सत्ता के ‘सिंहासन’ से गुमनामी की कब्र तक…कैसे रहे पाकिस्तान के इन तानाशाहों के आखिरी दिन

पाकिस्तान के इन चार तानाशाहों ने सत्ता में रहते हुए मुल्क को अपने ढंग से चलाया, लेकिन उनके आखिरी दिन त्रासदी, गुमनामी, और रहस्यों के साये में बीते. अयूब की तन्हाई, याह्या की बदनामी, जिया का रहस्यमयी अंत और मुशर्रफ की बीमारी. ये कहानियां बताती हैं कि सत्ता का अहंकार और जनता की अनदेखी आखिरकार अपने ही जाल में फंस जाती है.
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पाकिस्तानी तानाशाह

Pakistan: पाकिस्तान की सियासत और सत्ता का इतिहास सैन्य तानाशाहों की दास्तानों से भरा पड़ा है. इन तानाशाहों ने फौजी बूटों तले जम्हूरियत को कुचला, मुल्क को अपनी मर्जी से चलाया, लेकिन उनके आखिरी दिन? वो किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं. अयूब खान, याह्या खान, जनरल जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ…इन चार सैन्य शासकों ने पाकिस्तान को लोहे की मुट्ठी में जकड़ा, लेकिन नियति ने उनके साथ ऐसा खेल खेला कि उनकी कहानियां त्रासदी, रहस्य और गुमनामी के रंगों में रंग गईं. आइए, इन तानाशाहों के अंतिम दिनों की कहानी विस्तार से जानते हैं.

पाकिस्तानी सत्ता का पहला तानाशाह अयूब खान

पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक अयूब खान ने 1958 में सत्ता पर कब्जा कर इतिहास रचा. वे सबसे कम उम्र के जनरल थे, जिन्होंने खुद को फील्ड मार्शल घोषित किया. उनके शासन में पाकिस्तान ने आर्थिक तरक्की जरूर देखी, लेकिन भ्रष्टाचार और असमानता ने जनता का गुस्सा भड़का दिया. 1969 तक सड़कों पर विरोध प्रदर्शन और सियासी अस्थिरता ने उन्हें घेर लिया. बीमार और थके हुए अयूब ने 25 मार्च 1969 को इस्तीफा दे दिया और सत्ता याह्या खान को सौंप दी.

जनता उन्हें तानाशाह के रूप में ही याद रखती थी. 1974 में रावलपिंडी में उनकी मृत्यु हुई, तब तक पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट चुका था. उस जनरल को याद करने वाला कोई नहीं बचा, जिसने कभी मुल्क को अपने इशारों पर नचाया था.

बांग्लादेश के जन्म का ‘गुनहगार’ याह्या खान

याह्या खान ने अयूब से सत्ता छीनी, लेकिन उनकी कहानी 1971 के भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के जन्म के साथ बदनामी की स्याही से लिखी गई. जब बांग्लादेश की आजादी का आंदोलन भड़का, याह्या को अहसास हो गया था कि वो ये जंग हार रहे हैं. उन्होंने अमेरिका पर भरोसा किया, राष्ट्रपति निक्सन ने सातवां नौसैनिक बेड़ा भेजने का वादा किया, लेकिन वो बेड़ा बंगाल की खाड़ी में कहीं ‘कछुए की चाल’ से खो गया. ढाका के पतन तक अमेरिकी मदद का कोई अता-पता नहीं था.

बांग्लादेश को खोने और भारत से हारने के बाद याह्या जनता और सेना का भरोसा गंवा चुके थे. 20 दिसंबर 1971 को उन्होंने सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. लेकिन इसके बाद? याह्या को खारियां के पास एक जर्जर रेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया. मक्खियां, मच्छर, सांप, और बिजली-पानी की किल्लत…ये थी उनकी आखिरी जिंदगी. भुट्टो के हटने के बाद जनरल जिया ने उन्हें रिहा किया, लेकिन 10 अगस्त 1980 को याह्या की मृत्यु हो गई.

जनरल जिया-उल-हक: इस्लामी तानाशाह का रहस्यमयी अंत

जनरल जिया-उल-हक ने 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर सत्ता हथियाई. भुट्टो ने ही जिया को प्रमोट किया था. 1977 से 1988 तक जिया ने पाकिस्तान को इस्लामी रंग में रंग दिया—शरिया कानून, मदरसों का जाल, और कट्टरपंथी विचारधारा. लेकिन सत्ता के आखिरी दिनों में जिया डर के साये में जी रहे थे. 14 अगस्त 1988 को पाकिस्तान की आजादी के जश्न के लिए जिया ने प्रेसिडेंट हाउस के बजाय आर्मी हाउस को चुना. पेड़ों से डर लगने लगा था, तो 30-40 पेड़ कटवा दिए. 17 अगस्त 1988 को बहावलपुर में अमेरिकी MI अब्राम्स टैंक का ट्रायल देखने गए. ट्रायल के बाद जिया, अमेरिकी राजदूत अर्नोल्ड राफेल और अन्य वरिष्ठ अधिकारी एक विमान में इस्लामाबाद के लिए रवाना हुए. लेकिन टेक-ऑफ के कुछ मिनट बाद ही विमान से संपर्क टूट गया. और फिर? विमान क्रैश! जिया, उनके साथी, और राजदूत की मौत. जांच में साजिश की आशंका जताई गई, लेकिन आज तक ये रहस्य अनसुलझा है.

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करगिल का खलनायक परवेज मुशर्रफ

भारत में परवेज मुशर्रफ को 1999 के करगिल युद्ध के खलनायक के रूप में याद किया जाता है. 1998 में सेना प्रमुख बने मुशर्रफ ने 12 अक्टूबर 1999 को नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. कोलंबो से कराची लौटते वक्त उन्हें नहीं पता था कि जमीन पर सियासी तूफान मचा हुआ है. लेकिन मुशर्रफ ने चीते की फुर्ती से रणनीति बनाई और कुछ ही घंटों में पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी बन बैठे. उनके शासन में पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया, लेकिन आंतरिक अस्थिरता और करगिल की हार ने उनकी छवि धूमिल की. 2001 में भारत के तत्कालीन पीएम वाजपेयी के बुलावे पर आगरा शिखर सम्मेलन में आए, लेकिन उनकी हठधर्मिता ने बातचीत को नाकाम कर दिया. बलूच नेता अकबर बुग्ती की हत्या ने उनके पतन की शुरुआत की.

2008 में जनता और विपक्ष के दबाव में मुशर्रफ को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वे दुबई और लंदन में निर्वासित जीवन जीने लगे. 2013 में चुनाव लड़ने पाकिस्तान लौटे, लेकिन देशद्रोह के मुकदमों ने उन्हें घेर लिया. 2023 में दुबई में एक दुर्लभ बीमारी, एमाइलॉयडोसिस ने उनकी जिंदगी खत्म कर दी. उनके आखिरी दिन अपमान, अवसाद, और बीमारी के बीच गुजरे.

क्या है इन कहानियों का निचोड़?

पाकिस्तान के इन चार तानाशाहों ने सत्ता में रहते हुए मुल्क को अपने ढंग से चलाया, लेकिन उनके आखिरी दिन त्रासदी, गुमनामी, और रहस्यों के साये में बीते. अयूब की तन्हाई, याह्या की बदनामी, जिया का रहस्यमयी अंत और मुशर्रफ की बीमारी. ये कहानियां बताती हैं कि सत्ता का अहंकार और जनता की अनदेखी आखिरकार अपने ही जाल में फंस जाती है.

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