ट्रंप-पुतिन की मुलाकात, शांति की बात…डोनबास की जिद पर क्यों अड़ा है रूस?

ज़ेलेंस्की और ट्रंप के बीच जल्द ही एक मुलाकात होने वाली है, हालांकि तारीख अभी तय नहीं है. इस मुलाकात में डोनबास और युद्ध को लेकर चर्चा हो सकती है. लेकिन यूक्रेन का रुख साफ है कि वो अपनी ज़मीन और सम्मान से कोई समझौता नहीं करेगा.
Russia-Ukraine War

ट्रंप ने पुतिन से की मुलाकात

Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग में एक नया मोड़ आया है, और इस बार कहानी का केंद्र है डोनबास! जी हां, वही डोनबास, जो कोयले, उद्योगों और रणनीतिक ताकत का गढ़ है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अलास्का में मुलाकात की और एक ऐसा प्रस्ताव रखा, जिसने सबके कान खड़े कर दिए.

पुतिन ने कहा कि अगर यूक्रेन अपने पूर्वी हिस्से यानी डोनेत्सक और लुहान्स्क से अपनी सेना हटा ले, तो रूस दक्षिणी यूक्रेन में हमले रोक देगा और जंग की लाइन वहीं थम जाएगी. लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इस मांग को सुनते ही साफ़ मना कर दिया. पश्चिमी देशों ने भी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. तो आखिर डोनबास में ऐसा क्या है, जो रूस इसे पाने के लिए जंग खत्म करने को तैयार है, और यूक्रेन इसे सुनकर ही तिलमिला उठा?

डोनबास जरूरी क्यों?

डोनबास यूक्रेन का वो हिस्सा है, जो न सिर्फ आर्थिक बल्कि रणनीतिक रूप से भी बेहद खास है. ये इलाका यूक्रेन का औद्योगिक केंद्र है, जहां कोयले की खदानें, भारी उद्योग और खनिज संसाधनों की भरमार है. अगर आसान भाषा में कहें, तो डोनबास यूक्रेन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. लेकिन इतना ही नहीं, ये इलाका युद्ध के लिहाज से भी अहम है. 2014 से ही यूक्रेन ने यहां मजबूत बंकर, खाइयां और बारूदी सुरंगों का जाल बिछा रखा है, जो रूस की सेना को रोकने में कारगर साबित हुए हैं. रूस अगर डोनबास पर कब्जा कर लेता है, तो न सिर्फ यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा, बल्कि रूस को खारकीव, पोलतावा और ड्नीप्रो जैसे बड़े शहरों की ओर बढ़ने का रास्ता मिल जाएगा. यही वजह है कि रूस की नजर इस इलाके पर टिकी है, और वो इसे हासिल करने के लिए हर हथकंडा अपना रहा है.

पुतिन का दांव

पुतिन ने ट्रंप के सामने जो प्रस्ताव रखा, वो सुनने में शांति की बात लगता है, लेकिन इसमें छिपा है एक बड़ा दांव. पुतिन ने कहा कि अगर यूक्रेन डोनबास छोड़ दे, तो रूस खेरसोन और जपोरीजिया में अपनी सैन्य कार्रवाई रोक देगा. यानी, जंग की लाइन वहीं रुक जाएगी. गौर करने वाली बात ये है कि लुहान्स्क पर रूस का लगभग पूरा कब्जा है, लेकिन डोनेत्सक के कुछ हिस्से, जैसे क्रामाटोर्स्क और स्लोवियांस्क, अभी भी यूक्रेन के पास हैं. ये इलाके भारी सुरक्षा वाले हैं, और इन्हें छोड़ना यूक्रेन के लिए अपनी ताकत और आत्मसम्मान को दांव पर लगाने जैसा है.

ट्रंप ने इस प्रस्ताव को यूरोपीय नेताओं के साथ साझा किया और दावा किया कि वो इस योजना का समर्थन करते हैं. लेकिन यूक्रेन और उसके पश्चिमी दोस्तों ने इसे सिरे से नकार दिया.

ज़ेलेंस्की का गुस्सा

यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने पुतिन की इस शर्त को सुनते ही दो टूक जवाब दिया, “डोनबास कभी नहीं छोड़ेंगे.” उनका मानना है कि अगर डोनबास रूस के हाथ चला गया, तो भविष्य में रूस और आक्रामक हो सकता है. यूक्रेन के लिए डोनबास सिर्फ़ ज़मीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि उसका अस्तित्व और गौरव है. ज़ेलेंस्की का कहना है कि जब तक यूक्रेन को ठोस सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती, वो एक इंच ज़मीन भी नहीं छोड़ेगा.पश्चिमी देश, खासकर जर्मनी और ब्रिटेन भी यूक्रेन के साथ खड़े हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने तो चेतावनी तक दे दी कि अगर युद्ध जारी रहा, तो रूस पर और सख्त प्रतिबंध लगाए जाएंगे. जर्मनी ने भी कहा कि यूक्रेन की सीमाओं को बलपूर्वक नहीं बदला जा सकता.

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ट्रंप और ज़ेलेंस्की की मुलाकात

खबर है कि ज़ेलेंस्की और ट्रंप के बीच जल्द ही एक मुलाकात होने वाली है, हालांकि तारीख अभी तय नहीं है. इस मुलाकात में डोनबास और युद्ध को लेकर चर्चा हो सकती है. लेकिन यूक्रेन का रुख साफ है कि वो अपनी ज़मीन और सम्मान से कोई समझौता नहीं करेगा. दूसरी तरफ, रूस का कहना है कि वो शांति चाहता है, लेकिन उसकी शर्तें यूक्रेन के लिए स्वीकार करना मुश्किल है.

डोनबास क्यों है जंग का केंद्र?

अब आपके तो आखिर डोनबास इतना खास क्यों है? पहला, ये यूक्रेन की आर्थिक ताकत का बड़ा हिस्सा है. दूसरा, ये रणनीतिक रूप से रूस के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है. अगर रूस डोनबास पर कब्जा कर लेता है, तो वो न सिर्फ यूक्रेन को कमजोर करेगा, बल्कि अपनी सैन्य ताकत को और बढ़ा लेगा. लेकिन यूक्रेन के लिए डोनबास छोड़ना मतलब अपनी आजादी और सुरक्षा को खतरे में डालना है. इस जंग में अभी कोई साफ विजेता नजर नहीं आ रहा. रूस अपनी शर्तों पर शांति चाहता है, जबकि यूक्रेन अपनी ज़मीन और सम्मान की रक्षा के लिए डटा हुआ है. पश्चिमी देशों का समर्थन यूक्रेन के साथ है, लेकिन ट्रंप का रुख इस कहानी में नया ट्विस्ट ला सकता है.

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