तेजस्वी के लिए बेहतर कौन, चचा या भाई… CM नीतीश ने एक झटके में पलट दिया ‘खेला’, लालू के लाल की राह कहां?

Bihar Election 2025: 2023 के अंत तक 'इंडिया' गठबंधन की गाड़ी पटरी पर थी, लेकिन दिसंबर में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव नतीजों ने माहौल बिगाड़ दिया. भाजपा ने तीन राज्यों में जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार ने विपक्षी दलों में बेचैनी बढ़ा दी.
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बिहार की राजनीति में नीतीश का तोड़ नहीं!

Bihar Politics: बिहार की सियासत में ड्रामा कोई नई बात नहीं है, लेकिन डेढ़ साल पहले जब नीतीश कुमार ने ‘इंडिया’ गठबंधन का साथ छोड़कर भाजपा का हाथ थामा, आज भी चर्चा का केंद्र है. ये कहानी है नीतीश के ‘चाणक्य’ वाला दिमाग, कांग्रेस की चूक और तेजस्वी यादव के अधूरे सपनों की. आइए आज विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं कि लालू के लाल के लिए चचा और भाई में बेहतर कौन?

‘इंडिया’ गठबंधन का सपना

2023 की गर्मियों में नीतीश कुमार बिहार से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी धाक जमाने की राह पर थे. 23 जून 2023 को पटना में विपक्षी दलों की पहली बड़ी बैठक हुई. नीतीश की अगुवाई में ‘इंडिया’ गठबंधन का जन्म हुआ, जिसका मकसद था 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर देना. नीतीश उस समय विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे बन रहे थे. उनके साथ थे लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और कई क्षेत्रीय दल.

बिहार में नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी महागठबंधन के तहत सत्ता में थी और तेजस्वी के लिए सीएम की कुर्सी करीब दिख रही थी. नीतीश का सपना था राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को एकजुट कर एक नया इतिहास रचना. दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव बिहार में अपनी सियासी पारी को और मजबूत करने की जुगत में थे. सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन फिर आया एक ऐसा मोड़, जिसने पूरी कहानी पलट दी.

कांग्रेस की चूक

2023 के अंत तक ‘इंडिया’ गठबंधन की गाड़ी पटरी पर थी, लेकिन दिसंबर में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव नतीजों ने माहौल बिगाड़ दिया. भाजपा ने तीन राज्यों में जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार ने विपक्षी दलों में बेचैनी बढ़ा दी. क्षेत्रीय दल चाहते थे कि सीट बंटवारे पर जल्द फैसला हो, लेकिन कांग्रेस टालमटोल करती रही.

19 दिसंबर 2023 की दिल्ली में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने अचानक मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन का नेता प्रस्तावित कर दिया. ये नीतीश के लिए बड़ा झटका था. नीतीश ने जिस गठबंधन को खड़ा करने में दिन-रात एक किया था, उन्हें लगा कि कांग्रेस ने सबकुछ हाईजैक कर लिया. पहले तय था कि गठबंधन बिना किसी औपचारिक नेता के चलेगा, लेकिन खड़गे का नाम आगे आने से नीतीश नाराज हो गए. वे बैठक छोड़कर चले गए और यहीं से टूट की शुरुआत हुई.

नीतीश का मास्टरस्ट्रोक

नीतीश की नाराजगी सिर्फ कांग्रेस तक सीमित नहीं थी. उन्हें लग रहा था कि लालू यादव ने भी उनका साथ पूरी मजबूती से नहीं दिया. पहले भी कई बार कांग्रेस को काबू में रख चुके लालू यादव इस बार चुप रहे. नीतीश ने 29 दिसंबर 2023 को बड़ा दांव खेला. उन्होंने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद खुद संभाल लिया और ललन सिंह को हटा दिया. ललन पर लालू से नजदीकी के आरोप थे, और नीतीश को डर था कि उनकी पार्टी में सेंध लग सकती है.

13 जनवरी 2024 को ‘इंडिया’ गठबंधन की वर्चुअल बैठक में खड़गे को औपचारिक रूप से नेता चुना गया और नीतीश को संयोजक का पद ऑफर हुआ. लेकिन नीतीश ने इसे ठुकरा दिया. उनके समर्थकों का मानना था कि जिस गठबंधन को नीतीश ने ‘उड़ान’ दी, उसे कांग्रेस ने ‘हाईजैक’ कर लिया. नीतीश को अब महागठबंधन में कोई भविष्य नहीं दिख रहा था.

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कर्पूरी ठाकुर और नीतीश का आखिरी दांव

20 जनवरी 2024 से नीतीश के गठबंधन छोड़ने की अटकलें तेज हो गईं. तभी केंद्र सरकार ने 23 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया. नीतीश ने इस फैसले की तारीफ की और पीएम मोदी को धन्यवाद दिया. साथ ही, उन्होंने परिवारवाद पर तंज कसते हुए कहा कि कर्पूरी ठाकुर ने कभी अपने परिवार को सियासत में आगे नहीं बढ़ाया. ये तंज सीधे लालू यादव और RJD पर था, जिनकी सियासत परिवारवाद के इर्द-गिर्द घूमती है.

26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस के मौके पर नीतीश और तेजस्वी की बॉडी लैंग्वेज से साफ था कि अब रिश्ता टूटने की कगार पर है. लालू ने नीतीश से स्थिति साफ करने को कहा, लेकिन नीतीश अपने सांसदों और नेताओं से बात कर चुके थे. जदयू के कार्यकर्ताओं का मानना था कि RJD के साथ जमीन पर तालमेल नहीं बैठ रहा. आखिरकार, 28 जनवरी 2024 को नीतीश ने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और RJD का साथ छोड़कर भाजपा के साथ नई सरकार बना ली.

नीतीश चचा या राहुल भाई?

नीतीश के इस यू-टर्न ने तेजस्वी यादव के सियासी सपनों को बड़ा झटका दिया. 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में RJD को सत्ता से दूर रहना पड़ा, और ये साफ हो गया कि नीतीश के बिना तेजस्वी की राह आसान नहीं. कांग्रेस की टालमटोल नीति और खड़गे को नेता बनाने की जल्दबाजी ने नीतीश को नाराज किया और लालू की चुप्पी ने आग में घी डाला. अगर RJD ने नीतीश का सम्मान बनाए रखा होता, तो शायद आज बिहार की सियासत कुछ और होती. तेजस्वी के लिए सवाल अब यही है कि ‘नीतीश चचा’ की अनुभवी चालें बेहतर थीं या ‘राहुल भाई’ की अनिश्चित दोस्ती? नीतीश ने साबित कर दिया कि बिहार की सियासत में उनकी चालें अभी भी सबसे भारी हैं.

तेजस्वी की राह कहां?

आज तेजस्वी राहुल गांधी के साथ गठबंधन में हैं, लेकिन बिहार में सीएम की कुर्सी उनके लिए अब भी दूर है. राहुल उन्हें कोई गारंटी नहीं दे रहे और लाइमलाइट में भी कांग्रेस ही है. दूसरी तरफ, नीतीश भाजपा के साथ मजबूती से खड़े हैं. तेजस्वी के लिए ये सियासी उलझन आसान नहीं. क्या वे फिर से नीतीश के साथ हाथ मिलाएंगे या राहुल के भरोसे अपनी सियासी पारी खेलेंगे? ये जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन एक बात पक्की है कि बिहार की सियासत में नीतीश अभी भी गेमचेंजर है.

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