जाट दांव, अब हो गया तमिल…NDA ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए CPR को ही क्यों चुना? फूल रही होगी DMK की सांसें!

राधाकृष्णन के नाम से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A., खासकर तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. DMK का ओबीसी वोट बैंक, खासकर गाउंडर समुदाय पर मजबूत पकड़ रही है. अगर DMK राधाकृष्णन का विरोध करती है, तो यह उनके अपने वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम उठा सकता है.
cp radhakrishnan

चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन

VP Election 2025: भारतीय राजनीति में एक बार फिर दक्षिण भारत की धमक सुनाई दे रही है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र के गवर्नर चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन (CP Radhakrishnan) को चुना है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर NDA ने सीपी राधाकृष्णन को ही क्यों चुना? और इस चयन से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की नींद क्यों उड़ गई है?

तमिलनाडु के तिरुप्पुर में जन्मे सीपी राधाकृष्णन एक ऐसे राजनेता हैं, जिनकी जड़ें जमीन से जुड़ी हैं और विचारधारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से मजबूती से बंधी हैं. 16 साल की उम्र में RSS से जुड़ने वाले राधाकृष्णन ने अपनी राजनीतिक यात्रा जनसंघ से शुरू की थी. 1998 और 1999 में कोयंबटूर से लोकसभा सांसद रह चुके हैं और तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी.

उनकी सादगी और सभी दलों के नेताओं से अच्छे रिश्तों ने उन्हें ‘कोयंबटूर का वाजपेयी’ और ‘अजातशत्रु’ (जिसका कोई शत्रु न हो) जैसे नाम दिलाए. 2004 से 2007 तक तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 19,000 किलोमीटर की रथ यात्रा निकाली. हाल ही में, वे झारखंड, तेलंगाना, पुडुचेरी और अब महाराष्ट्र के गवर्नर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि बीजेपी ने ऐसा दांव क्यों खेला? क्यों एनडीए का जाट दांव अब तमिल हो गया?

एक तीर से कई निशाने

उपराष्ट्रपति चुनाव 9 सितंबर 2025 को होना है, और नामांकन की अंतिम तारीख 21 अगस्त है. NDA ने राधाकृष्णन के चयन के साथ एक तीर से कई निशाने साधे हैं. सबसे बड़ा कारण है उनका तमिलनाडु के प्रभावशाली ओबीसी समुदाय, खासकर कोंगु वेल्लालर (गाउंडर) समुदाय से ताल्लुक. यह समुदाय पश्चिमी तमिलनाडु के कोंगु क्षेत्र में वोटों को तय करने में अहम भूमिका निभाता है. तमिलनाडु में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले NDA का यह कदम बीजेपी की दक्षिण भारत में पैठ बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है.

राधाकृष्णन का चयन न सिर्फ सामाजिक समीकरणों को मजबूत करता है, बल्कि AIADMK जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन को भी पुख्ता करता है, क्योंकि AIADMK प्रमुख एडप्पादी पलानीस्वामी भी गाउंडर समुदाय से आते हैं. इसके अलावा, बीजेपी के तमिलनाडु चेहरा के. अन्नामलाई के गाउंडर समुदाय से होने के बावजूद, जब उन्हें हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, तो इस समुदाय में नाराजगी देखी गई थी. राधाकृष्णन का नाम सामने लाकर NDA ने इस नाराजगी को शांत करने की कोशिश की है.

विपक्ष की टेंशन

राधाकृष्णन के नाम से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A., खासकर तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. DMK का ओबीसी वोट बैंक, खासकर गाउंडर समुदाय पर मजबूत पकड़ रही है. अगर DMK राधाकृष्णन का विरोध करती है, तो यह उनके अपने वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम उठा सकता है. वहीं, अगर वे समर्थन करते हैं, तो NDA को राजनीतिक लाभ मिल सकता है. इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं जब क्षेत्रीय भावनाओं के आधार पर विपक्ष ने सत्तापक्ष के उम्मीदवारों का समर्थन किया, जैसे प्रणब मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल और एपीजे अब्दुल कलाम के मामले में. विश्लेषकों का मानना है कि DMK राधाकृष्णन को समर्थन दे सकती है, क्योंकि उनकी सौम्य छवि और तमिल पहचान को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा.

धनखड़ से राधाकृष्णन

2022 में पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जाट समुदाय के प्रभाव के चलते चुने गए थे. वे अपने कार्यकाल में कई बार विवादों में रहे. उनकी मुखर शैली और विपक्ष के साथ तीखी बहस ने उन्हें चर्चा में रखा. वहीं, राधाकृष्णन की छवि एक शांत, सहनशील और संतुलित नेता की है, जो राज्यसभा के सभापति के रूप में संवैधानिक भूमिका के लिए ज्यादा उपयुक्त मानी जा रही है. धनखड़ ने पिछले दिनों स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद यह पद खाली हुआ.

मां का आशीर्वाद और ‘राधाकृष्णन’ नाम की कहानी

राधाकृष्णन की मां जानकी अम्माल ने उनके नामकरण की एक दिलचस्प कहानी साझा की. उन्होंने बताया कि जब सीपी राधाकृष्णन का जन्म हुआ, तो परिवार ने प्रार्थना की थी कि वह पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की तरह महान बनें. 17 अगस्त को जब राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया गया, तो जानकी अम्माल ने तिरुप्पुर में मिठाइयां बांटकर खुशी मनाई. उन्होंने कहा, “हमारा सपना आज सच हो गया.”

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NDA की जीत पक्की?

NDA के पास लोकसभा और राज्यसभा में 420 से ज्यादा सांसदों का समर्थन है, जो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जरूरी बहुमत से कहीं अधिक है. इसके अलावा, YSRCP और BJD जैसे दलों का समर्थन भी NDA को मिल सकता है. राजनाथ सिंह ने विपक्ष से बातचीत की बात कही है, ताकि राधाकृष्णन की जीत सर्वसम्मति से हो. अगर विपक्ष अपना उम्मीदवार उतारता है, तो भी NDA की जीत लगभग तय मानी जा रही है.

क्या है असली मकसद?

राधाकृष्णन का चयन सिर्फ उपराष्ट्रपति पद के लिए नहीं, बल्कि बीजेपी की दक्षिण भारत में विस्तार की महत्वाकांक्षा दिखा रही है. तमिलनाडु में DMK और AIADMK के दबदबे के बीच बीजेपी अपनी जमीन तैयार कर रही है. राधाकृष्णन की सौम्य छवि, ओबीसी समुदाय से जुड़ाव और सभी दलों के नेताओं से अच्छे रिश्ते उन्हें इस भूमिका के लिए एकदम फिट बनाते हैं.

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