सरकारी जीप, यशपाल कपूर और अदालत में हार…आतिशी से पहले इंदिरा गांधी की कहानी

राजनारायण के आरोपों की अदालत में सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसले ने पूरे देश को चौंका दिया. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की रायबरेली सीट को अवैध करार दे दिया. अदालत ने यह पाया कि चुनाव प्रचार में सरकारी जीपों का इस्तेमाल और अन्य तरीके से चुनावी नियमों का उल्लंघन किया गया था.
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और आतिशी

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और आतिशी

Delhi Election 2025: दिल्ली के चुनावी मौसम में राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मची हुई है. एक तरफ आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी ताकत झोंकने में लगी हैं. वहीं मुख्यमंत्री आतिशी को लेकर एक नया विवाद सामने आया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी वाहन का चुनाव प्रचार के दौरान खूब इस्तेमाल किया है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि यह चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है. यह विवाद अभी तूल पकड़ रहा है. आतिशी के खिलाफ FIR भी दर्ज कर ली गई है.

हालांकि, इसी बहाने 1971 के चुनावी इतिहास में एक ऐसी ही घटना, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सत्ता को संकट में डाल दिया था. यह कहानी है जीपों और एक सरकारी अधिकारी यशपाल कपूर की, जिनकी वजह से इंदिरा गांधी को अदालत में मुंह की खानी पड़ी थी. तो आइए, इस कहानी को विस्तार से जानते हैं.

1971 का लोकसभा चुनाव

1971 का साल भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. यह वही समय था जब इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था और उनका विरोधी गुट ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा बुलंद कर रहा था. चुनावी मैदान में मुकाबला गरम था. कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी हुई थी. एक पक्ष की अगुवाई इंदिरा गांधी कर रही थीं और दूसरे पक्ष में मोरारजी देसाई थे. चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली. इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की, लेकिन उनके विरोधी गुट के नेता, समाजवादी नेता राजनारायण ने हार मानने के बजाय एक कानूनी रास्ता अपनाया.

राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनावी नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया. उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने सरकारी वाहनों का इस्तेमाल किया था. मामले की जांच शुरू हुई, और इंदिरा गांधी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो गईं.

जीप और यशपाल कपूर की कहानी

इंदिरा गांधी के चुनाव प्रचार के लिए यशपाल कपूर ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यशपाल कपूर रायबरेली में OSD (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) के तौर पर कार्यरत थे. उन्होंने इंदिरा गांधी के चुनाव प्रचार के लिए कई सरकारी जीपों का प्रबंध किया था. कपूर ने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ था. उनके इस्तीफे की अधिसूचना नहीं जारी हुई थी, और इसी आधार पर राजनारायण ने अदालत में याचिका दायर की.

राजनारायण का आरोप था कि यशपाल कपूर ने सरकारी जीपों का इस्तेमाल कर चुनावी प्रचार को अवैध रूप से बढ़ावा दिया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि कपूर ने वोटरों को रजाई, धोती और शराब वितरित की थी, और कई जीपों को किराए पर लिया था. यशपाल कपूर ने यह दावा किया था कि जब वह इंदिरा गांधी के चुनावी एजेंट थे, तब तक वह इस्तीफा दे चुके थे, लेकिन अदालत में यह साबित हुआ कि उनका इस्तीफा आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं हुआ था.

इंदिरा गांधी को मिली हार

राजनारायण के आरोपों की अदालत में सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसले ने पूरे देश को चौंका दिया. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की रायबरेली सीट को अवैध करार दे दिया. अदालत ने यह पाया कि चुनाव प्रचार में सरकारी जीपों का इस्तेमाल और अन्य तरीके से चुनावी नियमों का उल्लंघन किया गया था. इसके परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी पर छह साल का चुनावी प्रतिबंध लगा दिया गया, जो उनके लिए एक बड़ा झटका था. यह फैसला न केवल उनके लिए बल्कि देश की राजनीति के लिए भी एक अहम मोड़ साबित हुआ.

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क्यों महत्वपूर्ण है यह घटना?

यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाती है कि चुनावी प्रक्रिया में अनुशासन और नियमों का पालन कितना अहम होता है. इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ उठी यह चुनौती एक बड़े कानूनी विवाद का कारण बनी, जिससे चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करना एक गंभीर अपराध साबित हुआ.

आज के संदर्भ में जब हम मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ सरकारी वाहन के इस्तेमाल के आरोपों की चर्चा करते हैं, तो यह 1971 के उस घटनाक्रम को याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है. उस समय इंदिरा गांधी की गलती ने उन्हें अदालत में हार दिलाई, और शायद यह एक चेतावनी भी है कि किसी भी सरकारी अधिकारी या नेता के लिए चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करना महंगा साबित हो सकता है.

1971 का चुनाव और उसके बाद का कानूनी विवाद भारतीय राजनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ. इंदिरा गांधी के खिलाफ यह कानूनी लड़ाई न केवल उनके लिए बल्कि देश की राजनीतिक प्रणाली के लिए भी एक बड़ी सीख थी.

आतिशी पर जो आरोप लगे हैं, वह इंदिरा गांधी के समय के उन विवादों से काफी मेल खाते हैं, जहां सरकारी संसाधनों का चुनावी प्रचार में इस्तेमाल हुआ था. यह घटना बताती है कि सत्ता में बैठे किसी भी नेता को नियमों का उल्लंघन करने से बचना चाहिए, क्योंकि अगर वह ऐसा करते हैं तो उन्हें चुनावी और कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है.

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