पहली बार पर्दे पर कौन बना था भगत सिंह? 70 साल पहले आई ‘शहीद’ की फिल्म ने सिनेमा की धारा ही बदल दी!

शहीद पर बनी पहली फिल्म
Shaheed Diwas: 23 मार्च, 1931—यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अद्वितीय नायक भगत सिंह की शहादत के रूप में इतिहास के पन्नों में अंकित है. यह वही दिन था, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत के इस वीर सपूत को फांसी की सजा दी थी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगत सिंह की शहादत के बाद उनकी जिंदादिली और क्रांतिकारी विचारों को पहली बार फिल्मी पर्दे पर कैसे उतारा गया?
शहादत के बाद, फिल्मी पर्दे पर भगत सिंह की कहानी सबसे पहले 1954 में दिखायी गई थी? यह जानकर शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन यही सच है. आइए जानते हैं कि पर्दे पर भगत सिंह की पहली फिल्म का क्या असर हुआ और कैसे इस फिल्म ने बॉलीवुड को क्रांतिकारी हीरो की कहानियों का खजाना दिया.
पहली बार पर्दे पर भगत सिंह का अवतार
1954 में डायरेक्टर जगदीश गौतम ने फिल्म ‘शहीद-ऐ-आजम’ बनाई, जिसमें प्रेम अदीब ने भगत सिंह का किरदार निभाया. यह फिल्म न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक भगत सिंह के जीवन को दर्शाती थी, बल्कि इसने एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया. प्रेम अदीब की शानदार एक्टिंग और फिल्म की संजीदगी ने दर्शकों के दिलों में भगत सिंह की छवि को मजबूती से बैठा दिया. इस फिल्म का प्रभाव इतना गहरा था कि इसके बाद भगत सिंह की कहानी पर फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू हो गया और लगभग हर दशक में उनकी शहादत पर फिल्में बनती रही.
भगत सिंह पर बनी अन्य प्रमुख फिल्में
इसके बाद 1960 के दशक में भगत सिंह की जिंदगी पर शम्मी कपूर की फिल्म ‘शहीद भगत सिंह’ (1963) आई, जिसमें शम्मी कपूर ने भगत सिंह का किरदार निभाया. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट रही. लेकिन फिल्मी पर्दे पर भगत सिंह की छवि को एक नई दिशा मिली जब मनोज कुमार ने 1965 में ‘शहीद’ नाम की फिल्म बनाई, जो आज भी भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा मानी जाती है.
फिर साल 2002 में अजय देवगन की फिल्म ‘द लेजेंड्स ऑफ भगत सिंह’ आई, जिसने भगत सिंह की वीरता और उनके संघर्ष को एक नई गहराई दी. राजकुमार संतोषी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने न केवल अजय देवगन के अभिनय को सराहा, बल्कि भगत सिंह के चरित्र को एक नई युवा पीढ़ी से भी जोड़ा. इसी साल सनी देओल की फिल्म ‘शहीद’ भी रिलीज हुई, जिसमें उन्होंने भगत सिंह के संघर्ष को बखूबी प्रदर्शित किया.
भगत सिंह की विचारधारा
भगत सिंह न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे विचार भी रखे, जो आज भी प्रासंगिक हैं. वह मानते थे कि भारतीय समाज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा सामाजिक और मानसिक स्वतंत्रता की आवश्यकता है. उनके जीवन पर आधारित फिल्मों ने उनके इन विचारों को लोगों तक पहुंचाया. इन फिल्मों ने न केवल भगत सिंह की जीवन गाथा को जीवित रखा, बल्कि नई पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम और उसके उद्देश्यों के बारे में गहराई से सोचने पर भी मजबूर किया.
पर्दे पर क्यों हैं भगत सिंह?
भगत सिंह की फिल्मी छवि ने भारतीय सिनेमा में एक अहम स्थान बना लिया है. वह केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणा स्त्रोत भी बन गए हैं. फिल्म मेकर्स ने हर दशक में उनकी जिंदगी को अपनी फिल्मों में दिखाकर यह साबित किया कि उनकी विरासत सिर्फ किताबों में ही नहीं, बल्कि फिल्मों के माध्यम से भी जीवित रहेगी. और शायद यही कारण है कि आज भी जब किसी को प्रेरणा की आवश्यकता होती है, तो भगत सिंह की फिल्में उनके दिल में जोश और देशभक्ति का अलाव जलाती हैं.
भगत सिंह की शहादत को 70 साल से भी अधिक समय बीत चुका है, लेकिन उनकी गाथा आज भी जीवित है. सिनेमा के जरिए भगत सिंह ने अपनी शहादत के बाद भी देशवासियों के दिलों में अपनी जगह बनाई है. उनकी फिल्मों ने हमें यह सिखाया कि सत्य और न्याय के लिए संघर्ष करना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता. और यही वजह है कि भगत सिंह पर बनने वाली फिल्मों का सिलसिला आज भी जारी है.