बिहार में 65 लाख मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर, सुप्रीम कोर्ट ने Bihar SIR ड्राफ्ट पर उठाए सवाल, EC से मांगा जवाब

Bihar SIR Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने ADR की याचिका पर सुनवाई करते हुए 6 अगस्त को चुनाव आयोग से 9 अगस्त तक हटाए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण मांगा है.
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सुप्रीम कोर्ट में ईसी दायर किया हलफनामा

Bihar SIR Controversy: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा कराए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले ड्राफ्ट में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने से सियासी घमासान मच गया है. विपक्षी दल इस कदम को लोकतंत्र पर हमला बताकर चुनाव आयोग पर हमलावर हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग से इस मामले में जवाब तलब किया है.

SIR में हटा 65 लाख मतदाताओं का नाम

चुनाव आयोग ने बिहार में 24 जून से 25 जुलाई तक विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का पहला चरण पूरा किया. इस प्रक्रिया में 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने गणना फॉर्म भरे, जबकि 65 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिए गए. आयोग के मुताबिक, इनमें 22 लाख मृतक मतदाता, 36 लाख स्थायी रूप से पलायन कर चुके या गैर-लोकेटेबल और 7 लाख दोहरे पंजीकरण वाले मतदाता शामिल हैं. यह सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की गई और आयोग ने इसे अंतिम सूची नहीं बल्कि ड्राफ्ट बताया, जिसके लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट ने ADR की याचिका पर सुनवाई करते हुए 6 अगस्त को चुनाव आयोग से 9 अगस्त तक हटाए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण मांगा है. ADR की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने तत्काल सुनवाई की मांग की है. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने आयोग को निर्देश दिया कि वह उन मतदाताओं के नाम और हटाने के कारण (मृत, पलायन, या अन्य) स्पष्ट करें. कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया था कि आधार और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को सत्यापन के लिए स्वीकार किया जाए, जिसे आयोग ने अपनी प्रक्रिया में शामिल नहीं किया. याचिकाकर्ताओं, जिसमें एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और विपक्षी नेता शामिल हैं, ने SIR को असंवैधानिक और मनमाना बताया, जो मतदाताओं के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 19, 21) का उल्लंघन करता है. अगली सुनवाई 12 और 13 अगस्त को होगी.

सुनवाई के दौरान वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख नामों को लेकर प्रशांत भूषण ने कहा कि ये नाम बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) की सिफ़ारिश के बिना सूची में शामिल किए गए हैं. प्रशांत भूषण ने कहा कि बीएलओ ने फॉर्म भेजते समय बताया है कि इस व्यक्ति की सिफ़ारिश बीएलओ ने नहीं की है. BLO ने सिफ़ारिश की है या नहीं. यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण होगी.

जस्टिस सूर्यकांत ने आयोग को शनिवार तक का समय देते हुए चुनाव आयोग से कहा कि अगर आपने राजनीतिक दलों के प्रत्येक प्रतिनिधि को ब्लॉक स्तर पर सूची भी दें जिन्हें आपने जानकारी दी है. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि प्रभावित होने वाले प्रत्येक मतदाता को अपेक्षित जानकारी मिले.

चुनाव आयोग का बचाव

चुनाव आयोग ने SIR को बिहार में अब तक का सबसे व्यापक मतदाता सत्यापन अभियान बताया, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है. आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और निर्वाचन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 के तहत की गई, जो केवल भारतीय नागरिकों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति देता है. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट सूची अंतिम नहीं है और 1 सितंबर तक सुधार का समय है. इसके अलावा, 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट्स को प्रक्रिया में शामिल किया गया है. आयोग ने विपक्ष के दावों को ‘झूठा नैरेटिव’ करार देते हुए कहा कि पार्टियों को अपने बूथ लेवल एजेंट्स के जरिए आपत्तियां दर्ज करानी चाहिए.

विपक्ष का आयोग पर सवाल

विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, राजद, सीपीआई(एम), और सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने इस प्रक्रिया को मतदाताओं को वंचित करने का प्रयास करार दिया है. उनका आरोप है कि यह कवायद सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ मतदाताओं को निशाना बनाकर की गई है. कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और पूर्व अध्यक्ष मदन मोहन झा ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इसके पीछे कोई ठोस डेटा साझा नहीं किया गया. राजद ने पूछा कि क्या 65 लाख मतदाताओं को नोटिस जारी किया गया, जैसा कि निर्वाचन प्रतिनिधित्व अधिनियम में प्रावधान है. विपक्ष ने इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को ‘बैकडोर’ से लागू करने की कोशिश भी बताया.

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बता दें कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में गहन सुनवाई की ओर बढ़ रहा है. विपक्ष का कहना है कि यदि इस प्रक्रिया को नहीं रोका गया, तो यह बिहार में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित कर सकता है. दूसरी ओर, आयोग का दावा है कि यह कवायद पूरे देश में लागू होगी, जिससे मतदाता सूची में और पारदर्शिता आएगी. बिहार की 7.24 करोड़ मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 30 सितंबर 2025 को होगा और तब तक इस विवाद के और तूल पकड़ने की संभावना है.

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