क्या था वंदे मातरम् का वो सच, जिस पर संसद से सड़क तक आज भी छिड़ा है ‘महासंग्राम’? समझिए पूरी ABCD

PM Modi On Vande Mataram: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में उस गौरव को वापस लाने की बात करते हैं जो इतिहास के पन्नों में कहीं दब गया था. लोकसभा में चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने यह संदेश दिया है कि 'वंदे मातरम्' सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत के पुनर्जागरण का प्रतीक है.
Vande Mataram Controversy

सदन में पीएम मोदी ने की वंदे मातरम् की चर्चा

Vande Mataram Controversy: ‘वंदे मातरम्’… ये दो शब्द सुनते ही रगों में देशभक्ति दौड़ने लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस गीत ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी, उसे लेकर आजाद भारत में इतनी राजनीति क्यों हुई? हाल ही में पीएम मोदी ने लोकसभा में एक बार फिर इस गौरवशाली गीत का जिक्र किया, जिसके बाद इसकी कहानी फिर से चर्चा में है. आइए, आसान भाषा में समझते हैं वंदे मातरम् और विवाद की पूरी कहानी….

कैसे हुई वंदे मातरम् रचना?

यह बात है 1870 के दशक की. बंगाल के जाने-माने लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय सरकारी नौकरी में थे. उस वक्त अंग्रेजों का ‘गॉड सेव द क्वीन’ गाना अनिवार्य जैसा था. बंकिम बाबू को यह बात चुभती थी. उन्होंने सोचा कि भारत माता की स्तुति में एक ऐसा गीत होना चाहिए जो मिट्टी की खुशबू और मां की शक्ति से भरा हो. 1882 में उन्होंने अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इस गीत को शामिल किया. यह गीत संस्कृत और बांग्ला का मिश्रण था. 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे गाकर सुनाया, और देखते ही देखते यह आजादी के दीवानों का सबसे बड़ा नारा बन गया.

अंग्रेजों का डर और क्रांतिकारियों की हिम्मत

अंग्रेज इस गीत से इतना डरते थे कि उन्होंने इस पर बैन लगा दिया था. जो भी ‘वंदे मातरम्’ बोलता, उसे जेल में डाल दिया जाता या कोड़े बरसाए जाते. लेकिन यह नारा हर क्रांतिकारी की जुबान पर था, चाहे वो भगत सिंह हों या लाला लाजपत राय.

कांग्रेस और मुस्लिम लीग का विवाद

विवाद तब शुरू हुआ जब 1930 के दशक में मुस्लिम लीग ने इस पर आपत्ति जताई. उनका कहना था कि इस गीत में भारत को एक ‘देवी’ (मां दुर्गा) के रूप में पूजा गया है, जो इस्लाम के एकेश्वरवाद, ‘एक अल्लाह को मानना’ के खिलाफ है. विवाद बढ़ता देख कांग्रेस ने एक बीच का रास्ता निकाला. 1937 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने तय किया कि गीत के केवल पहले दो पद (Stanzas) ही गाए जाएंगे, क्योंकि उनमें सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन है, किसी धार्मिक प्रतीक का नहीं. कई लोग आज भी कांग्रेस के इस कदम को ‘तुष्टिकरण’ की राजनीति मानते हैं, जबकि कांग्रेस इसे देश की एकता बनाए रखने का प्रयास कहती थी.

राष्ट्रगान क्यों नहीं बना?

जब भारत आजाद हुआ, तो ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगान बनाने की प्रबल दावेदारी थी. लेकिन, पुराने विवादों की वजह से कुछ गुटों को आपत्ति भी थी. उस समय माना गया कि ‘जन गण मन’ की धुन बैंड और अंतरराष्ट्रीय मंचों के लिए ज्यादा उपयुक्त है. नतीजा? 24 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि ‘जन गण मन’ राष्ट्रगान होगा, लेकिन ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत (National Song) का दर्जा दिया जाएगा और इसे राष्ट्रगान के बराबर ही सम्मान मिलेगा.

पीएम मोदी और लोकसभा में नई चर्चा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में उस गौरव को वापस लाने की बात करते हैं जो इतिहास के पन्नों में कहीं दब गया था. लोकसभा में चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने यह संदेश दिया है कि ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत के पुनर्जागरण का प्रतीक है. बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर आरोप लगाती है कि उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ के साथ समझौता किया, जबकि कांग्रेस का तर्क रहा है कि उन्होंने देश की विविधता का सम्मान किया.

विवादों से परे है यह गीत

आज ‘वंदे मातरम्’ हर भारतीय की अस्मिता का हिस्सा है. चाहे सियासत कितनी भी हो, हकीकत यही है कि इसी नारे को बोलते हुए हजारों युवा फांसी के फंदे पर झूल गए थे. यह गीत किसी पार्टी का नहीं, बल्कि हर उस भारतीय का है जो अपनी मिट्टी से प्यार करता है. 1905 के ‘बंग-भंग’ आंदोलन के दौरान वंदे मातरम् इतना लोकप्रिय हुआ कि अंग्रेजों ने इसे बोलने पर ‘राजद्रोह’ का मुकदमा चलाना शुरू कर दिया था!

‘आनंदमठ’ की क्या है कहानी?

‘वंदे मातरम्’ जिस ‘आनंदमठ’ उपन्यास से निकला है, उसकी कहानी किसी बॉलीवुड थ्रिलर से कम नहीं है. यह कहानी हमें उस दौर में ले जाती है जब देश अकाल और अंग्रेजों के जुल्म से जूझ रहा था. 1882 में छपा यह उपन्यास ‘संन्यासी विद्रोह’ (Sannyasi Rebellion) पर आधारित है. यह कहानी 1770 के दशक के बंगाल की है, जब भीषण अकाल पड़ा था, लेकिन अंग्रेज अधिकारी टैक्स वसूलने के लिए लगातार बेरहमी कर रहे थे.

संन्यासियों की गुप्त सेना

उपन्यास में ‘आनंदमठ’ एक गुप्त ठिकाना है, जहां हिंदू संन्यासी और आम लोग मिलकर एक सेना बनाते हैं. ये संन्यासी आम भिक्षु नहीं, बल्कि लड़ाके थे. वे अंग्रेजों के खजाने को लूटकर गरीबों में बांट देते थे.

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वह पल जब गीत का जन्म हुआ

उपन्यास के एक बेहद भावुक सीन में मुख्य किरदार भवानंद एक नए युवक महेन्द्र को ‘आनंदमठ’ के जंगलों से ले जा रहे होते हैं. अचानक भवानंद ‘वंदे मातरम्’ गाना शुरू करते हैं. महेन्द्र हैरान होकर पूछता है कि यह आप किसकी वंदना कर रहे हैं? क्या यह कोई देवी है? भवानंद जवाब देते हैं— “नहीं, यह मेरी मातृभूमि है. हमारी धरती ही हमारी मां है, जो सात करोड़ बच्चों के बल से शक्तिशाली है.” यहीं से यह विचार फैला कि देश की मिट्टी ही सबसे बड़ी ‘मां’ है और उसकी सेवा ही सबसे बड़ा धर्म.

एक हैरान करने वाली कहानी ये भी है कि आनंदमठ के अंदर तीन कमरे थे, जिनमें भारत माता के तीन अलग-अलग रूप दिखाए गए थे. मां जो पहले थी, वैभवशाली और समृद्ध (सोने की चिड़िया). मां जो अब है…अकाल और गुलामी की वजह से कंकाल जैसी (दुखी भारत). मां जो भविष्य में होगी: दस हाथों में हथियार लिए, दुश्मनों का संहार करने वाली दुर्गा (आजाद भारत).

क्यों हुआ यह गीत इतना मशहूर?

उपन्यास के अंत में दिखाया गया है कि कैसे ये निहत्थे संन्यासी अपनी मातृभूमि की जय-जयकार करते हुए अंग्रेजों की बंदूकों और तोपों से भिड़ जाते हैं. इस ‘फिक्शन’ कहानी ने असल जिंदगी के क्रांतिकारियों में आग भर दी. अंग्रेज इसी बात से चिढ़ गए. उन्हें लगा कि यह गीत लोगों को भड़का रहा है कि वे अपनी धरती को ‘देवी’ मानकर उसके लिए जान दे दें. इसी वजह से ‘आनंदमठ’ और ‘वंदे मातरम्’ दोनों पर ब्रिटिश सरकार ने लंबे समय तक पाबंदी लगाए रखी थी.

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