दिल्ली के दमघोंटू प्रदूषण का ‘चाइनीज इलाज’, क्या नोएडा-फरीदाबाद की 3000 कंपनियों पर ताला लगाना ही आखिरी रास्ता?

Beijing Model for Pollution: चीन का मानना है कि दिल्ली अपनी क्षमता से अधिक बोझ सह रही है. सुझाव यह है कि जिन थोक बाजारों, लॉजिस्टिक्स हब, मेडिकल संस्थानों और शिक्षण केंद्रों की दिल्ली को बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है, उन्हें शहर की सीमाओं से बाहर किया जाए.
Delhi Air Pollution

प्रतीकात्मक तस्वीर

Delhi Air Pollution: दिल्ली की हवा हर साल सर्दी आते ही ‘जहरीली’ हो जाती है. जब स्मॉग की चादर पूरी राजधानी को ढंक लेती है, तब समाधान की तलाश शुरू होती है. इस बीच, चीन की एक प्रवक्ता मैडम यू जिंग ने दिल्ली के प्रदूषण को लेकर कुछ ऐसे सुझाव दिए हैं, जिन्होंने बहस छेड़ दी है. जिंग का कहना है कि अगर दिल्ली को सांस लेने लायक बनाना है, तो बीजिंग (Beijing Model for Pollution) की तरह ही कड़े और बड़े फैसले लेने होंगे. सवाल यह है कि क्या भारत, बीजिंग की तरह नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम की हजारों कंपनियों को बंद करने या शिफ्ट करने का साहस दिखा पाएगा?

बीजिंग का ‘जादुई’ फॉर्मूला

मैडम यू जिंग ने बताया कि बीजिंग ने अपनी हवा को साफ करने के लिए ‘इंडस्ट्रियल रीस्ट्रक्चरिंग’ का रास्ता चुना. उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली-एनसीआर से लगभग 3000 भारी उद्योगों (Heavy Industries) को या तो बंद कर देना चाहिए या उन्हें बहुत दूर शिफ्ट कर देना चाहिए.

चीन का दावा है कि उन्होंने अपने सबसे बड़े स्टील प्लांट ‘शोगांग’ को बीजिंग से बाहर किया, जिससे हवा में प्रदूषण फैलाने वाले कणों में सीधे 20% की गिरावट आई. अब यही मशविरा भारत के लिए भी है. अगर प्रदूषण कम करना है, तो फैक्ट्रियों के धुएं को शहर से दूर ले जाना होगा.

खाली जमीन पर कंक्रीट नहीं, बनेंगे पार्क

अक्सर फैक्ट्रियां हटने के बाद वहां ऊंची इमारतें खड़ी कर दी जाती हैं, लेकिन चीनी मॉडल कुछ अलग कहता है. जिंग के अनुसार, बीजिंग में फैक्ट्रियां हटने के बाद उस खाली जमीन को पार्क, कमर्शियल हब और कल्चरल सेंटर में बदल दिया गया. उदाहरण के तौर पर, जिस जगह कभी धुआं उगलने वाली फैक्ट्री थी, वहीं चीन ने 2022 के विंटर ओलंपिक्स का आयोजन किया. यानी उद्योगों की जगह अब वहां हरियाली और तकनीक का संगम है.

दिल्ली का बोझ कम करना जरूरी

चीन का मानना है कि दिल्ली अपनी क्षमता से अधिक बोझ सह रही है. सुझाव यह है कि जिन थोक बाजारों, लॉजिस्टिक्स हब, मेडिकल संस्थानों और शिक्षण केंद्रों की दिल्ली को बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है, उन्हें शहर की सीमाओं से बाहर किया जाए. हाई-वैल्यू रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) को राजधानी में रखें. सामान्य फैक्ट्रियों को पड़ोसी राज्यों में दूर शिफ्ट कर दें.

यह भी पढ़ें: कथावाचक को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने पर बवाल, नप सकते हैं SP; अखिलेश और चंद्रशेखर ने सरकार को घेरा

प्रदूषण का सबसे बड़ा विलेन कोयला

चीन ने कोयले के इस्तेमाल को ‘जीरो’ करने पर जोर दिया है. बीजिंग ने अपने चार बड़े कोयला पावर प्लांट बंद कर दिए और उनकी जगह नेचुरल गैस का इस्तेमाल शुरू किया. इतना ही नहीं, 10 लाख से अधिक ग्रामीण घरों में हीटिंग के लिए कोयले को पूरी तरह बैन कर बिजली या गैस पर शिफ्ट कर दिया गया. नतीजा यह हुआ कि 2012 में जो बीजिंग 21 मिलियन टन कोयला जलाता था, अब वहां यह आंकड़ा 1% से भी कम रह गया है.

क्या एनसीआर में यह मुमकिन है?

चीन का आइडिया सुनने में जितना असरदार है, भारत के लिए उतना ही चुनौतीपूर्ण. अकेले दिल्ली में ही 2.65 लाख रजिस्टर्ड MSME हैं. नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम जैसे इलाके भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब हैं. अगर यहां से कंपनियों को ‘गायब’ किया गया, तो लाखों लोगों के रोजगार और देश की अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ेगा. लेकिन, जिस तरह प्रदूषण हर साल हजारों लोगों की जान ले रहा है, उसे देखते हुए ‘इलाज’ तो कड़ा ही करना होगा.

ज़रूर पढ़ें