पहलगाम हमले ने तोड़ी जम्मू-कश्मीर की उम्मीदें, क्या अब और लंबा होगा राज्य का इंतजार?
प्रतीकात्मक तस्वीर
Pahalgam Attack: जम्मू-कश्मीर के लोग सालों से उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब उनका प्यारा राज्य फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा पाएगा. लेकिन, पहलगाम में हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले ने इन उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फेर दिया है. आखिर क्या है पूरा माजरा? आइए जानते हैं.
2019 से शुरू हुआ इंतजार
2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया था. तभी से लोग पूछ रहे हैं, “राज्य का दर्जा कब मिलेगा?” सरकार ने वादे तो खूब किए, लेकिन हर बार बात ‘सही समय’ पर अटक जाती है.
सपनों पर चोट है पहलगाम हमला
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सब कुछ बदल दिया. इस हमले में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय की जान चली गई. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का दिल टूट गया. उन्होंने कहा, “मैंने पर्यटकों को बुलाया था, लेकिन उनकी सुरक्षा नहीं कर पाया. क्या अब मैं राज्य का दर्जा मांगूं?” उनकी बातों से साफ है कि मौजूदा हालात में यह मांग दूर की कौड़ी लगती है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और वादे
पिछले साल 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के 370 हटाने के फैसले को सही ठहराया और कहा, “जल्द से जल्द राज्य का दर्जा दिया जाए.” कोर्ट ने 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव कराने का भी आदेश दिया, उसे भी पूरा कर लिया गया, लेकिन राज्य का दर्जा? वो अभी भी अधर में लटका है.
पीएम मोदी ने दो बार- जून और सितंबर 2024 में श्रीनगर और कटड़ा में वादा किया कि राज्य का दर्जा जल्द मिलेगा. गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा, “हम वादा निभाएंगे, लेकिन सही वक्त पर.” लेकिन पहलगाम हमले के बाद यह “सही वक्त” अब और दूर होता दिख रहा है.
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चुनाव हुए, फिर भी अधूरी उम्मीद
2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव शांति से हुए. अमित शाह ने गर्व से कहा था, “40 साल बाद कश्मीर में बिना गोली, बिना आंसू गैस के वोटिंग हुई.” सबको लगा, अब तो राज्य का दर्जा पक्का. लेकिन पहलगाम हमले ने सारी उम्मीदों पर ब्रेक लगा दिया. अब तो सेना के रिटायर्ड अधिकारी भी कह रहे हैं कि इतनी जल्दी चुनाव कराना शायद गलत था.
पहलगाम हमले ने जम्मू-कश्मीर की सियासत को फिर से उलझा दिया है. आतंकवाद का साया एक बार फिर गहरा गया है, और राज्य का दर्जा अब ठंडे बस्ते में चला गया लगता है. सवाल यह है कि यह इंतजार और कितना लंबा होगा? क्या जम्मू-कश्मीर के लोग जल्द अपने सपनों का ‘राज्य’ देख पाएंगे, या फिर “सही वक्त” का इंतजार बरसों तक चलेगा?