ना सात फेरे, ना मांग में सिंदूर…फिर भी विधवा की तरह गुजारी पूरी जिंदगी, एक्ट्रेस नंदा कर्नाटकी की अनकही कहानी
नंदा कर्नाटकी
Nanda Karnataki Untold Story: सिनेमा की दुनिया में कुछ कहानियां ऐसी होती हैं, जो फिल्मी पर्दे से ज्यादा दिल को छूती हैं. ऐसी ही एक कहानी है 70 के दशक की मशहूर अभिनेत्री नंदा कर्नाटकी की, जिन्होंने अपनी एक्टिंग से लाखों दिलों पर राज किया, लेकिन प्यार में उनकी जिंदगी अधूरी सी रह गई. ना सात फेरे, ना मांग में सिंदूर, फिर भी उन्होंने पूरी जिंदगी एक विधवा की तरह गुजारी. आइए, जानते हैं उनकी जिंदगी की वो अनकही दास्तान, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी है.
बचपन से शुरू हुआ सिनेमा का सफर
नंदा का जन्म 8 जनवरी 1939 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था. महज 7 साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ गया. परिवार की जिम्मेदारी छोटी सी नंदा के कंधों पर आ गई. ऐसे में उन्होंने फिल्मों की दुनिया में कदम रखा. 1948 में फिल्म मंदिर में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट डेब्यू करने वाली नंदा ने 1956 में तूफान और दिया में लीड रोल निभाया. इस फिल्म की कामयाबी ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. जब जब फूल खिले, गुमनाम, और इत्तेफाक जैसी फिल्मों में उनकी मासूमियत और दमदार एक्टिंग ने दर्शकों को दीवाना बना दिया. करीब तीन दशक तक नंदा ने बॉलीवुड पर राज किया, लेकिन उनकी निजी जिंदगी उतनी रंगीन नहीं थी.

प्यार की वो अधूरी कहानी
नंदा ने अपने करियर पर फोकस रखा और प्यार व रिश्तों से हमेशा दूरी बनाए रखी. लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. मशहूर डायरेक्टर मनमोहन देसाई, जिन्होंने अमर अकबर एंथनी और नसीब जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं, वो नंदा से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और सगाई तक बात पहुंच गई. नंदा की जिंदगी में पहली बार प्यार की बहार आई, लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन न टिक सकी. 1994 में मनमोहन देसाई की अचानक मौत ने नंदा को तोड़कर रख दिया. खबरों के मुताबिक, मनमोहन की मौत एक हादसे में हुई, जिसने नंदा के सपनों को चकनाचूर कर दिया. इस सदमे से वो कभी उबर नहीं पाईं. उन्होंने शादी न करने का फैसला लिया और बाकी की जिंदगी सफेद साड़ी में गुजार दी, जैसे कोई विधवा अपनी जिंदगी जीती है.

प्यार की मिसाल बन गई नंदा
नंदा की कहानी सिर्फ दुख की नहीं, बल्कि उनके प्यार की सच्चाई की भी है. उन्होंने मनमोहन के लिए अपने दिल में वो जगह हमेशा खाली रखी. इंडस्ट्री में उनकी सादगी और समर्पण की मिसाल दी जाती थी. 25 मार्च 2014 को नंदा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है. नंदा सिखा गईं कि प्यार सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि दिल में किसी को जिंदा रखने का नाम है. उनकी अधूरी प्रेम कहानी आज भी हिंदी सिनेमा के गलियारों में गूंजती है.
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