दिल्ली की राजनीति के ‘चेस मास्टर’ हैं पूर्वांचली…ऐसे ही नहीं ‘दही-चूड़ा’ खा रहे हैं BJP के बड़े नेता!
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पूर्वांचली वोर्टस को साधने में जुटीं सभी पार्टियां
Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का वक्त करीब आ चुका है और एक बार फिर राजधानी के दिलचस्प चुनावी महासमर में एक खास वर्ग की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी – और वो हैं पूर्वांचली मतदाता. अगर आप दिल्ली की सियासत को थोड़ी गहराई से समझते हैं, तो जानते होंगे कि ये वही वर्ग है, जो कभी बीजेपी, कभी कांग्रेस और कभी आम आदमी पार्टी के लिए ताकतवर वोट बैंक बनकर सामने आया है. अब सवाल ये है कि इस बार इन मतदाताओं की तरफ से कौन सी पार्टी की झोली में वोट गिरेंगे? तो आइए, जानें कि क्या खास है इस बार पूर्वांचलियों के वोट में, और क्यों हर पार्टी इस वर्ग को साधने के लिए जी-जान से जुटी है.
पूर्वांचली वोटर्स का दबदबा
दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब 16 सीटों पर पूर्वांचली मतदाताओं का प्रभाव निर्णायक माना जाता है. वहीं कई और सीटों पर भी इनकी संख्या ठीक-ठाक है. इन सीटों पर अगर 20% से ज्यादा वोटर्स पूर्वांचली हैं, तो उनकी तरफ से किया गया एक छोटा सा निर्णय भी पार्टी की किस्मत पलट सकता है. ऐसा नहीं कि ये केवल संख्या में ही ज्यादा हैं, बल्कि ये वोटर हर पार्टी के लिए तगड़ा सिरदर्द भी हैं. हर बार चुनाव आते ही, ये लोग अपनी ताकत का एहसास कराते हैं.
संगम विहार, बुराड़ी, किराड़ी में सबसे ज्यादा पूर्वांचली
दिल्ली में कुल मतदाता संख्या लगभग 1.55 करोड़ है, जिसमें पूर्वांचल के मतदाताओं की संख्या लगभग 46 लाख के आसपास है. यह संख्या दिल्ली के कुल मतदाता संख्या का लगभग 30% बनाती है, जो इस वर्ग को चुनावों में एक शक्तिशाली निर्णायक बनाती है. दिल्ली के 16 विधानसभा क्षेत्रों में पूर्वांचलियों की संख्या 20% से अधिक है, और इन सीटों पर इनका प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इनमें प्रमुख सीटें जैसे देवली, संगम विहार, बुराड़ी, किराड़ी, विकासपुरी, पटपड़गंज, राजेंद्र नगर, करावल नगर, और लक्ष्मी नगर शामिल हैं, जहां पूर्वांचली मतदाताओं का एक मजबूत वोट बैंक है. इन सीटों पर पूर्वांचलियों की संख्या 20% से 40% तक है, और कई सीटों पर यह संख्या 30% तक भी पहुंच जाती है, जो उन्हें वोटिंग में निर्णायक ताकत बनाती है. ऐसे में यह वोटर इस बार पार्टी की नीयत और विकास के वादों के आधार पर अपने मतों का निर्णय लेने का मन बना चुके हैं.
पूर्वांचलियों की समस्याएं?
अब बात करते हैं उस चीज़ की, जो इस बार पूर्वांचली मतदाताओं के दिल में खलबली मचा रही है. दरअसल, ये वोटर अब वादों के बजाय असल मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. इनकी जिंदगी में जो मुद्दे सबसे ज्यादा अहम हैं, उन्हें सुलझाना जरूरी है. आइये जानते हैं, इस बार वो कौन से मुद्दे हैं, जिन पर पूर्वांचली मतदाता सबसे ज्यादा सख्त हैं.
सड़कों की हालत
पूर्वांचली वोटर्स अक्सर जिस इलाके में रहते हैं, वहां की सड़कों की हालत देखकर उनका खून खौलता है. गड्ढों से भरी सड़कों पर चलना किसी परीक्षा से कम नहीं है. उनका ये गुस्सा इस बार शायद चुनाव में पार्टी को भारी पड़े. इसलिए वो इस बार उन उम्मीदवारों को वोट देने के लिए तैयार हैं, जो सड़कों को सही करने का ठोस वादा करें और काम भी करें.
गंदा पानी और कचरे का ढेर
दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं जहां पीने का पानी गंदा होता है. इसके अलावा, सफाई के नाम पर भी कई जगहों पर कोई काम नहीं होता. कचरे के ढेर और नालियों की सफाई न होना, ये समस्याएं आम हैं. और अब इस बार यह पूर्वांचली वोटर नहीं चाहता कि वो इसी गंदगी में जिंदगी भर घुसे रहें. साफ पानी, साफ सड़के और साफ मोहल्ला – यही है उनका नया सपना.
बच्चों के भविष्य का सवाल
क्या आपको याद है, जब हम छोटे थे, तो सपने देखा करते थे कि अच्छे स्कूल में पढ़ाई होगी, ताकि अच्छी नौकरी मिल सके? वही सपना अब पूर्वांचली परिवारों के बच्चों के लिए भी है. इन लोगों के लिए अच्छी शिक्षा और रोजगार के मौके दो अहम मुद्दे हैं. अच्छे स्कूल, लाइब्रेरी, और स्वास्थ्य सुविधाएं – ये सब वही चीजें हैं जो ये लोग अगले पांच सालों में चाहते हैं.
‘वादा नहीं, नीयत देखेंगे’
दिल्ली के पूर्वांचलियों की दिलचस्पी इस बार कुछ अलग है. पहले लोग सिर्फ वादों पर भरोसा कर लिया करते थे, लेकिन अब उनकी सोच में बदलाव आया है. उनका कहना है कि अब सिर्फ वादे नहीं, बल्कि उम्मीदवार की नीयत और काम करने की क्षमता को देखेंगे. सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स के जरिए उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी निकालने के बाद, वही उम्मीदवार चुना जाएगा जो उनके मुद्दों को उठाए और उनका समाधान करें.
किसी ने सही कहा है, “जो बात दिल से निकले, वो जनता तक जरूर पहुंचेगी.” अब दिल्ली के पूर्वांचली मतदाताओं के दिल से निकलने वाली यह बात किसी पार्टी के लिए खुशियों की बौछार बना सकती है, या फिर उनकी गलत नीयत पार्टी के लिए आफत बन सकती है.
तीन पार्टियों की दौड़
अब सवाल ये है कि इस बार कौन सा दल पूर्वांचली वोटर्स का दिल जीत पाएगा? तो चलिए, जानते हैं, इस बार पार्टियों की रणनीति क्या है:
बीजेपी: पुराने साथी और मुफ्त के वादे
बीजेपी के लिए पूर्वांचली वोट हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं. पार्टी ने इस वर्ग को साधने के लिए मनोज तिवारी, रवि किशन, और दिनेश यादव निरहुआ जैसे स्टार प्रचारक उतारे हैं, जिनका सीधा संबंध यूपी और बिहार से है. बीजेपी के मुताबिक, यह वर्ग उनके साथ है, क्योंकि पीएम मोदी की सरकार ने हमेशा से पूर्वांचलियों का सम्मान किया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी के 5 टिकट और पूर्वांचलियों को यह पर्याप्त लगेगा?
हालांकि, पार्टी ने केजरीवाल की राह पर चलते हुए मुफ्त के वादे की बौछार कर दी है. पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने जेडीयू नेता संजय झा के दही-चूड़ा कार्यक्रम में शिरकत कर पूर्वांचलियों तक अपना संदेश पहुंचाया. वहीं आम आदमी पार्टी ने भी पूर्वांचली मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए कई घोषणाएं की हैं. दिल्ली में बड़ी संख्या में रहने वाले पूर्वांचली मतदाताओं का प्रभाव कई सीटों पर निर्णायक माना जा रहा है. दोनों दल यूपी-बिहार कनेक्शन का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
बीजेपी को हो सकता है बड़ा नुकसान!
इस बार के चुनाव में बीजेपी को एक मोर्चे पर नुकसान की भी संभावना है. दरअसल, दिल्ली चुनाव में अगर शहजाद पूनावाला का विवादित बयान पूर्वांचली समुदाय के गुस्से का कारण बन गया, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. सोचिए, अगर लाखों यूपी-बिहार से आए हुए लोग, जो दिल्ली की गलियों में अपनी पहचान बना चुके हैं, एकजुट होकर विरोध में खड़े हो गए, तो दिल्ली की राजनीति में तूफान आ सकता है. आम आदमी पार्टी ने इसे अपना नया चुनावी हथियार बना लिया है और अब सवाल यह है कि क्या बीजेपी अपनी पुराने राजनीतिक सांचे में बंधी रहेगी या इस बार खुद को पूर्वांचलियों के गुस्से से बचा पाएगी? हालांकि, शहजाद पूनावाल ने समय रहते सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि शहजाद ने ऐसा क्या कर दिया?
पिछले दिनों एक टीवी डिबेट में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने आप के प्रवक्ता ऋतुराज झा को ‘झाटू’ बोल दिया था. इसके बाद पूर्वांचली और मिथिलांचल के लोगों ने मोर्चा खोल दिया.
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कांग्रेस: पुराने रास्ते पर नई कोशिश
कांग्रेस की हालत थोड़ी नाजुक है, लेकिन पार्टी ने अपने पुराने रिश्ते को फिर से मजबूत करने की कोशिश की है. पार्टी ने कन्हैया कुमार जैसे चेहरे को आगे किया है, जो पूर्वांचलियों के बीच एक मजबूत पहचान रखते हैं. कांग्रेस के लिए यह मुश्किल चुनौती है, क्योंकि पहले वाली रणनीतियां अब उतनी असरदार नहीं रही हैं. हालांकि, राहुल ने जिम्मेदारी खुद की कंघों पर ले रखी है, और चुनावी मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं.
AAP: ‘मुफ्त’ के वादे और उन्नति की कोशिश
आम आदमी पार्टी ने हमेशा से पूर्वांचलियों को अपनी प्राथमिकता में रखा है. मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा के साथ, पार्टी ने इस बार गोपाल राय, विनय मिश्रा, और अनिल झा जैसे पूर्वांचली चेहरों को टिकट दिए हैं. पार्टी ने अपनी ओर से यह दावा किया है कि उनका काम बोलता है, और वही काम इस बार पार्टी को चुनाव जीताने में मदद कर सकता है.
पूर्वांचली का ‘फाइनल फैसला’
तो अब सवाल ये है कि इस बार पूर्वांचली मतदाता किसके साथ जाएगा? क्या वे पुराने मुद्दों और वादों से प्रभावित होंगे, या फिर अपनी नई सोच और उम्मीदों के साथ वोट देंगे? हर पार्टी इस बार पूरी ताकत से पूर्वांचलियों को अपने पाले में लाने के लिए जुटी हुई है, और अब देखना ये है कि उनका फैसला किस पार्टी की झोली में जाएगा. जवाब का इंतजार है – 2025 के चुनाव में शायद वही वोटिंग के सबसे दिलचस्प पल होंगे!