उठाया, “उन्हें स्टेशन पर महिलाओं को रोकने का क्या अधिकार है?” विपक्ष का कहना है कि यह मामला सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है, बल्कि बीजेपी शासित राज्यों जैसे ओडिशा, मध्य प्रदेश, और मणिपुर में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं.
चुनावी सियासत
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जिसके बाद विपक्ष को नया जोश मिला है. यह मामला विपक्ष के लिए बीजेपी को घेरने का मौका बन गया है, खासकर अल्पसंख्यक वोटरों को लुभाने के लिए. केरल और अन्य दक्षिणी राज्यों में ईसाई समुदाय का प्रभाव है. यह मुद्दा वोटों को प्रभावित कर सकता है. इस बीच , प्रियंका गांधी ने भी इस मामले की निंदा की और कहा कि यह बिना ठोस सबूत के की गई कार्रवाई है, जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला है.
बीजेपी का पलटवार
बीजेपी इस मामले को कानून का मसला बता रही है और विपक्ष पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगा रही है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा, “यह मानव तस्करी और धर्मांतरण का मामला है. नारायणपुर की तीन बेटियों को नौकरी का झांसा देकर आगरा ले जाया जा रहा था. हमारी सरकार बस्तर की बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.” सीएम साय ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि छत्तीसगढ़ शांति का टापू है, जहां ऐसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
बीजेपी नेताओं का छत्तीसगढ़ दौरा
इस मामले ने बीजेपी के अंदर भी हलचल मचा दी है. पार्टी के कुछ नेता, जैसे केरल बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने मुख्यमंत्री साय के रुख से असहमति जताई. चंद्रशेखर ने कहा, “इस मामले में धर्मांतरण का कोई सबूत नहीं है. हम ननों की रिहाई के लिए प्रयास करेंगे.”
बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया और कहा कि राहुल और प्रियंका गांधी दिल्ली से बैठकर छत्तीसगढ़ की बेटियों को क्लीन चिट दे रहे हैं, जो गलत है. बजरंग दल की जिला संयोजिका ज्योति शर्मा के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने स्टेशन पर नारेबाजी की थी. बीजेपी का एक धड़ा इसे समर्थन दे रहा है, क्योंकि धर्मांतरण उनके लिए एक संवेदनशील मुद्दा है, खासकर आदिवासी इलाकों में.
पहले भी हुई थीं गिरफ्तारियां, अब इतना बवाल क्यों?
ननों की गिरफ्तारी कोई नई बात नहीं है. 2021 में उत्तर प्रदेश के झांसी में, 2018 में झारखंड में और 2017 में मध्य प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं हुई थीं. लेकिन तब इतना सियासी तूफान क्यों नहीं उठा? इसके पीछे कई कारण हैं.
पहले की घटनाओं का पैटर्न
पहले के मामलों में, जैसे झांसी (2021) में ननों को हिरासत में लिया गया, लेकिन जांच में आरोप निराधार पाए गए, और उन्हें रिहा कर दिया गया. इन मामलों में विपक्ष ने विरोध तो किया, लेकिन यह राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा मुद्दा नहीं बना. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अनुसार, 2014 से 2024 तक ईसाइयों के खिलाफ हमले बढ़े हैं, और 2025 में पहले छह महीनों में ही 378 घटनाएं दर्ज हुईं. इस बार विपक्ष इसे एक बड़े पैटर्न का हिस्सा बता रहा है.
2024 चुनावों का असर
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जिससे विपक्ष को नई ताकत मिली. कांग्रेस और अन्य दल अब हर मौके को बीजेपी को घेरने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. यह मामला अल्पसंख्यक वोटरों को लुभाने का एक मौका है. केरल जैसे राज्यों में, जहां ईसाई समुदाय का प्रभाव है, यह मुद्दा भावनात्मक रूप से जोड़ता है. इसलिए विपक्ष इसे जोर-शोर से उठा रहा है.
इस बार राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल और प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर तुरंत प्रतिक्रिया दी, जिसने मामले को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां दिलाईं. पहले के मामलों में सोशल मीडिया का इतना प्रभाव नहीं था.
यह मामला इतना बड़ा क्यों बन गया?
छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में धर्मांतरण एक पुराना और संवेदनशील मुद्दा है. बीजेपी और हिंदू संगठन इसे अपनी राजनीति का हिस्सा बनाते हैं, जबकि विपक्ष इसे अल्पसंख्यक अधिकारों से जोड़ता है.
विपक्ष को लगता है कि यह मामला बीजेपी की अल्पसंख्यक विरोधी छवि को उजागर कर सकता है, जो भविष्य के चुनावों में उनके लिए फायदेमंद हो सकता है. वहीं, बीजेपी इसे कानून-व्यवस्था और आदिवासी हितों से जोड़कर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है.
सियासी जंग
विपक्ष इस मुद्दे को संसद में और सड़क पर उठाता रहेगा. UDF और कांग्रेस ने चेतावनी दी है कि अगर ननों को रिहा नहीं किया गया, तो वे और बड़े प्रदर्शन करेंगे. वहीं, बीजेपी के अंदर मतभेद दिख रहे हैं. जहां साय सख्ती की बात कर रहे हैं, वहीं केरल बीजेपी के नेता नरम रुख अपना रहे हैं. यह पार्टी के लिए आंतरिक चुनौती बन सकता है.
क्या है इस सियासी ड्रामे का निचोड़?
यह मामला सिर्फ दो ननों की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है. यह धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक अधिकारों और सियासी रस्साकशी का मिश्रण है. विपक्ष इसे बीजेपी की अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों के खिलाफ हथियार बना रहा है, जबकि बीजेपी इसे कानून-व्यवस्था और आदिवासी हितों से जोड़ रही है.