अल पचिनो से अल्लू अर्जुन तक…माफिया रोल्स और ‘तगड़े मर्दों’ को क्यों पसंद कर रहे हैं दर्शक?

फिल्मी दुनिया को करीब से जानने वाले लोगों ने समय-समय पर कई बातें कही हैं. इन जानकारों के मुताबिक, इटली में 1930 के दशक में माफिया पर आधारित फिल्में बनाई गईं, लेकिन 1970 से 2000 के बीच इन फिल्मों का एक सिलसिला शुरू हुआ, जिसने दर्शकों के बीच माफिया फिल्मों को एक अलग पहचान दिलाई.
अल पचिनो, अल्लू अर्जुन

अल पचिनो, अल्लू अर्जुन

Pushpa 2: दशकों से माफिया और सिनेमा का रिश्ता बहुत ही गहरा रहा है. इस रिश्ते की शुरुआत किसी खास तारीख से नहीं हुई, और न ही इसका कोई अंत नजर आता है. कहते हैं, इटली में माफिया पर आधारित फिल्में पूरी दुनिया में छाईं, लेकिन बाद में हॉलीवुड ने इस पर अपनी पकड़ बना ली. 1930 के दशक में शुरू हुआ यह सफर, ‘लिटिल सीज़र’ और ‘स्कारफेस’ जैसी फिल्मों से होते हुए 70 के दशक में ‘गॉडफादर’ और 90 के दशक में ‘गुडफेलाज’ जैसी फिल्मों तक पहुंच गया. लेकिन यह सफर यहीं खत्म नहीं हुआ, क्योंकि माफिया पर आधारित फिल्मों की चमक और आकर्षण समय के साथ बढ़ता ही गया.

फिल्म इतिहासकारों के मुताबिक, जब हॉलीवुड में माफिया फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ी, तो इसने पूरी दुनिया में एक नई लहर चला दी. कुछ समय पहले, यह विचार करना मुश्किल था कि क्या माफिया फिल्मों के अलावा किसी और प्रकार की फिल्में दर्शकों के दिलों में इतनी गहरी छाप छोड़ सकती हैं. लेकिन माफिया का यह आकर्षण निरंतर बढ़ता गया और आज भी यह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी धाक जमाए हुए है.

क्यों राउडी के पीछे दीवाने हैं दर्शक?

आज के समय में जब हम माफिया पर आधारित फिल्मों की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमें याद आता है अल पचिनो का ‘गॉडफादर’. यह फिल्म न केवल एक गैंगस्टर फिल्म थी, बल्कि इसने सत्तासीन परिवारों और उनके बीच शक्ति के संघर्ष को बड़े ही अनोखे तरीके से पेश किया था. अमेरिकन फिल्म निर्माता फ्रांसिस फोर्ड कोपोला का मानना था कि ‘गॉडफादर’ सिर्फ गैंगस्टरों पर बनी एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह एक शक्तिशाली परिवारों के बीच शक्ति के हस्तांतरण पर आधारित कहानी है.

फिल्मी दुनिया को करीब से जानने वाले लोगों ने समय-समय पर कई बातें कही हैं. इन जानकारों के मुताबिक, इटली में 1930 के दशक में माफिया पर आधारित फिल्में बनाई गईं, लेकिन 1970 से 2000 के बीच इन फिल्मों का एक सिलसिला शुरू हुआ, जिसने दर्शकों के बीच माफिया फिल्मों को एक अलग पहचान दिलाई. खासकर क्वेंटिन टारेंटिनो और मार्टिन स्कॉर्सेसी जैसे दिग्गज फिल्मकारों ने इस शैली को अपनी फिल्मों के जरिए नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. टारेंटिनो की ‘पल्प फिक्शन’ और ‘रेज़र्वॉयर डॉग्स’ जैसी फिल्में आज भी माफिया फिल्मों की मिसाल मानी जाती हैं.

माफिया फिल्मों में ग्लैमर और संघर्ष का संगम

माफिया फिल्मों का आकर्षण सिर्फ उनके कहानी और हिंसा में नहीं था, बल्कि इसमें शामिल एक्टर्स और निभाए गए तगड़े किरदारों में भी था. अल पचिनो, रॉबर्ट डी नीरो, जो पेस्की, और जॉन ट्रैवोल्टा जैसे दिग्गज अभिनेताओं ने इन फिल्मों में जो किरदार निभाए, वह दर्शकों के दिलों में हमेशा के लिए बस गए. इन फिल्मों में दिखाए गए सशक्त पात्र, उनकी ताकत और नजाकत, उनके कपड़े, सिगार, शराब और उनके आस-पास की आकर्षक दुनिया दर्शकों को अपनी ओर खींचती थी.

भारत में भी माफिया और गैंगस्टर पर आधारित फिल्मों का खासा असर पड़ा. बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन का ‘डॉन’ और शाहरुख़ खान का ‘डॉन’ इस बात के उदाहरण हैं कि माफिया फिल्मों का भारतीय सिनेमा में कितना बड़ा प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा, राजनीकांत जैसे दक्षिण भारतीय सुपरस्टार्स के माफिया किरदारों ने भी सिनेमा प्रेमियों के बीच अपना एक खास स्थान बना लिया है.

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आल्लू अर्जुन और ‘पुष्पा 2’, माफिया की नई मूरत

अब बात करते हैं एक नए सितारे, जो इन दिनों बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में अपनी धाक जमा रहा है. हम बात कर रहे हैं अल्लू अर्जुन की, जो अपनी फिल्म ‘पुष्पा 2’ के साथ दर्शकों के बीच वापसी कर रहे हैं. अल्लू अर्जुन की ‘पुष्पा: द रूल’ ने रिलीज होते ही बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया है और यह फिल्म भारत के सभी भाषाओं में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन सकती है.

‘पुष्पा 2’ में अल्लू अर्जुन का किरदार किसी माफिया डॉन से कम नहीं है. उनका किरदार न सिर्फ ताकतवर है, बल्कि उसमें एक नर्मी और कमजोरियां भी हैं जो दर्शकों को और भी जोड़ देती हैं. उनका यह किरदार माफिया फिल्मों के परंपरागत सांचे में फिट बैठता है, लेकिन साथ ही उन्होंने इसे एक नया मोड़ भी दिया है. उनकी एक्टिंग और फिल्म का प्रेजेंटेशन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है, और यही कारण है कि ‘पुष्पा 2’ ने लोगों का दिल जीत लिया है.

माफिया फिल्मों से क्यों आकर्षित होते हैं दर्शक

माफिया फिल्मों का आकर्षण बहुत ही गहरा है. यह फिल्मों दर्शकों को एक अलग दुनिया में ले जाती हैं, जहां अपराध, राजनीति, प्यार और प्रतिशोध के बीच एक कठिन संतुलन होता है. माफिया फिल्में न सिर्फ एक्शन और ड्रामा से भरपूर होती हैं, बल्कि इन फिल्मों में दिखाए गए पात्रों का संघर्ष और उनका मानवतावादी पक्ष भी दर्शकों को बेहद आकर्षित करता है.

इसका कारण यह है कि माफिया फिल्मों में दिखाए गए किरदार समाज के खिलाफ खड़े होते हैं, लेकिन उनके भीतर एक इंसानियत भी होती है, जो उन्हें और भी रोचक बना देती है. ऐसे किरदारों के जीवन में हर पल खतरों का सामना करना होता है, लेकिन उनका संघर्ष और उनके फैसले दर्शकों के दिलों को छू जाते हैं.

‘पुष्पा 2’ जैसे फिल्में आज के दौर के दर्शकों को पुराने माफिया फिल्मों की याद दिलाती हैं, लेकिन साथ ही इनमें नए किस्से और किरदार भी होते हैं जो दर्शकों के दिलों में जगह बना लेते हैं. अल्लू अर्जुन की ‘पुष्पा 2’ इस बात का उदाहरण है कि माफिया फिल्में अभी भी अपनी पूरी ताकत से दर्शकों को आकर्षित करती हैं. तो अब आपको क्या करना है? थिएटर का रुख करें और ‘पुष्पा 2’ का अनुभव लें. एक बात और…अगर थिएटर जाने का मन न करे तो जुगाड़ू बनिए और घर में ही देख डालिए…

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