इलाहाबाद HC के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ होगी महाभियोग की कार्रवाई? प्रस्ताव पर 50 सांसदों ने किए सिग्नेचर! जानें पूरा मामला

Justice Shekhar Kumar Yadav: एक कार्यक्रम में दिए गए कथित विवादित बयानों के कारण उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की चर्चा ने अब जोरों पर है.
Justice Shekhar Kumar Yadav

जज शेखर कुमार यादव

Justice Shekhar Kumar Yadav: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिए गए कथित विवादित बयानों के कारण उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की चर्चा अब जोरों पर है. विपक्षी सांसदों ने इस मामले में 54 सांसदों ने नोटिस दायर किया है, जो अब तक तकनीकी कारणों से लंबित है.

2024 में प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल के एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कथित तौर पर विवादित बयान दिए थे. उन्होंने कहा था कि मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि यह हिंदुस्तान है और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा. यही कानून है.’ इसके अलावा, उन्होंने समान नागरिक संहिता (UCC) का समर्थन करते हुए और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ टिप्पणियां कीं, जिसे विपक्ष ने ‘घृणा भाषण’ और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताया था.

जस्टिस यादव का ये बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. जिसके बाद विपक्षी नेताओं और संगठनों ने इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के लिए खतरा बताया. सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर 2024 को इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगी.

महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस

13 दिसंबर 2024 को, वरिष्ठ अधिवक्ता और स्वतंत्र राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 54 सांसदों ने राज्यसभा महासचिव पी.सी. मोदी को महाभियोग का नोटिस सौंपा. इस नोटिस में जस्टिस यादव पर ‘घृणा भाषण और सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने’ का आरोप लगाया गया, जो संविधान के धर्मनिरपेक्षता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ माना गया. नोटिस में कहा गया कि उनके बयान ‘न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं.’

महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जजेस (इन्क्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत कम से कम 50 राज्यसभा सांसदों या 100 लोकसभा सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं.

हस्ताक्षर सत्यापन में अड़चन

महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया तब रुक गई जब राज्यसभा सचिवालय ने हस्ताक्षरों की सत्यापन प्रक्रिया शुरू की. एक सांसद, सरफराज अहमद, के हस्ताक्षर दो जगह पाए गए, जिसके बाद उन्होंने दो बार हस्ताक्षर करने से इनकार किया. इसके चलते सभी 54 हस्ताक्षरों की विस्तृत जांच शुरू की गई.

वर्तमान स्थिति: अब तक 44 सांसदों ने अपने हस्ताक्षरों की पुष्टि की है, जबकि बाकि के हस्ताक्षरों का सत्यापन बाकी है. हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बाकी 6 सांसदों ने भी हस्ताक्षर कर दिए हैं.

तकनीकी अड़चन: यदि किसी हस्ताक्षर में गड़बड़ी पाई जाती है, जैसे कि दोहरे हस्ताक्षर या प्रारूप में त्रुटि, तो प्रस्ताव तकनीकी आधार पर खारिज हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई की. 10 दिसंबर 2024 को, कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली से मामले की रिपोर्ट मांगी. 17 दिसंबर 2024 को, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस यादव को तलब किया और उन्हें अपने बयानों पर माफी मांगने की सलाह दी. हालांकि, जस्टिस यादव ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और दावा किया कि उनके बयान सामाजिक मुद्दों को दर्शाते हैं और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हैं.

मार्च 2025 में, राज्यसभा सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कहा कि महाभियोग प्रस्ताव लंबित होने के कारण कोई समानांतर इन-हाउस जांच नहीं होनी चाहिए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जांच स्थगित कर दी.

महाभियोग प्रक्रिया: आगे क्या?

यदि हस्ताक्षर सत्यापन पूरा हो जाता है और नोटिस स्वीकार कर लिया जाता है, तो राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित कर सकते हैं, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक हाई कोर्ट मुख्य न्यायाधीश, और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे. यह समिति जस्टिस यादव के खिलाफ आरोपों की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेगी.

आवश्यक बहुमत: महाभियोग प्रस्ताव को पारित करने के लिए दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में विशेष बहुमत (कुल सदस्यता का बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत) की आवश्यकता होती है.

संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत किसी जज को महाभियोग के माध्यम से हटाया जा सकता है.

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भारत में महाभियोग का इतिहास

भारत में महाभियोग की प्रक्रिया दुर्लभ रही है, और अब तक कोई भी जज इस प्रक्रिया के तहत हटाया नहीं गया है.

वी. रामास्वामी (1991): पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया, लेकिन दो-तिहाई बहुमत न मिलने के कारण विफल रहा.

सौमित्र सेन (2011): कलकत्ता हाई कोर्ट के जज के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन लोकसभा में मतदान से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

पी.डी. दिनाकरन (2011): सिक्किम हाई कोर्ट के जज के खिलाफ जांच शुरू हुई, लेकिन उन्होंने भी प्रक्रिया पूरी होने से पहले इस्तीफा दे दिया.

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