हिंदुओं में कमी, मुसमानों में जबरदस्त उछाल…दुनियाभर में सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं इस धर्म के लोग, प्यू की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा!

हिंदुओं की आबादी दुनिया की कुल आबादी के लगभग समान दर से बढ़ी, जो 2020 में 1.2 अरब तक पहुंच गई. इनमें से चौंकाने वाले 95% हिंदू भारत में रहते हैं. वैश्विक जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी 2020 में 14.9% पर स्थिर रही, जो 2010 में 15% थी.
Global Religious Trends

प्रतीकात्मक तस्वीर

Global Religious Trends: 2010 से 2020 के दशक में दुनिया का धार्मिक नक्शा तेज़ी से बदला है. इस दौरान कुछ धर्मों की आबादी में ज़बरदस्त उछाल आया, तो कुछ की हिस्सेदारी में गिरावट दर्ज की गई. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में मुसलमान सबसे तेज़ी से बढ़ते धार्मिक समूह के रूप में उभरे हैं, वहीं ईसाइयों की वैश्विक आबादी में हिस्सेदारी कम हुई है. हिंदुओं की आबादी स्थिर दर से बढ़ी, जबकि इज़रायल के लिए यहूदियों की घटती संख्या चिंता का विषय बनी है. ये जानकारी प्यू रिसर्च सेंटर के एक विश्लेषण से सामने आई है.

सबसे तेज़ी से बढ़ते धार्मिक समूह

दुनियाभर में मुसलमान 2010 से 2020 के दौरान सबसे तेजी से बढ़ते धार्मिक समूह के रूप में उभरे हैं. उनकी वैश्विक आबादी में हिस्सेदारी 2010 में 14.3% से बढ़कर 2020 में 15.2% हो गई. इस दशक में मुसलमानों की संख्या में कुल 34.7 करोड़ की वृद्धि हुई, जो कि सभी अन्य धर्मों की संयुक्त वृद्धि से भी ज़्यादा है. इस विस्फोटक वृद्धि का मुख्य कारण उनकी अपेक्षाकृत कम आयु और उच्च प्रजनन दर मानी जाती है.

घटने लगी है ईसाई आबादी

वहीं, दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समूह, ईसाइयों की वैश्विक आबादी में हिस्सेदारी 1.8 प्रतिशत अंक घटकर 28.8% हो गई. 2010 में वे वैश्विक आबादी का 30.6% थे. इस गिरावट का एक बड़ा कारण धर्म परिवर्तन है, जहां ईसाई धर्म छोड़ने वालों की संख्या काफी ज़्यादा रही.

हिंदुओं की आबादी स्थिर रफ्तार से बढ़ी

हिंदुओं की आबादी दुनिया की कुल आबादी के लगभग समान दर से बढ़ी, जो 2020 में 1.2 अरब तक पहुंच गई. इनमें से चौंकाने वाले 95% हिंदू भारत में रहते हैं. वैश्विक जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी 2020 में 14.9% पर स्थिर रही, जो 2010 में 15% थी. दिलचस्प बात यह है कि सर्वे में बताया गया है कि हिंदू शायद ही कभी अपना धर्म बदलते हैं. भारत में 2020 तक हिंदुओं की आबादी 79% थी, जबकि 2010 में यह 80% थी. एक खास बात यह भी है कि हिंदुओं की आबादी दुनियाभर में बढ़ने लगी है. इसके इतर एक खास बात ये भी है कि आने वाले सालों में इंडोनेशिया के बाद भारत में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी हो सकता है. इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है.

बिना किसी धार्मिक संबद्धता वाले लोग भी बढ़े

मुसलमानों के अलावा, ऐसे लोग जिनकी कोई धार्मिक संबद्धता नहीं है, जिन्हें अक्सर ‘नोनेस’ कहा जाता है. इनकी संख्या 27 करोड़ बढ़कर 1.9 अरब हो गई, और इनका हिस्सा लगभग एक प्रतिशत बढ़कर 24.2% हो गया. धर्म को नहीं मानने वाले लोगों की संख्या ईसाई समाज में ज्यादा देखने को मिली है.

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इज़रायल के लिए खतरे की घंटी?

रिपोर्ट में एक खास बात इज़रायल के लिए है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 में यहूदी वैश्विक जनसंख्या का 1% से भी कम थे, और उनकी संख्या में गिरावट इज़राइल के भविष्य की जनसांख्यिकी के लिए चिंता का विषय बन सकती है.

डेमोग्राफी में बदलाव के पीछे के कारण

इस विश्लेषण से पता चलता है कि धार्मिक जनसांख्यिकी में ये बदलाव कई कारकों के कारण हो रहे हैं.

धर्म परिवर्तन: ईसाइयों के बीच व्यापक धर्म परिवर्तन उनकी जनसंख्या में कमी का एक मुख्य कारण है.

प्रजनन दर: मुस्लिम आबादी की वृद्धि मुख्य रूप से उनकी अपेक्षाकृत कम आयु और उच्च प्रजनन दर के कारण है.

आयु संरचना: 2010 में मुसलमानों में बच्चों का अनुपात सबसे अधिक था.

प्यू रिसर्च सेंटर की यह रिपोर्ट दुनिया के बदलते धार्मिक परिदृश्य की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है. ये आंकड़े न केवल धार्मिक रुझानों को दर्शाते हैं, बल्कि आने वाले दशकों में वैश्विक समाज, राजनीति और संस्कृति पर उनके संभावित प्रभावों को भी बता रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में ये जनसांख्यिकीय बदलाव किस तरह दुनिया को आकार देते हैं.

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