बिहार में भी ‘गुजरात-मध्य प्रदेश फॉर्मूले’ के सहारे BJP, क्या है पार्टी का टिकट कटवा फंडा?
बिहार के लिए क्या है बीजेपी का प्लान?
Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. इसलिए 20 साल की सत्ता विरोधी लहर ‘एंटी-इनकंबेंसी’ को तोड़ने के लिए पार्टी ने अपना ‘मोदी फॉर्मूला’ निकाला है. वो है पुराने चेहरों को किनारे कर, बड़े-बड़े दिग्गजों को मैदान में उतारना. ये रणनीति पहले गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चली. अब पार्टी की बिहार में धमाल मचाने की तैयारी है. लेकिन सवाल ये है कि बीजेपी को इस बड़े बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी? आइए, आसान भाषा में इस सियासी गेम को विस्तार से समझते हैं.
एंटी-इनकंबेंसी का ‘भूत’ बीजेपी की टेंशन!
बिहार में बीजेपी और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) गठबंधन में सत्ता चला रहे हैं. 2020 के चुनाव में NDA ने 125 सीटें जीतीं, जिनमें बीजेपी की 74 थीं. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. कई मौजूदा विधायकों के खिलाफ जनता में नाराजगी है. लोग कह रहे हैं, “हमने वोट दिया, पर काम नहीं हुआ.” बेरोजगारी, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं जैसे मुद्दों पर सवाल उठ रहे हैं. इस नाराजगी को ‘एंटी-इनकंबेंसी’ कहते हैं. यानी, सत्ता में बैठे लोगों को बदलने की जनता की चाह. बीजेपी को डर है कि अगर पुराने चेहरों को ही टिकट दिया, तो विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव की RJD और प्रशांत किशोर की नई-नवेली जन सुराज पार्टी इसका फायदा उठा सकती है. 2020 में RJD ने 75 सीटें जीतकर दिखा दिया कि वो बीजेपी गठबंधन को कड़ी टक्कर दे सकती है. तेजस्वी की ताजा रैलियों में ‘सीट चोरी’ जैसे बयान जनता के बीच जोश भर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी को लगा है कि अब कुछ बड़ा करना होगा, वरना सत्ता खिसक सकती है.
‘टिकट रीसेट’ फॉर्मूला- पुराने आउट, नए इन!
सूत्रों के मूताबिक, बीजेपी की योजना है कि क्यों न पुराने चेहरों को हटाकर नए और दमदार नाम लाए जाएं? ये रणनीति नई नहीं है.
गुजरात में चला जादू: 2022 में बीजेपी ने 45 विधायकों के टिकट काटे. सातवीं बार सत्ता में आई.
मध्य प्रदेश का मास्टरस्ट्रोक: 2023 में 7 सांसदों और कई केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतारा. नतीजा? सत्ता बरकरार.
राजस्थान में भी हिट: वहां भी बड़े नामों को मैदान में लाया गया, और पार्टी ने बाजी मारी.
अब बिहार में भी यही फॉर्मूला आजमाने की तैयारी है. पार्टी 15-20% मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है. नए चेहरों को मौका देकर और दिल्ली से केंद्रीय मंत्रियों-सांसदों को बिहार भेजकर बीजेपी चाहती है कि जनता का गुस्सा ठंडा हो.
नए चेहरे और नई उम्मीद
जातिगत समीकरण सेट हों: बिहार में जाति की सियासत अहम है. बड़े नेता अपने समुदाय के वोट खींच सकते हैं.
आसपास की सीटों पर असर: एक दिग्गज नेता की मौजूदगी से 5-7 पड़ोसी सीटों पर भी बीजेपी को फायदा हो सकता है.
कौन हैं बीजेपी के ‘गेम-चेंजर’? पार्टी की नजर कुछ बड़े नामों पर है, जो दिल्ली की सियासत से बिहार के गांवों तक जोश भर सकते हैं.
नित्यानंद राय: गृह राज्य मंत्री, जिनकी सख्त और मेहनती छवि यादव-भूमिहार वोटरों को लुभा सकती है.
सतीश चंद्र दुबे: कोयला राज्य मंत्री, विकास की बातों से ग्रामीण इलाकों में पकड़.
संजय जायसवाल: सांसद और संगठन के माहिर खिलाड़ी.
दिलीप जायसवाल: बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष, जो बिहार की जमीनी हकीकत जानते हैं.
अश्विनी चौबे: पूर्व केंद्रीय मंत्री, जिनका अनुभव और ब्राह्मण वोट बैंक मजबूत है.
शाहनवाज हुसैन: पूर्व मंत्री, जो मुस्लिम और अन्य समुदायों में पैठ बना सकते हैं.
राजीव प्रताप रूडी: अनुभवी सांसद, जिनका सारण में दबदबा है.
रामकृपाल यादव: यादव वोटरों का बड़ा चेहरा.
सुशील सिंह: लोकल लेवल पर मजबूत कनेक्शन.
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पक्की नहीं है लिस्ट!
हालांकि, ये लिस्ट अभी पक्की नहीं है. बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति जल्द फैसला लेगी. अमित शाह ने हाल ही में अररिया, सारण और वैशाली में मीटिंग्स कीं, जहां ‘विनेबिलिटी’ पर जोर दिया गया. बीजेपी को ये सब क्यों करना पड़ रहा है?
दरअसल, तेजस्वी यादव की RJD युवाओं और बेरोजगारों को ‘नौकरी और सम्मान’ का नारा दे रही है. प्रशांत किशोर की जन सुराज भी नए वोटरों को लुभा रही है. बीजेपी को डर है कि अगर वो पुराने चेहरों पर दांव लगाएगी, तो जनता विपक्ष की ओर खिसक सकती है. वहीं, गठबंधन में JDU का कहना है कि नीतीश कुमार की योजनाएं (जैसे 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये की रोजगार योजना) जनता को खुश रखेंगी. लेकिन बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती. अगर JDU की सीटें घटीं, तो NDA की सरकार खतरे में पड़ सकती है.
लोकसभा का सबक
2024 के लोकसभा चुनाव में NDA को बिहार में 40 में से 30 सीटें मिलीं, लेकिन RJD-कांग्रेस ने 9 सीटें जीतकर चौंकाया. बीजेपी अब विधानसभा में कोई गलती नहीं चाहती. दरअसल, बिहार में जाति, क्षेत्र और विकास के मुद्दे आपस में गूंथे हुए हैं. बड़े नेताओं को उतारकर बीजेपी इन समीकरणों को अपने पक्ष में करना चाहती है.
5 अक्टूबर बड़ा दिन!
सूत्रों के मुताबिक, 5 अक्टूबर को दिल्ली में बीजेपी की बड़ी बैठक हो सकती है. यहां पहली उम्मीदवार लिस्ट फाइनल होगी. इलेक्शन कमीशन भी 4-5 अक्टूबर को बिहार दौरा कर रहा है और जल्द ही चुनाव तारीखों का ऐलान हो सकता है. अनुमान है कि नवंबर में 2-3 चरणों में वोटिंग होगी और 22 नवंबर तक नतीजे आ जाएंगे.
क्या ये फॉर्मूला काम करेगा?
गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी का ‘टिकट रीसेट’ चला, लेकिन बिहार की सियासत अलग है. यहां जातिगत गणित, विपक्ष की आक्रामकता और युवाओं की नाराजगी बड़ा रोल निभाएगी. अगर बीजेपी के दिग्गज मैदान में उतरे, तो क्या जनता उनके नाम पर मुहर लगाएगी या फिर तेजस्वी और प्रशांत किशोर का जोश भारी पड़ेगा? ये तो वक्त बताएगा. लेकिन एक बात पक्की है कि बिहार का ये चुनावी रण सियासी थ्रिलर से कम नहीं होगा.