संन्यासी बनते-बनते कैसे ‘छोटे सरकार’ बन गए अनंत सिंह? भाई की विरासत से दुलारचंद हत्याकांड तक की खूनी दास्तां
अनंत सिंह की पूरी कहानी!
Anant Singh Story: बिहार की राजनीति में ‘बाहुबली’ शब्द की मिसाल बने अनंत सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं. विधानसभा चुनाव के ठीक बीच मोकामा क्षेत्र में जनसुराज समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद उनकी पूरी जिंदगी फिल्मी सीनों से कम नहीं लग रही. कभी संन्यासी बनने हरिद्वार चले गए, तो कभी जेल की हवा खाते हुए भी चुनाव जीत लिए. उनके खिलाफ दर्ज सैकड़ों मामले, सूरजभान सिंह से चली आ रही पुरानी रंजिश और बड़े भाई दिलीप सिंह से मिली राजनीतिक विरासत, ये सब मिलकर अनंत सिंह को बिहार का सबसे विवादास्पद चेहरा बनाते हैं.
भाई की हत्या ने बदल दी किस्मत, संन्यासी से बन गए बाहुबली
अनंत सिंह का जन्म 1 जुलाई 1961 को पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल के नदवां गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ. भूमिहार ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अनंत चार भाइयों में सबसे छोटे थे. उनके पिता चंद्रदीप सिंह किसान थे, लेकिन 1980 के दशक में बिहार में जातीय संघर्ष और माओवादी उग्रवाद ने उनके परिवार को तबाह कर दिया. सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या माओवादियों ने कर दी. अनंत सिंह उस वक्त संन्यास लेने के चक्कर में अयोध्या और हरिद्वार घूम रहे थे.
भाई की मौत की खबर सुनते ही वे लौट आए और खुद ही इंसाफ करने का फैसला लिया. परिवार ने पुलिस पर भरोसा न करने की सलाह दी, क्योंकि महीनों बीत गए लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अनंत ने नदी पार जाकर हत्यारों को ढूंढ निकाला. कहा जाता है कि उन्होंने ईंट-पत्थरों से एक हत्यारे को कुचलकर मार डाला. यह पहला खूनी कदम था, जिसने अनंत को अपराध की दुनिया में धकेल दिया. धीरे-धीरे वे ‘मोकामा का डॉन’ बन गए. उनके समर्थक उन्हें ‘रॉबिन हुड’ कहते हैं, क्योंकि उन्होंने जातीय गुंडों से किसानों की फसलें बचाईं. लेकिन विरोधी उन्हें ‘छोटे सरकार’ कहकर तंज कसते हैं.
भाई दिलीप सिंह से मिली विरासत
अनंत की बाहुबली छवि के पीछे सबसे बड़ा हाथ उनके बड़े भाई दिलीप सिंह का था. 1980 के दशक में दिलीप कांग्रेस विधायक श्याम सुंदर धीरज के लिए बूथ कब्जाने और गुंडागर्दी का काम करते थे. 1989 में धीरज के अपमान से आहत होकर दिलीप ने 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर धीरज के खिलाफ मैदान संभाला. अनंत ने भाई को सपोर्ट किया और दिलीप मोकामा से विधायक बने. लालू प्रसाद यादव की सरकार में वे मंत्री भी रहे. दिलीप की मौत 2006 में हार्ट अटैक से हो गई. 2000 के चुनाव में वे सूरजभान सिंह से हार चुके थे. इसके बाद अनंत ने परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली.
2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू से जुड़कर वे पहली बार मोकामा से विधायक बने. अनंत ने भाई की गलतियों से सीखा, वे जनता के दरवाजे पर पहुंचे, जबकि दिलीप कभी मुंह नहीं खोलते थे. 2005 (फरवरी और अक्टूबर), 2010, 2015 और 2020 में वे लगातार पांच बार विधायक चुने गए. 2015 में निर्दलीय लड़े, तो 2020 में आरजेडी से. लेकिन 2022 में यूएपीए मामले में सजा मिलने पर उनकी विधायकी गई और पत्नी नीलम देवी ने सीट संभाली. अनंत की संपत्ति 37 करोड़ रुपये बताई जाती है, जिसमें घोड़े, हाथी और विदेशी कारें शामिल हैं.
सूरजभान से चली आ रही रंजिश
अनंत सिंह की सबसे पुरानी दुश्मनी सूरजभान सिंह से है. सूरजभान भी भूमिहार बाहुबली हैं. 2000 के चुनाव में सूरजभान ने निर्दलीय लड़कर दिलीप सिंह को पटक दिया. तब से मोकामा ‘टाल’ क्षेत्र में जमीन, वर्चस्व और सत्ता की लड़ाई चल रही है. सूरजभान 1990 के दशक में दिलीप के शागिर्द थे, लेकिन 2000 में बगावत कर दी. अनंत ने इसे निजी तौर पर लिया. 2004 में सूरजभान बलिया से सांसद बने. 2025 के चुनाव में यह रंजिश फिर भड़की. जेडीयू से अनंत लड़ रहे हैं, तो आरजेडी ने सूरजभान की पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया. दुलारचंद हत्याकांड के बाद दोनों गुटों में फायरिंग हुई. अनंत ने सूरजभान पर हत्या का आरोप लगाया, तो सूरजभान ने अनंत को ‘रावण’ कहा. मोकामा अब जाति और धनबल की जंग का अखाड़ा बन गया है. सूरजभान पर 60 से ज्यादा केस हैं, अनंत पर 28.
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दर्ज मामलों का बोझ
अनंत सिंह के खिलाफ अपराध का ग्राफ हमेशा ऊंचा रहा. 2025 के हलफनामे में 28 लंबित मामले दर्ज हैं, जिसमें हत्या, रंगदारी, आर्म्स एक्ट, चोरी शामिल है. पुराने रिकॉर्ड में 38 केस बताए जाते हैं. 1980 से 2000 तक मोकामा, बाढ़, पंडारक जैसे थानों में 36 मामले दर्ज हुए. 2014 में बाढ़ कॉलेज मोड़ पर मारपीट, 2019 लोकसभा चुनाव में 80-100 समर्थकों के साथ हिंसा. 2020 में AK-47 और बुलेटप्रूफ जैकेट बरामद. 2022 में यूएपीए के तहत 10 साल की सजा मिली, लेकिन बाद में बरी. सोनू-मोनू गैंग से रंजिश में 2025 में गोलीबारी का केस भी दर्ज है.
जेल से कैसे चुनाव जीत जाते हैं अनंत सिंह
अनंत सिंह की जेल यात्राएं चुनाव से जुड़ी रहीं. 2020 विधानसभा चुनाव में आर्म्स एक्ट केस में जेल में बंद होने के बावजूद आरजेडी के टिकट पर लड़े और 35,000 वोटों से जीते. 2024 में AK-47 केस में बरी होकर जेल से बाहर आए. 2025 में सोनू-मोनू गोलीकांड में जनवरी से अगस्त तक बेउर जेल में रहे, हाईकोर्ट से जमानत मिली. 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान पैरोल पर 15 दिन बाहर रहे. जेल से ही वे इलाके को कंट्रोल करते रहे.
दुलारचंद हत्याकांड में अनंत की भूमिका?
बिहार चुनाव 2025 का सबसे बड़ा विवाद मोकामा से ही है. 30 अक्टूबर को जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या हुई. आरोप है कि अनंत के समर्थकों ने पहले पैर में गोली मारी, फिर गाड़ी चढ़ा दी. पोस्टमॉर्टम में कार्डियोरेस्पिरेटरी फेलियर से मौत कही गई. दुलारचंद के पोते नीरज के बयान पर अनंत समेत पांच पर FIR दर्ज हुई. अनंत ने उल्टा पीयूष पर केस किया. चुनाव आयोग के निर्देश पर सीआईडी ने जांच की.
1 नवंबर को पटना SSP कार्तिकेय शर्मा की टीम ने बाढ़ के कारगिल मार्केट से अनंत को गिरफ्तार किया. साथ में मणिकांत ठाकुर और रंजीत राम भी पकड़े गए. SSP ने कहा, “अनंत मुख्य आरोपी हैं, घटना उनकी मौजूदगी में हुई.” कुल 83 गिरफ्तारियां, दो थानेदार निलंबित. अनंत ने साजिश का आरोप लगाया, लेकिन पुलिस ने सबूतों का हवाला दिया. कोर्ट में पेशी के बाद रिमांड संभव. यह गिरफ्तारी एनडीए के लिए झटका है.
अनंत सिंह की कहानी बिहार की उस राजनीति की याद दिलाती है, जहां बाहुबल सत्ता का आधार बनता है. क्या यह गिरफ्तारी उनके राजनीतिक सफर का अंत है या नया मोड़? मोकामा की धरती ही इसका फैसला करेगी.