बीजेपी क्यों नहीं जीत पाती दिल्ली का दिल? 26 सालों से नहीं मिली है सत्ता
Delhi Election: पिछले 26 वर्षों से बीजेपी को दिल्ली में सत्ता का स्वाद नहीं मिल पा रहा. 1993 में सत्ता हासिल करने के बाद से बीजेपी सिर्फ एक बार ही जीत दर्ज कर पाई है, और उसके बाद से सत्ता से दूर है. इस बार, 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी इस बार दिल्ली की सत्ता को फिर से अपने कब्जे में कर पाएगी?
दिल्ली का जटिल वोटिंग पैटर्न
दिल्ली के सियासी मिजाज को समझना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है. बीजेपी की रणनीति देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले यहां काम नहीं करती, क्योंकि दिल्ली के लोग जाति और धर्म की सियासत से दूर रहते हैं. यहां का चुनावी माहौल अलग है, जिसमें नकारात्मक प्रचार और जातिगत राजनीति का कोई असर नहीं है. दिल्ली के चुनाव में तीन तरह के मतदान होते हैं—लोकसभा, विधानसभा और एमसीडी (नगर निगम) चुनाव—और इन तीनों में वोटिंग पैटर्न अलग होता है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वर्चस्व था, लेकिन विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दबदबा कायम किया है. यही नहीं, एमसीडी चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने अपनी ताकत दिखा दी है.
बीजेपी को मदनलाल खुराना जैसे नेताओं की तलाश
दिल्ली की सियासत में केवल पार्टी का नहीं, बल्कि व्यक्तिगत नेताओं का भी बड़ा महत्व है. 1993 में जब बीजेपी ने मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया, तो पार्टी को जीत मिली, लेकिन फिर पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर उथल-पुथल का सिलसिला शुरू हुआ. लगातार सीएम बदलने की वजह से बीजेपी का संदेश दिल्ली की जनता तक सही तरीके से नहीं पहुंच सका और परिणामस्वरूप 1998 में उसे हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद से बीजेपी दिल्ली में कोई ऐसा चेहरा नहीं उभार पाई जो आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल या कांग्रेस की शीला दीक्षित के सामने चुनौती पेश कर सके.
शीला दीक्षित और केजरीवाल का मजबूत नेतृत्व
1998 से लेकर 2013 तक शीला दीक्षित ने कांग्रेस को दिल्ली में मजबूत आधार प्रदान किया. उनके नेतृत्व में दिल्ली में कई बड़े विकास कार्य हुए. इसके बाद 2013 में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने अपनी जगह बनाई और अब तक बीजेपी इस पार्टी के सामने ठोस चुनौती पेश नहीं कर सकी.
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दिल्ली में केंद्रीय सत्ता की ताकत
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका मतलब है कि दिल्ली की सत्ता पर सीधे काबिज होने के बजाय केंद्र सरकार के पास यहां कानून व्यवस्था और मास्टर प्लान बनाने का अधिकार है. यही वजह है कि बीजेपी दिल्ली के नेताओं को ज्यादा महत्व नहीं देती, क्योंकि उसे अपने राष्ट्रीय नेतृत्व को प्राथमिकता देनी होती है. इसके चलते दिल्ली में बीजेपी को कभी भी कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं आया जो स्थानीय जनता में पकड़ बना सके.
क्या 2025 होगा बदलाव?
बीजेपी अब हर हाल में 2025 के विधानसभा चुनाव में अपनी साख को फिर से मजबूत करना चाहती है. इस बार पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी इस बार दिल्ली की सियासत में बदलाव ला सकेगी, या फिर आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल का दबदबा कायम रहेगा.
कुल मिलाकर, दिल्ली में बीजेपी की राह आसान नहीं है. राजनीति का यह खेल अब यह सवाल उठा रहा है कि क्या बीजेपी इस बार अपनी रणनीतियों में कोई बड़ा बदलाव लाकर दिल्ली के दिल को जीत सकेगी, या फिर केजरीवाल और उनकी पार्टी की जादूगरी जारी रहेगी?