तंजानिया में विरोध प्रदर्शन से लेकर ब्लॉकबस्टर ‘डॉन’ और ‘बिल्ला’ बनने तक…एक सिनेमाई चमत्कार की अनकही कहानी

शूटिंग शुरू हुई, लेकिन मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. सीमित संसाधनों और तंग बजट के बीच फिल्म को पूरा करना एक बड़ा जोखिम था. फिर एक ऐसी त्रासदी हुई, जिसने सबको झकझोर दिया. शूटिंग के दौरान सेट पर एक दीवार गिरने से नरीमन ईरानी की दुखद मृत्यु हो गई, लेकिन चंद्रा ने हार नहीं मानी.
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डॉन और बिल्ला की कहानी

Bollywood Story: 1966-67 का साल, जब तंजानिया की सड़कों पर छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, तब एक ऐसी कहानी की शुरुआत हो रही थी, जो दशकों बाद बॉलीवुड और तमिल सिनेमा को एक अमर कृति और एक सुपरस्टार देने वाली थी. यह कहानी है ‘डॉन’ (1978) की, जो न केवल बॉलीवुड की सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक बनी, बल्कि तमिल सिनेमा में रजनीकांत को भी सुपरस्टार बना दिया. इस कहानी में सपने, दुख, साहस और सिनेमाई जादू का जबरदस्त घोल है.

तंजानिया में विरोध प्रदर्शन

1966 के अंत में तंजानिया सरकार ने एक नया कानून पारित किया, जिसमें स्नातक छात्रों के लिए राष्ट्रीय सेवा अनिवार्य कर दी गई. इस फैसले के विरोध में दार एस सलाम के यूनिवर्सिटी कॉलेज में खूब बवाल हुआ. छात्रों ने इस कानून को अन्यायपूर्ण मानते हुए सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. यह प्रदर्शन न केवल तंजानिया के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, बल्कि एक ऐसी कहानी का बीज भी बो गया, जो बॉलीवुड के सुनहरे पर्दे पर चमकने वाली थी.

दार एस सलाम में साल 1930 से रह रहे बरोट परिवार इस प्रदर्शन के बाद काफी चिंतित था. परिवार के दो बड़े बेटे पहले ही इंग्लैंड जा चुके थे, और अब परिवार चाहता था कि उनका सबसे छोटा बेटा चंद्रा बरोट भी इंग्लैंड चला जाए. लेकिन चंद्रा के दिल में कुछ और ही सपने पल रहे थे. वह अपनी बहन कमल बरोट से मिलने भारत आए. उस समय कमल बरोट बॉम्बे में हिंदी फिल्मों की एक जानी-मानी गायिका थीं. यह यात्रा चंद्रा के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुई. बॉम्बे की चमक-दमक और सिल्वर स्क्रीन की दुनिया ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया.

बॉलीवुड में पहला कदम

चंद्रा ने 1970 में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया और मनोज कुमार की फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में उनके सहायक के रूप में काम शुरू किया. मनोज कुमार उस समय भारतीय सिनेमा में देशभक्ति और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के लिए मशहूर थे. मनोज कुमार ने चंद्रा की प्रतिभा को पहचाना. चंद्रा जल्द ही उनके शिष्य बन गए और ‘शोर’ (1972) और ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974) जैसी फिल्मों में उनकी सहायता की. इस दौरान मनोज कुमार ने भी अपने शिष्य को फिल्म निर्माण की बारीकियां सिखाईं.

‘रोटी कपड़ा और मकान’ की शूटिंग के दौरान चंद्रा की मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई, जिसकी कहानी ने उनके जीवन को नई दिशा दी. सिनेमैटोग्राफर नरीमन ईरानी भी इस फिल्म में काम कर रहे थे, लेकिन नरीमन का जीवन उस समय संकट में था. 1972 में उनकी फिल्म ‘जिंदगी-जिंदगी’, जिसमें सुनील दत्त और नूतन जैसे बड़े सितारे थे, बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई थी. इस असफलता ने नरीमन को भारी कर्ज में डुबो दिया. कर्जदाताओं का दबाव और आर्थिक तंगी ने उन्हें बिल्कुल हताश कर दिया था.

‘डॉन’ का जन्म

नरीमन ने अपनी दुखभरी कहानी मनोज कुमार को सुनाई. मनोज ने सुझाव दिया कि नरीमन एक नई फिल्म बनाएं और इसके कलेक्शन से अपना कर्ज चुकाएं. इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए निर्देशक के रूप में चंद्रा बरोट को चुना गया. यह चंद्रा के लिए एक सुनहरा मौका था, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं.

फिल्म का बजट बेहद सीमित था. ऐसे में ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के सितारे अमिताभ बच्चन और जीनत अमान ने नरीमन की मदद के लिए इस फिल्म में काम करने का फैसला किया. दिग्गज अभिनेता प्राण भी इस नेक काम के लिए साथ आए. स्क्रिप्ट के लिए मशहूर लेखक की जोड़ी सलीम-जावेद से संपर्क किया गया. उन्होंने एक ऐसी कहानी दी, जिसे इंडस्ट्री के कई निर्माताओं ने पहले खारिज कर दिया था. यह कहानी थी ‘डॉन’ की. एक अपराधी और उसके हमशक्ल की रोमांचक कहानी.

शूटिंग शुरू हुई, लेकिन मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. सीमित संसाधनों और तंग बजट के बीच फिल्म को पूरा करना एक बड़ा जोखिम था. फिर एक ऐसी त्रासदी हुई, जिसने सबको झकझोर दिया. शूटिंग के दौरान सेट पर एक दीवार गिरने से नरीमन ईरानी की दुखद मृत्यु हो गई, लेकिन चंद्रा ने हार नहीं मानी. उन्होंने नरीमन के सपने को पूरा करने का संकल्प लिया और फिल्म को अंत तक पहुंचाया.

प्रचार के लिए भी पैसे नहीं!

‘डॉन’ 12 मई 1978 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई. लेकिन रिलीज के समय हालात इसके पक्ष में नहीं थे. बजट खत्म होने के कारण फिल्म का कोई प्रचार नहीं हो सका. इसके अलावा, यह यशराज फिल्म्स की ‘त्रिशूल’ के सिर्फ दो हफ्ते बाद रिलीज हुई थी. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार और शशि कपूर जैसे सितारे थे. ‘त्रिशूल’ उस समय बॉक्स ऑफिस पर छाई हुई थी. आलोचकों ने ‘डॉन’ को खारिज कर दिया, और इसे फ्लॉप घोषित कर दिया गया.

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. चंद्रा ने अपनी फिल्म अपने गुरु मनोज कुमार को दिखाई. मनोज ने महसूस किया कि फिल्म का दूसरा भाग बहुत तनावपूर्ण है और दर्शकों को राहत देने के लिए इसमें एक हल्का-फुल्का गाना होना चाहिए. बस फिर क्या था. यहीं से जन्म हुआ किशोर कुमार के ‘खइके पान बनारस वाला’ गाने का. इस गाने ने गेम चेंज कर दिया.

‘खइके पान बनारस वाला’ का जादू

‘खइके पान बनारस वाला’ ने रिलीज के बाद धूम मचा दी. यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि लोग सिर्फ इसे सुनने के लिए सिनेमाघरों में उमड़ने लगे. आज की भाषा में कहें तो यह गाना ‘वायरल’ हो गया. इस गाने ने ‘डॉन’ को न केवल बॉक्स ऑफिस पर नई जान दी, बल्कि इसे 1978 की तीसरी सबसे बड़ी हिट बना दिया. अमिताभ बच्चन का किरदार डॉन और उसके हमशक्ल विजय दर्शकों के दिलों में बस गया. फिल्म की सफलता के बाद कलाकारों ने अपना पारिश्रमिक लिया और आय का एक बड़ा हिस्सा नरीमन ईरानी की विधवा को उनके कर्ज चुकाने के लिए सौंप दिया गया. यह एक ऐसी कहानी थी, जिसमें सिनेमा ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि एक परिवार की जिंदगी को भी संवारा.

‘बिल्ला’ और रजनीकांत का उदय

‘डॉन’ की सफलता ने इसे कई भाषाओं में रिलीज करने का फैसला लिया गया. इसमें तेलुगु, मलयालम और यहां तक कि पाकिस्तानी संस्करण कोबरा शामिल थे. लेकिन सबसे शानदार था तमिल रीमेक ‘बिल्ला’. बेंगलुरु के मराठी मूल के शिवाजी राव गायकवाड़ (रजनीकांत) ने 1975 में तमिल सिनेमा में डेब्यू किया था. शुरुआती सफलता के बावजूद नकारात्मक भूमिकाओं और लगातार सुर्खियों के तनाव ने उन्हें 1970 के दशक के अंत में फिल्में छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था.

निर्माता के. बालाजी और उनके बेटे सुरेश ‘डॉन’ का रीमेक बिल्ला बना रहे थे. उन्होंने इस फिल्म के लिए रजनीकांत को चुना. बिल्ला (1980) में रजनीकांत ने अमिताभ की शैली की नकल करने के बजाय किरदार को अपने अनूठे अंदाज में पेश किया. उनकी स्टाइल और स्क्रीन प्रजेंस ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. 26 जनवरी 1980 को रिलीज हुई बिल्ला रजनीकांत की उस समय की सबसे बड़ी हिट बनी और उन्हें तमिल सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया.

एक अमर विरासत

‘डॉन’ और ‘बिल्ला’ की कहानी सिर्फ सिनेमाई सफलता की कहानी नहीं है. यह सपनों, सहानुभूति और साहस की कहानी है. तंजानिया के विरोध प्रदर्शनों से शुरू होकर, एक युवा चंद्रा बरोट के बॉलीवुड में कदम रखने, नरीमन ईरानी के कर्ज को चुकाने के लिए बनी डॉन और रजनीकांत के सुपरस्टार बनने तक, यह कहानी सिनेमा की ताकत को बताती है.

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