क्या होता है रंगदार, किसे कहते हैं रंगदारी? जानिए बिहार चुनाव में छाए इस शब्द की सारी कहानी

What Is Rangdar And Rangdari: 2025 के चुनाव में यह मुद्दा फिर से इसलिए उभरा है क्योंकि एनडीए इसे आरजेडी के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बनाकर पेश कर रहा है.पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में साफ कहा कि आरजेडी वाले इंतजार कर रहे हैं कि उनकी सरकार आए और अपहरण, रंगदारी का पुराना धंधा फिर से शुरू हो जाए.
Bihar Election 2025

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान नजदीक आते ही राजनीतिक गलियारों में एक शब्द ने जबरदस्त गर्मी ला दी है, वो है रंगदारी. यह सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि 1990 के दशक में राज्य के एक डरावने दौर यानी कथित ‘जंगल राज’ का प्रतीक बन गया है. एक तरफ एनडीए (NDA) गठबंधन इसे विरोधी दल पर हमले का सबसे बड़ा हथियार बना रहा है, तो दूसरी तरफ विपक्ष इसे केवल चुनावी हथकंडा बताकर खारिज कर रहा है. आखिर यह ‘रंगदारी’ क्या बला है? ‘रंगदार’ कौन होते हैं और क्यों यह मुद्दा विकास, शिक्षा और रोजगार जैसे अहम मुद्दों पर भी भारी पड़ रहा है? आइए सबकुछ आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं.

क्या है ‘रंगदारी टैक्स’ और कौन कहलाता है ‘रंगदार’?

बिहार के संदर्भ में, ‘रंगदारी’ सीधे तौर पर अवैध वसूली (Extortion) को कहते हैं. इसे आम भाषा में ‘हफ्ता वसूली’ या ‘प्रोटेक्शन मनी’ भी कहा जा सकता है, लेकिन इसका मिज़ाज कहीं ज्यादा हिंसक और खौफनाक होता है. यह एक अवैध वसूली की प्रथा है जिसमें अपराधी, गुंडे या बाहुबली तत्व व्यापारियों, ठेकेदारों, डॉक्टरों या यहां तक कि आम लोगों को धमकाकर जबरन पैसा वसूलते हैं. पैसा न देने पर अपहरण, हत्या या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी जाती है.

कौन होता है रंगदार?

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये रंगदार कौन होता है? दरअसल, ये आमतौर पर स्थानीय गुंडे, छुटभैय्ये बदमाश या बड़े अपराधियों के एजेंट होते हैं. ये किसी खास इलाके या बाज़ार में अपना आतंक (Terror) कायम रखते हैं. अक्सर, ये किसी शक्तिशाली राजनेता या आपराधिक गिरोह के संरक्षण में काम करते हैं. इस शब्द का शाब्दिक अर्थ भले ही पुख्ता न हो, लेकिन बिहार में 1990 से 2005 के दौर में यह एक ऐसा कड़वा सच बन गया था, जिसने बिहार की पहचान को गहरा नुकसान पहुंचाया था.

‘रंगदारी’ का मुद्दा बिहार की राजनीति से गहराई से जुड़ा हुआ है. 1990 से 2005 के बीच आरजेडी के शासनकाल को उसके विरोधी अक्सर ‘जंगल राज’ कहते हैं. इस दौर में अपहरण और जबरन वसूली की घटनाएं चरम पर थीं, जिसने राज्य में उद्योग और निवेश को लगभग खत्म कर दिया था. उस समय ‘रंगदार’ राजनीतिक दलों के संरक्षण में फलते-फूलते थे, जिससे आम जनता और व्यापारी वर्ग खौफ के साए में जीने को मजबूर था.

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चुनावी रण में क्यों हुई इसकी वापसी?

2025 के चुनाव में यह मुद्दा फिर से इसलिए उभरा है क्योंकि एनडीए इसे आरजेडी के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बनाकर पेश कर रहा है.पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में साफ कहा कि आरजेडी वाले इंतजार कर रहे हैं कि उनकी सरकार आए और अपहरण, रंगदारी का पुराना धंधा फिर से शुरू हो जाए. उन्होंने यहां तक कहा कि ‘आएगी भईया की सरकार, बनेंगे रंगदार’ जैसे गाने उस दौर की मानसिकता को दर्शाते हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी आरजेडी को ‘रंगदारी, जंगल राज और दादागिरी’ का पर्याय बता रहे हैं. उनका तर्क है कि आरजेडी की वापसी का मतलब बिहार की पुरानी अंधेरी पहचान की वापसी है.

वोटरों को डर

एनडीए गठबंधन, खासकर बीजेपी और जेडीयू, पुराने दिनों के डर को फिर से ज़िंदा करके वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है. उनका फोकस यह बताना है कि एनडीए ‘विकास’ का प्रतीक है, जबकि महागठबंधन ‘विनाश’ ला सकता है.

हालांकि, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और महागठबंधन के नेता इस मुद्दे को ध्यान भटकाने वाला हथकंडा बता रहे हैं. वे लगातार रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे वर्तमान के मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं. उनका मानना है कि यह 15 साल पुरानी बात है, जिसे आज की युवा पीढ़ी के सामने बेवजह उछाला जा रहा है. पहले चरण का मतदान हो चुका है और दूसरे चरण की वोटिंग से ठीक पहले, यह ‘रंगदारी बनाम रोजगार’ की लड़ाई ही इस चुनाव का निर्णायक मोड़ बनती दिख रही है.

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