बिहार में वोट के बदले ‘कागजी अग्निपरीक्षा’, 11 दस्तावेज़ों के भंवर में फंसे करोड़ों वोटर!

बात सीधी और साफ है. अगर आपके पास इन 11 में से कोई भी एक दस्तावेज़ नहीं है, तो आपका वोट डालना मुश्किल हो सकता है. बिहार के गांव-गांव में लोग इन कागज़ात को बनवाने के लिए परेशान घूम रहे हैं.
Bihar Voter List Verification

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bihar Voter List Verification : सोचिए, आपके राज्य में चुनाव की धूम मची हो, आप अपने पसंदीदा नेता को चुनने के लिए बेताब हों, लेकिन फिर अचानक पता चले कि वोट डालने के लिए आपको 11 तरह के ख़ास कागज़ात में से कोई एक दिखाना होगा. और वो कागज़ात ऐसे हों, जिन्हें बनवाना आम आदमी के लिए टेढ़ी खीर से कम न हो. कुछ ऐसा ही हाल है आजकल बिहार का, जहां विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करने का काम चल रहा है, और इसमें लगे हैं दस्तावेज़ों के पचड़े.

चुनाव आयोग का फरमान

चुनाव आयोग ने फरमान सुनाया है कि 25 जुलाई तक हर हाल में मतदाता सूची का वेरिफिकेशन पूरा हो जाना चाहिए. अब जिनकी उम्र थोड़ी कम है या जो नए वोटर हैं, उन्हें तो उतनी दिक्कत नहीं, लेकिन सबसे ज़्यादा परेशान वो लोग हैं, जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था. और ऐसे लोग बिहार में एक-दो नहीं, बल्कि पूरे 2.93 करोड़ हैं. जी हां, लगभग तीन करोड़ लोग, जिन्हें अब इस ‘कागज़ात की दौड़’ में शामिल होना पड़ रहा है.

विपक्ष ने बीजेपी पर लगाया गंभीर आरोप

विपक्ष तो सीधा आरोप लगा रहा है कि ये सब भाजपा के इशारे पर हो रहा है, ताकि बिहार के गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित समाज के लोग वोट न डाल पाएं. उनका कहना है कि ये जानबूझकर बिहार के उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, जिनकी पहुंच इन दस्तावेज़ों तक नहीं है. वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि वे तो Representation of the People Act, 1950 के नियमों का पालन कर रहे हैं, जिसके तहत मतदाता सूची तैयार करने का काम इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स (EROs) का है, और अंतिम फैसला उन्हीं का होता है.

तो चलिए, बिना किसी देरी के, बिहार के लोगों की इस मुश्किल को करीब से जानते हैं. ये 11 दस्तावेज़ क्या हैं, और इन्हें बनवाने में बिहार के गांव-गांव में लोग क्यों सिर खुजा रहे हैं?

सरकारी नौकरी का पहचान पत्र या पेंशन दस्तावेज़

पहला दस्तावेज़ है केंद्र सरकार, राज्य सरकार या PSU (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) के नियमित कर्मचारी या पेंशनभोगी को जारी किया गया पहचान पत्र/पेंशन भुगतान आदेश. अब सोचिए, बिहार जाति सर्वे 2022 के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी का सिर्फ 1.57% हिस्सा ही सरकारी सेवाओं में है. यानी, लगभग 20.49 लाख लोग. तो बाकी करोड़ों लोग ये दस्तावेज़ कहां से लाएंगे ये तो ऐसा है जैसे मछली को पेड़ पर चढ़ने को कहा जा रहा हो.

1987 से पहले जारी कोई पुराना सरकारी दस्तावेज़

दूसरा विकल्प है 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, बैंक, डाकघर, LIC या PSU द्वारा जारी कोई भी पहचान पत्र/प्रमाणपत्र/दस्तावेज़. इसमें स्थानीय निकाय में रोज़गार का प्रूफ भी शामिल है. अब ज़रा सोचिए, लगभग 40 साल पुराना कोई दस्तावेज़, वो भी ऐसे राज्य में जहां दस्तावेज़ों को सहेज कर रखने का चलन कम रहा है. इसका कोई डेटा भी उपलब्ध नहीं है कि कितने लोगों के पास ऐसे दस्तावेज़ होंगे. ये तो पुरानी तिजोरी खोलने जैसा है, जिसमें पता नहीं क्या मिले.

जन्म प्रमाण पत्र

जन्म प्रमाण पत्र, जो आमतौर पर स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया जाता है. नियम तो हैं, लेकिन बिहार का रिकॉर्ड इसमें बेहद खराब रहा है. साल 2000 में बिहार में सिर्फ 1.19 लाख जन्म का डेटा इकट्ठा हुआ था, जो उस साल होने वाले कुल जन्मों का सिर्फ 3.7% था. 2007 में भी यह आंकड़ा कुल अनुमानित जन्मों का एक-चौथाई ही था. तो आप समझ सकते हैं कि जो लोग 20-30-40 साल पहले पैदा हुए, और जिनका जन्म दर्ज ही नहीं हुआ, वो अब ये प्रमाण पत्र कहाँ से लाएंगे?

पासपोर्ट

अगला दस्तावेज़ है पासपोर्ट. 2023 तक, बिहार में सिर्फ 27.44 लाख वैध पासपोर्ट थे, जो राज्य की आबादी का सिर्फ दो प्रतिशत है. पासपोर्ट बनवाने में पुलिस सत्यापन से लेकर ढेरों कागजी कार्रवाई और पैसा लगता है. ऐसे में बिहार की बड़ी आबादी के लिए ये दस्तावेज़ बनवाना लगभग असंभव है.

मैट्रिक का प्रमाण पत्र

मैट्रिकुलेशन परीक्षा का प्रमाणपत्र (10वीं पास का). बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के अनुसार, राज्य में केवल 14.71% लोग ही कक्षा 10वीं पास हैं और उन्होंने ग्रेजुएशन किया है. साथ ही, शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने लोकसभा में बताया था कि कक्षा 6-8 में ड्रॉपआउट दर 26% है. यानी, एक बड़ी आबादी तो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती है. तो, जिनके पास 10वीं का सर्टिफिकेट ही नहीं है, उनका क्या होगा?

स्थायी निवासी प्रमाण पत्र

यह दस्तावेज़ बताता है कि आवेदक राज्य का स्थायी निवासी है. इसके लिए आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी, मैट्रिक प्रमाणपत्र और एक हलफनामा देना होता है. फॉर्म को BDO या कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास जमा करना होता है. इसमें 15 दिन तक का समय लगता है, और दस्तावेज़ों के वेरिफिकेशन से प्रक्रिया में और देरी हो सकती है. कागज़ात की कमी अक्सर यहां भी अटकलें पैदा करती है.

ज़िला स्तरीय समिति से जारी दस्तावेज़

यह दस्तावेज़ ग्राम सभा द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया के बाद ज़िला कलेक्टर या डिप्टी कमिश्नर की अध्यक्षता वाली एक ज़िला स्तरीय समिति द्वारा जारी किया जाता है. लेकिन इसमें भी प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी पहुंच अधिकारियों तक नहीं है.

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जाति प्रमाण पत्र

अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का प्रमाण पत्र. बिहार कास्ट सर्वे 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में OBC (27%), EBC (36%), SC (20%) और ST (1.6%) की बड़ी आबादी है. लेकिन कितने लोगों ने अपना प्रमाण पत्र प्राप्त किया है, इसका कोई सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. इसे बनवाना भी एक प्रक्रिया है, जिसमें समय और दस्तावेज़ दोनों लगते हैं.

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC)

यह सबसे दिलचस्प बिंदु है. चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेज़ों में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) को भी शामिल किया है, लेकिन यह दस्तावेज़ बिहार में लागू ही नहीं है. तो फिर इसे विकल्प के तौर पर रखना कितना तर्कसंगत है, ये एक बड़ा सवाल है.
पारिवारिक रजिस्टर

यह ग्राम पंचायत या स्थानीय निकाय द्वारा तैयार किया जाता है और इसमें परिवार के सभी लोगों की जानकारी होती है. अगर आपको अपना नाम इसमें दर्ज कराना है, तो पंचायत या नगर निगम के कार्यालय में जाकर आधार, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, विवाह प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ देने होंगे. इसके बाद संबंधित अधिकारी इलाके का दौरा करके वेरिफिकेशन करेगा. इसमें भी 15 दिन या उससे ज़्यादा का वक्त लग सकता है.

ज़मीन ही नहीं तो कागज़ कहां से?

आखिरी विकल्प है ज़मीन से जुड़ा कोई दस्तावेज़. लेकिन 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, बिहार के ग्रामीण परिवारों में से 65.58% के पास कोई ज़मीन ही नहीं थी. तो जिनके पास ज़मीन नहीं, वो ये दस्तावेज़ कहां से लाएंगे?

कुल मिलाकर, बात सीधी और साफ है. अगर आपके पास इन 11 में से कोई भी एक दस्तावेज़ नहीं है, तो आपका वोट डालना मुश्किल हो सकता है. बिहार के गांव-गांव में लोग इन कागज़ात को बनवाने के लिए परेशान घूम रहे हैं. चुनावी माहौल में ये दस्तावेज़ों की जंग, एक नई चुनौती बनकर सामने खड़ी है.

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