मासूम बेटे की बगावत से शुरू हुई रंगों की क्रांति…अब हरदोई में ऐसे मनती है होली

अब हिरण्यकश्यप हर बार असफल होकर और भी तैश में आ गया था. एक दिन उसने प्रह्लाद को सभा में बुलाया और उसे खंभे से बांधकर मारने की योजना बनाई. लेकिन क्या हुआ? भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और उस खंभे को फाड़कर हिरण्यकश्यप का वध किया.
Holi 2025

प्रह्लाद कुंड हरदोई

Holi 2025: कल्पना कीजिए, एक छोटे से बच्चे की भक्ति और साहस ने दुनियाभर में रंगों की एक ऐसी लहर पैदा कर दी, जिसे हम आज होली के रूप में मनाते हैं. यही है हरदोई की होली की कहानी. यह कहानी न केवल विश्वास और भक्ति की है, बल्कि यह भी दिखाती है कि एक मासूम की बगावत ने कैसे एक पूरे समाज की सोच और परंपराओं को बदल डाला.

राक्षस राज की कहानी

बात सतयुग की है. यह वो दौर था, जब पृथ्वी पर राक्षसों का राज था. राक्षस राज हिरण्यकश्यप का शासन था, जो खुद को भगवान मानता था और भगवान विष्णु का घोर विरोधी था. उसे ब्रह्मा से अमरता का वरदान मिल चुका था. उसे ब्रह्मा जी ने जो वरदान दिया था उसके मुताबिक, न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकता था न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकता था न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर था.

लेकिन, हिरण्यकश्यप ने एक बड़ी गलती की. उसने एक बेटे प्रह्लाद को जन्म दिया, जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. एक बच्चा, जो अपनी मासूमियत और पवित्र भक्ति से अपने पिता के क्रूर आदेशों का विरोध करता था! यह क्या हो गया? क्या यह भगवान विष्णु का चमत्कार था, या फिर एक बच्चे की सच्ची भक्ति की शक्ति?

प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकश्यप का गुस्सा

प्रह्लाद ने बचपन से ही भगवान विष्णु की पूजा शुरू कर दी, लेकिन जब उसके पिता ने उसे देखा, तो गुस्से से आगबबूला हो गया और कहा कि तू मेरे आदेशों का पालन क्यों नहीं करता? भगवान विष्णु के नाम से तुझे क्या मिलता है? यह सवाल हिरण्यकश्यप ने बार-बार प्रह्लाद से पूछा. लेकिन प्रह्लाद के दिल में तो सिर्फ विष्णु का नाम था.

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए एक के बाद एक साजिशें रचीं. पहले, उसने अपने बेटे को तालाब में डुबोने की कोशिश की, फिर उसे हाथी के पैरों के नीचे कुचलने की योजना बनाई. लेकिन हर बार प्रह्लाद का कोई न कोई चमत्कारी तरीका उसे बचा लेता था. हर बार उसका विश्वास और भगवान की कृपा उसे संकट से उबारती थी.

जब जल गई होलिका

एक दिन, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया और उसे कहा, “तू मेरे बेटे को मारने का काम कर.” होलिका के पास एक वरदान था कि वह जिस चादर को ओढ़ लेती थी, उस पर आग का असर नहीं होता था. तो, उसने प्रह्लाद को गोदी में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई. वह यह सोचकर निश्चिंत थी कि यह उसे कुछ नहीं होने देगा.

लेकिन क्या हुआ? भगवान विष्णु की इच्छा से होलिका जल गई, और प्रह्लाद, जो मासूम था, आग से बचकर बाहर निकल आया. यह एक चमत्कारी घटना थी, जो प्रह्लाद की भक्ति और भगवान विष्णु की शक्ति को साबित करती थी. और यहीं से हरदोई की होली की शुरुआत हुई.

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राख से गुलाल तक

इस घटना के बाद लोग उस राख से खेलने लगे थे, मानो वह प्रह्लाद की जीवन की जीत का प्रतीक हो. धीरे-धीरे, यह परंपरा बदलकर गुलाल और रंगों में तब्दील हो गई, और इसने होली का रूप ले लिया.

आज भी, हरदोई में प्रह्लाद कुंड और नरसिंह भगवान का मंदिर स्थित हैं, जो इस महान घटना की याद दिलाते हैं. उस टीले पर, जहां कभी प्रह्लाद का महल हुआ करता था, आज भी लोग आकर श्रद्धा से फूल चढ़ाते हैं और होली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

नरसिंह अवतार

अब हिरण्यकश्यप हर बार असफल होकर और भी तैश में आ गया था. एक दिन उसने प्रह्लाद को सभा में बुलाया और उसे खंभे से बांधकर मारने की योजना बनाई. लेकिन क्या हुआ? भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और उस खंभे को फाड़कर हिरण्यकश्यप का वध किया. यह घटना, जो होली के दिन घटी, अब भाईचारे, सत्य और अच्छाई की विजय का प्रतीक बन चुकी है.

हरदोई की होली

और फिर, इस जीत की खुशी में हरदोई में होली मनाई जाने लगी. यह न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि यह भगवान की कृपा और प्रह्लाद की भक्ति का प्रतीक बन गया. हर साल, जब होली आती है, लोग हरदोई के इतिहास को याद करते हैं और एक-दूसरे को गुलाल से रंगते हैं, जैसे प्रह्लाद ने अपनी भक्ति और साहस से दुनिया को रंगा था.

तो, जब भी आप इस होली के मौसम में रंगों से खेलें, याद रखें कि यह सिर्फ एक रंगीन त्योहार नहीं है, बल्कि एक महान कहानी का हिस्सा है. यह कहानी एक मासूम की श्रद्धा, उसके साहस और एक भगवान के चमत्कारी प्रेम की है, जिसने न केवल हरदोई, बल्कि पूरे विश्व को रंगों से भर दिया!

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