गांजा, शराब और नींद…ऐसे ही नहीं सड़क पर नाच रही है ‘मौत’, Road Accident को लेकर सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट
प्रतीकात्मक तस्वीर
Road Accidents: भारत की सड़कों पर हर साल लाखों जिंदगियां हादसों की भेंट चढ़ रही हैं. तेज रफ्तार, खराब सड़कें या ओवरलोडिंग को तो हम अक्सर दोष देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन हादसों के पीछे कुछ और भी बड़े विलेन हैं? एम्स ऋषिकेश की ताजा रिसर्च ने चौंकाने वाला खुलासा किया है. शराब, गांजा और नींद की कमी सड़क हादसों के सबसे बड़े जिम्मेदार हैं.
हादसों का असली कारण क्या है?
एम्स ऋषिकेश के ट्रॉमा सेंटर में 383 हादसे के शिकार ड्राइवरों पर की गई स्टडी ने सबको हिलाकर रख दिया है.
- 57% ड्राइवर शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे. यानी हर दूसरा हादसा शराब की वजह से!
- 18% ड्राइवर गांजा या दूसरी नशीली दवाओं के नशे में थे.
- 14% ड्राइवर तो शराब और ड्रग्स, दोनों के नशे में धुत्त थे.
- और 21% ड्राइवरों को दिन में जरूरत से ज्यादा नींद (EDS) की समस्या थी, यानी गाड़ी चलाते वक्त झपकी लेने की आदत.
- 26% ड्राइवर थकान और नींद की कमी से जूझ रहे थे.
सोचिए, अगर सड़क पर चलने वाला ड्राइवर नशे में हो या थकान से चूर हो, तो क्या वो गाड़ी को कंट्रोल कर पाएगा? बिल्कुल नहीं! ये स्टडी बताती है कि सड़क हादसे सिर्फ खराब सड़कों या ट्रैफिक नियम तोड़ने की वजह से नहीं हो रहे, बल्कि नशा और नींद की कमी भी उतने ही बड़े गुनहगार हैं.
साइलेंट किलर है नींद की झपकी
आपने सुना होगा, “थक गया हूं, बस 2 मिनट की झपकी ले लूं.” लेकिन यही झपकी सड़क पर मौत का कारण बन रही है. परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि 27% हादसे ड्राइवर की नींद की वजह से होते हैं. कई ड्राइवरों ने खुलासा किया कि वो 24 से 30 घंटे तक लगातार गाड़ी चलाते हैं, जबकि नियम कहता है कि एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा ड्राइविंग नहीं होनी चाहिए. ट्रक और बस ड्राइवरों की जिंदगी कितनी मुश्किल है, ये कोई नहीं देखता. ढाबे पर 10 मिनट की झपकी, फिर सड़क पर वापस. और हां, कुछ ड्राइवर तो नींद भगाने के लिए गांजा तक पी लेते हैं, लेकिन यही जुगाड़ उन्हें हादसे की ओर धकेल देता है.
नियम हैं, पालन कौन करे?
भारत में नियम सख्त हैं. एक ड्राइवर को हफ्ते में 45 घंटे से ज्यादा गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं. लेकिन हकीकत? निजी कंपनियां ड्राइवरों से 220-250 किलोमीटर रोज चलवाती हैं. सड़क सुरक्षा परिषद के आंकड़े चीख-चीखकर कहते हैं कि 40-45% हादसे थकान और नींद की वजह से होते हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी कई बार कह चुके हैं कि ड्राइवरों की थकान को गंभीरता से लेना होगा. लेकिन सवाल ये है कि नियमों का पालन कौन करवाएगा?
भारत में हर साल 1.35 लाख लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं और 50 लाख से ज्यादा घायल होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें तो भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सड़क हादसों से मौत का खतरा अमीर देशों से तीन गुना ज्यादा है. एम्स के डॉ. रवि गुप्ता कहते हैं, “नशा और नींद की कमी को नजरअंदाज करना सड़क सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है.” उनकी सलाह है कि ट्रकों और बसों में ड्राइवर अलर्ट सिस्टम लगाए जाएं और नशे में गाड़ी चलाने वालों का लाइसेंस तुरंत रद्द हो. इस खतरनाक सिलसिले को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
सख्त निगरानी: ड्राइवरों के ड्यूटी घंटों पर कड़ाई से नजर रखी जाए.
हेल्थ चेकअप: ड्राइवरों की नियमित नींद और स्वास्थ्य जांच हो.
कठोर सजा: नशे में ड्राइविंग पर तुरंत टेस्ट और सजा का प्रावधान.
कंपनियों की जिम्मेदारी: ओवरटाइम कराने वाली कंपनियों को भी दंड मिले.
जागरूकता अभियान: नशे या नींद में गाड़ी चलाना हत्या जैसा अपराध है, ये बात हर ड्राइवर तक पहुंचे.
लंबे रूट्स पर चलने वाले ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी आसान नहीं. 30-35 घंटे लगातार गाड़ी चलाना, ढाबों पर 10 मिनट की झपकी और साल में बस 20-25 दिन घर जाने का मौका. कई ड्राइवर गांजा इसलिए पीते हैं ताकि नींद न आए, लेकिन यही आदत उन्हें और उनके साथ सड़क पर चलने वालों को खतरे में डाल देती है. सड़क हादसे सिर्फ आंकड़े नहीं, ये टूटी हुई जिंदगियां हैं.