“15 सीट दे दो नहीं तो 100 पर लड़ेंगे”, NDA को ऐसे क्यों धमका रहे हैं जीतन राम? जानिए मांझी की मंशा
जीतन राम मांझी की बड़ी मांग
Jitan Ram Manjhi Seat Sharing: बिहार की राजनीति का मैदान हमेशा ही आग उगलता रहता है और अब केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने फिर से एक ऐसा बयान दे दिया है, जो एनडीए के कैंप में हलचल मचा रहा है. बोधगया में पत्रकारों से मुखातिब होते हुए मांझी ने कहा, “अगर एनडीए हमें 15 सीटें नहीं देगा, तो हम अकेले ही 100 सीटों पर उतरेंगे.” यह सुनते ही सियासी पंडितों के कान खड़े हो गए. लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह धमकी क्यों? इसके पीछे बिहार के सियासी समीकरण क्या कहते हैं? आइए, मांझी की राजनीति की परतें खोलते हैं, वो भी आसान भाषा में…
मांझी का ‘करो या मरो’ का दांव
मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा कोई नई पार्टी नहीं है. 2015 में नीतीश कुमार के साथ टकराव के बाद बनी यह पार्टी अब 10 साल की हो चुकी है, लेकिन अभी तक ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ का तमगा लगाए घूम रही है. चुनाव आयोग के नियम साफ हैं कि किसी पार्टी को ‘राज्य स्तर की मान्यता’ पाने के लिए बिहार विधानसभा में कम से कम 8 सीटें जीतनी होंगी या कुल वोटों का 6% हिस्सा लाना होगा. मांझी का गणित बड़ा सीधा है. हर विधानसभा क्षेत्र में उनके पास 10-15 हजार वोटर तैयार हैं, लेकिन जीत की गारंटी हर सीट पर तो नहीं. इसलिए 15 सीटें मांगकर वे कह रहे हैं, “भाई, इतनी मिलेंगी तो 8 जीत लेंगे, वरना अकेले लड़कर भी 6% वोट काट लेंगे.”
2020 के चुनाव में HAM को NDA ने सिर्फ 7 सीटें दीं, जिनमें से मांझी ने 4 जीतीं. इसमें इमामगंज, बरचट्टी शामिल है. लेकिन लोकसभा चुनाव में सिर्फ गया सीट मिली और मांझी ने उसे 51% वोट शेयर से जीता. अब विधानसभा 2025 के लिए मांझी की भूख बढ़ गई है. हाल के महीनों में उनकी डिमांड 20, फिर 35-40 तक पहुंच चुकी है, लेकिन सितंबर 2025 तक वापस 15 पर आ गई. शायद NDA की चेतावनी का असर है.
मांझी का तर्क?
जीतन राम मांझी ने कहा, “हम बिना पैसे खर्च किए भीड़ जुटा लेते हैं, जबकि बाकी पार्टियां पैसे बरबाद करती हैं.” अगर राजनीतिक समझ रखने वाले लोगों की मानें तो यह दावा उनकी दलित-मुस्लिम-ईबीसी वोट बैंक की ताकत दिखाता है, जो बिहार के ग्रामीण इलाकों में मजबूत है.
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NDA में ‘छोटे भाई’ की बगावत?
मांझी की यह ‘धमकी’ बिहार की सियासत को कई मोर्चों पर हिला सकती है. बिहार में NDA का फॉर्मूला कुछ ऐसा है, BJP करीब 100-110 सीटें लेगी, JDU 90-100 से कम पर नहीं मानेगी. चिराग पासवान की LJP(R) को भी 20-25 सीटें चाहिए. वहीं, बाकी छोटे सहयोगियों जैसे मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की RLM को भी 10-15 सीटें चाहिए. लेकिन मांझी की 15 सीटों की मांग LJP से टकरा रही है, जो खुद 40 मांग रही थी. अगर HAM अकेले 100 सीटों पर उतरी, तो NDA के वोट बंटेंगे, खासकर दलित बेल्ट (गया, जहानाबाद, औरंगाबाद) में, जहां मांझी का असर है. 2020 में LJP की बगावत ने JDU को 40 सीटें हराई थीं. अब HAM की धमकी वैसा ही खतरा पैदा कर सकती है.
दूसरा, विपक्ष को फायदा. महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) पहले से ही NDA की एकजुटता पर सवाल उठा रहा है. तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ चल रही है, और अगर NDA में फूट पड़ी, तो RJD को ‘जातिगत जनगणना’ जैसे मुद्दों पर आसानी से फायदा हो सकता. मांझी का बयान विपक्ष को चारा दे रहा है कि “देखो, NDA के छोटे साथी ही तंग आ चुके हैं!”
तीसरा, मांझी की स्ट्रैटेजी. 80 साल के इस दिग्गज ने कभी नीतीश के साथ तो कभी उनके खिलाफ खेला है. 2023 में बेटे संतोष सुमन ने महागठबंधन छोड़ NDA जॉइन किया, और अब मांझी केंद्रीय मंत्री हैं. यह धमकी उनकी ‘बाजारू कीमत’ बढ़ाने का तरीका है. ज्यादा सीटें मिलेंगी तो सरकार में ज्यादा प्रभाव, वरना लोकसभा सीट बचाने के लिए NDA को मजबूर करना. लेकिन रिस्क भी है. अकेले लड़ने पर HAM का वोट शेयर बिखर सकता है, और मान्यता का सपना चूर हो सकता है.
बिहार का जातिगत गणित और NDA का बैलेंस
बिहार की सियासत जाति पर टिकी है और मांझी का वोट बैंक इसी का कमाल है. HAM मुख्य रूप से मुसहर, ईबीसी और कुछ मुस्लिम वोटों पर निर्भर है. बिहार में दलित 16% हैं, लेकिन मुसहर जैसे सब-ग्रुप (3-4%) अक्सर ‘वोट कटर’ साबित होते हैं. 2020 में HAM के 4 विधायक NDA को जिताने में मददगार साबित हुए, लेकिन अब मांझी चाहते हैं कि BJP-JDU उन्हें ‘जूनियर पार्टनर’ न समझें.
बताते चलें कि मांझी के लिए ‘सम्मान की जंग’ है, मान्यता, ज्यादा सीटें, और सरकार में हिस्सेदारी. लेकिन अगर NDA ने सुलझा लिया तो सब ठीक. वरना, 2025 का चुनाव NDA के लिए ‘टेस्ट ऑफ यूनिटी’ बन जाएगा.