साइप्रस पहुंचकर PM मोदी ने तुर्की को दे दिया सिरदर्द! समझिए भारत की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति से ‘आतंकिस्तान के दोस्त’ को कैसे लगा करारा झटका
साइप्रस दौरे पर गए थे पीएम मोदी
India Cyprus Relation: जी7 समिट में शामिल होने से पहले पीएम मोदी का साइप्रस दौरा सिर्फ एक सामान्य विदेश यात्रा नहीं था, बल्कि भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात पर भारत की एक मास्टरस्ट्रोक मानी जा रही है. यह दौरा तुर्की के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है और इसके पीछे कई दिलचस्प कारण हैं, जिन्हें समझना जरूरी है.
तुर्की-पाकिस्तान की जोड़ी पर भारत का वार!
आप सब जानते हैं कि तुर्की लगातार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देता रहा है और भारत के खिलाफ बयानबाजी करता रहा है. इतना ही नहीं, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने के लिए तुर्की के बने ड्रोन का इस्तेमाल किया था. ऐसे में भारत का साइप्रस के साथ हाथ मिलाना, जो खुद तुर्की का पुराना दुश्मन है, तुर्की-पाकिस्तान की ‘दोस्ती’ पर सीधा वार है. यह ठीक वैसे ही है जैसे आप अपने दुश्मन के दोस्त से दोस्ती कर लें.
तुर्की का ‘पुराना घाव’ साइप्रस
साइप्रस 1974 से ही तुर्की के कब्जे वाले हिस्से को लेकर विवाद में है. तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर रखा है और उसे सिर्फ तुर्की ही मान्यता देता है. भारत ने हमेशा साइप्रस की आजादी और एकता का समर्थन किया है. तो जब मोदी जी साइप्रस गए, तो यह साइप्रस के लिए एक बड़ी राहत थी और तुर्की के लिए एक स्पष्ट संदेश कि भारत साइप्रस के साथ खड़ा है. यह तुर्की के विस्तारवादी मंसूबों पर एक तमाचा जैसा है.
भूमध्यसागर में भारत की बढ़ती धमक!
पूर्वी भूमध्यसागर में एक बहुत ही अहम जगह पर है साइप्रस. तुर्की इस इलाके में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है, खासकर गैस और तेल की खोज के मामलों में. भारत का साइप्रस के साथ गठबंधन इस इलाके में तुर्की की ‘दादागिरी’ को कम कर सकता है. यह दिखाता है कि भारत अपनी ‘एक्ट वेस्ट’ नीति के तहत सिर्फ एशिया में ही नहीं, बल्कि भूमध्यसागर तक अपनी पहुंच बना रहा है.
एक कूटनीतिक ‘शतरंज की चाल’
पीएम मोदी की यह यात्रा 20 साल से ज्यादा समय के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की पहली यात्रा थी. यह अपने आप में एक बड़ा कूटनीतिक संकेत है. इसका मतलब है कि भारत साइप्रस के साथ अपने रिश्तों को बहुत गंभीरता से ले रहा है. यह तुर्की को साफ-साफ बताता है कि भारत अपने दोस्तों के साथ खड़ा है और अपनी भू-राजनीतिक ताकत को मजबूत करने के लिए तैयार है.
आतंकवाद पर एक जैसी सोच
साइप्रस ने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख का साथ दिया है, चाहे वह कश्मीर का मुद्दा हो या सीमा पार आतंकवाद का. यह तुर्की से बिल्कुल अलग है, जो अक्सर पाकिस्तान को आतंकवाद के मामलों में सपोर्ट करता है. आतंकवाद के खिलाफ यह साझा सोच दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत करती है, और यह बात तुर्की को बिल्कुल पसंद नहीं आएगी.
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अब तक क्या डील करता था भारत?
भारत और साइप्रस के बीच द्विपक्षीय व्यापार अब तक अपेक्षाकृत कम रहा है, लेकिन स्थिर रहा है. वित्त वर्ष 2023-24 में यह व्यापार लगभग 136.96 मिलियन डॉलर का था, जो कि 150 मिलियन डॉलर के करीब पहुंच रहा है. भारत और साइप्रस के बीच दवाइयां, सिरेमिक्स, इस्पात, वस्त्र और मशीनरी का व्यापार होता रहा है. इतना ही नहीं, साइप्रस भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के माध्यम से भी एक महत्वपूर्ण निवेशक रहा है.
आगे क्या-क्या ट्रेड डील कर सकता है भारत?
पीएम मोदी की हालिया यात्रा के बाद, दोनों देशों ने कई नए क्षेत्रों में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने की संभावनाएं तलाशी हैं. भविष्य में इन क्षेत्रों में प्रमुख डील हो सकती हैं.
डिजिटल भुगतान और फिनटेक
भारत UPI प्रणाली को साइप्रस में लागू करने पर जोर दे रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा-पार भुगतान आसान हो जाएगा. NPCI इंटरनेशनल और यूरोबैंक साइप्रस के बीच इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए हैं. यह यूरोप और भारत के बीच अपनी तरह का पहला वित्तीय सहयोग है.
प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा
साइप्रस प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी है. भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए, भारतीय कंपनियां इन क्षेत्रों में साइप्रस के साथ मिलकर काम कर सकती हैं, जिससे गैस अन्वेषण, उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ सकता है.
शिपिंग और समुद्री सेवाएं
साइप्रस को यूरोप के लिए एक ‘गेटवे’ के रूप में देखते हुए, भारत भारतीय शिपिंग कंपनियों को साइप्रस में स्थापित होने के लिए बढ़ावा दे रहा है. लॉजिस्टिक्स, ट्रांसशिपमेंट और समुद्री सेवाओं में संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने पर भी सहमति हुई है.
स्टार्टअप और इनोवेशन
भारत और साइप्रस स्टार्टअप इकोसिस्टम में सहयोग की योजना बना रहे हैं. AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेशन एक्सचेंज को बढ़ावा देने के लिए एक MoU (समझौता ज्ञापन) पर भी काम किया जा रहा है.
भारत और साइप्रस दोनों ही यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते को इस साल के अंत तक पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं. साइप्रस 2026 में यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता करने वाला है, जो इस FTA में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण समर्थन साबित हो सकता है.