300 की भीड़, पंचायत और ‘सजा-ए-मौत’ का ऐलान…अंधविश्वास की आग में कैसे भस्म हुआ एक परिवार?
प्रतीकात्मक तस्वीर
Purnia Crime: बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में हुई एक रूह कंपा देने वाली घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है. अंधविश्वास की आग में झुलसकर, एक ही परिवार के पांच लोगों पर ‘डायन’ होने का आरोप लगाकर भीड़ ने बेरहमी से जिंदा जला दिया. यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि सदियों पुराने अंधविश्वास और बर्बरता की एक ऐसी गाथा है, जिसने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है.
खामोश गलियां, खौफजदा लोग
राजिगंज पंचायत के वार्ड-10 स्थित टेटगामा गांव में अब मातमी सन्नाटा पसरा है. गांव की गलियों में पुलिस गश्त कर रही है, लेकिन दहशत इतनी गहरी है कि अधिकतर घरों पर ताले लटके हैं और लोग अपने घरों से गायब हैं. यह सन्नाटा चीख-चीखकर उस भयावह रात की कहानी कह रहा है, जब पांच बेगुनाहों को तिल-तिलकर मौत के घाट उतार दिया गया.
रविवार, 6 जुलाई, 2025 की वो रात टेटगामा गांव के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज हो गई. बाबूलाल उरांव (55), उनकी पत्नी सीता देवी (50), बाबूलाल की मां मो कातो (70), बहू रानी देवी (30) और बेटे मनजीत (32). ये पांच नाम अब सिर्फ एक त्रासदी का पर्याय बन गए हैं. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तो उन्हें सिर्फ जले हुए कपड़ों के टुकड़े और मकई के सूखे डंठल मिले, जो इस बात का सबूत है कि इन्हीं से आग लगाई गई थी. बाद में पुलिस ने जली हुई लाशों को गांव के तालाब से निकाला, जो जलकुंभी से पटा हुआ था. डीआईजी प्रमोद कुमार, डीएम अंशुल कुमार और एसपी सहरावत ने खुद मौके का मुआयना किया, लेकिन बर्बरता का यह निशान इतना गहरा था कि किसी के लिए भी उसे देखना आसान नहीं था.
अंधविश्वास की वो चिंगारी जिसने पूरे परिवार को जलाया
इस सामूहिक हत्याकांड की जड़ें गांव में फैले गहरे अंधविश्वास में धंसी हैं. कहानी शुरू होती है रामदेव उरांव के परिवार से. उनका बेटा लंबे समय से बीमार चल रहा था. रामदेव ने अपने बेटे के लिए कई जगह झाड़-फूंक कराई, लेकिन उसकी तबीयत बिगड़ती गई और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया. इस दुःखद घटना ने रामदेव के मन में बदले की भावना जगा दी. उसे शक था कि गांव के ही बाबूलाल उरांव और उनका परिवार तंत्र-मंत्र और काले जादू में लिप्त है. रामदेव ने आरोप लगाया कि बाबूलाल की महिलाओं ने ‘डायन’ बनकर उसके बेटे की जान ली है. यह आरोप गांव में तेजी से फैला और धीरे-धीरे एक भयानक तूफान का रूप ले लिया.
दो घंटे की बहस, फिर सजा-ए-मौत का ऐलान
रविवार की रात, गांव में पंचायत बैठी. रात करीब 9 बजे, गांव में और आसपास के तीन गांवों से लगभग 300 लोग इकट्ठा हुए. यह कोई साधारण पंचायत नहीं थी, यह एक ऐसी सभा थी, जिसका उद्देश्य सिर्फ ‘न्याय’ करना नहीं, बल्कि ‘सजा-ए-मौत’ सुनाना था. दो घंटे तक गरमागरम बहस चली. खुद अंधविश्वास के अंधेरे में डूबे पंचों ने एक स्वर में बाबूलाल उरांव और उनके परिवार को ‘दोषी’ ठहराया. अब, उनकी किस्मत तय हो चुकी थी.
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जब चीखें भीड़ के शोर में दब गईं
रात के करीब 1 बज रहे थे. पंचायत खत्म हुई और मौत का फरमान सुना दिया गया. बाबूलाल और उनके परिवार के पांचों सदस्यों को उनके घर से करीब 50 फीट दूर खींच कर ले जाया गया. वहां, उन पर क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं. उन्हें पहले बेरहमी से पीटा गया, फिर रस्सियों से कसकर बांध दिया गया. इसके बाद, भीड़ ने उन्हें जिंदा आग के हवाले कर दिया.
हजारों की भीड़ इस भयावह मंजर की गवाह थी. परिवार के सदस्य रहम की भीख मांगते रहे, उनकी चीखें रात के सन्नाटे को चीरती रहीं, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा. भीड़ में से कोई एक भी शख्स मदद के लिए आगे नहीं आया. वे रोते रहे, चिल्लाते रहे, गिड़गिड़ाते रहे. लेकिन अंधविश्वास में अंधी हो चुकी भीड़ ने उन्हें जिंदा जलते हुए देखा. यह सिर्फ पांच लोगों की हत्या नहीं थी, यह मानवता पर एक कलंक था.
पुलिस की पड़ताल
इस घटना के बाद से पुलिस पूरी तरह से अलर्ट है. 23 लोगों को नामजद किया गया है और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. पुलिस गांव के लोगों से पूछताछ कर रही है, लेकिन डर और दहशत के कारण कोई भी खुलकर बात करने को तैयार नहीं है. पुलिस ने एक स्थानीय डीलर से भी पूछताछ की, जिसका जवाब संतोषजनक नहीं था, जिसके बाद उसके मोबाइल को जांच के लिए जब्त कर लिया गया है.
बाबूलाल उरांव का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था. बाबूलाल मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था. यह भी कहा जा रहा है कि वह झाड़-फूंक का काम भी करता था, जिसने शायद उसे ‘डायन’ होने के आरोपों का आसान निशाना बना दिया.
सबसे बड़ा सवाल जो अब पुलिस और प्रशासन पर उठ रहा है, वह यह है कि जब 300 लोगों की इतनी बड़ी भीड़ ने पांच लोगों को जिंदा जला दिया, तो स्थानीय पुलिस को इसकी भनक तक कैसे नहीं लगी? एसडीपीओ पंकज शर्मा ने स्वीकार किया है कि यह अंधविश्वास के कारण हुई हत्या है और उन्होंने दोषियों को कड़ी सजा दिलाने का आश्वासन दिया है.
बिहार के ग्रामीण इलाकों में गहरे बैठे अंधविश्वास और उस पर अंकुश लगाने में प्रशासनिक विफलता की एक भयावह तस्वीर दुनिया ने देखी है. जब तक समाज में शिक्षा और जागरूकता का प्रकाश नहीं फैलेगा, तब तक ऐसे ‘खूनी खेल’ जारी रहेंगे और बेगुनाह जानें अंधविश्वास की भेंट चढ़ती रहेंगी.