‘वोटर अधिकार यात्रा’ की धूल भी नहीं बैठी, अब अलग से बिहार नापने चले ‘लालू के लाल’, कहीं राहुल को सियासी संदेश तो नहीं दे रहे तेजस्वी?

तेजस्वी की ये यात्रा सिर्फ जनता से मिलने का बहाना नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी सियासी चाल है. वो अपने पिता लालू प्रसाद यादव की राह पर चलते हुए जनता से सीधा कनेक्शन बनाना चाहते हैं. लालू यादव अपनी रैलियों और यात्राओं से हमेशा जनता के बीच छाए रहते थे, और तेजस्वी भी उसी अंदाज को अपनाने की कोशिश में हैं.
Tejashwi Yadav Bihar Adhikar Yatra

बिहार यात्रा पर निकलेंगे तेजस्वी यादव!

Tejashwi Yadav Bihar Adhikar Yatra: बिहार की सियासी गलियों में इन दिनों हलचल मची है. कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जरिए बिहार के 20 जिलों में 1300 किलोमीटर का सफर तय किया. लेकिन अभी उनकी यात्रा की धूल भी ठीक से बैठी नहीं थी कि राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव ने अपनी ‘बिहार अधिकार यात्रा’ का ऐलान कर दिया. सवाल यह है कि आखिर तेजस्वी को इतनी जल्दी अपनी अलग यात्रा निकालने की जरूरत क्यों पड़ गई? आइए, इस सियासी ड्रामे को थोड़ा विस्तार से जानते हैं.

तेजस्वी का मास्टर प्लान सड़क पर सियासत

16 सितंबर 2025 से शुरू होने वाली तेजस्वी की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ जहानाबाद से निकलेगी और 20 सितंबर को वैशाली में खत्म होगी. इस 5 दिन की यात्रा में तेजस्वी जहानाबाद, नालंदा, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, समस्तीपुर और वैशाली से होकर गुजरेंगे. ये वे इलाके हैं, जहां बीजेपी और जेडीयू का दबदबा रहा है. यानी तेजस्वी सीधे ‘दुश्मन के गढ़’ में जाकर अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में हैं.

तेजस्वी इस यात्रा में जनता से सीधा संवाद करेंगे. रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, किसानों की समस्याएं और महंगाई जैसे मुद्दों को उठाकर वो नीतीश सरकार को घेरने का प्लान बना रहे हैं. आरजेडी के नेताओं का कहना है कि ये यात्रा बिहार की जनता के हक की लड़ाई है, न कि सिर्फ सियासी शो. लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा है कि इसके पीछे एक बड़ा मकसद और भी है.

राहुल की यात्रा ने बदला खेल

राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने बिहार में कांग्रेस को एक नई ताकत दी. 17 दिनों की इस यात्रा में राहुल ने वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) जैसे मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान खींचा. इस दौरान तेजस्वी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, लेकिन सियासी फायदा ज्यादा कांग्रेस को मिला. कांग्रेस ने साफ कर दिया कि वो आरजेडी की ‘बैसाखी’ पर नहीं चल रही, बल्कि उसका अपना जनाधार है. बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्ण अल्लावरू ने तो यहां तक कह दिया कि मुख्यमंत्री का चेहरा जनता तय करेगी.

इससे महागठबंधन में हल्की-सी खटपट की सुगबुगाहट शुरू हो गई. कांग्रेस अब सीट बंटवारे और नेतृत्व के सवाल पर अपनी बात जोर-शोर से रख रही है. ऐसे में तेजस्वी को लगा कि अब वक्त है अपनी ताकत दिखाने का. उनकी ‘बिहार अधिकार यात्रा’ का मकसद है आरजेडी के कार्यकर्ताओं में जोश भरना और जनता को ये बताना कि बिहार में असली जनाधार उनका है.

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लालू के लाल की सियासी चाल

तेजस्वी की ये यात्रा सिर्फ जनता से मिलने का बहाना नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी सियासी चाल है. वो अपने पिता लालू प्रसाद यादव की राह पर चलते हुए जनता से सीधा कनेक्शन बनाना चाहते हैं. लालू यादव अपनी रैलियों और यात्राओं से हमेशा जनता के बीच छाए रहते थे, और तेजस्वी भी उसी अंदाज को अपनाने की कोशिश में हैं. इस यात्रा के जरिए तेजस्वी ये साबित करना चाहते हैं कि वो महागठबंधन के सबसे बड़े नेता हैं और बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए जनता की पहली पसंद. साथ ही, वो बीजेपी-जेडीयू के गढ़ में जाकर अपनी पार्टी की जड़ें मजबूत करने की कोशिश करेंगे. आरजेडी ने अपने सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ निर्देश दिए हैं कि यात्रा में भीड़ जुटाने में कोई कसर न छोड़ें. हर विधानसभा क्षेत्र में बड़े-बड़े कार्यक्रम होंगे, ताकि तेजस्वी का जलवा बरकरार रहे.

बीजेपी का तंज

बीजेपी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तंज कसते हुए कहा, “तेजस्वी ने राहुल के साथ 15 दिन घूमकर देख लिया, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें सीएम के चेहरे के तौर पर स्वीकार नहीं किया. अब वो अपनी ब्रांडिंग के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं, लेकिन बिहार की जनता लालू राज को भूल नहीं है.” बीजेपी का दावा है कि तेजस्वी की यात्रा सिर्फ सियासी ड्रामा है, जो जनता को प्रभावित नहीं करेगा.

वहीं, आरजेडी नेता संजय यादव का कहना है, “राहुल की यात्रा वोटर अधिकार के लिए थी, लेकिन तेजस्वी की यात्रा बिहार के हर हक के लिए है.” तेजस्वी इस यात्रा में जनता से सीधे संवाद कर अपनी छवि को और मजबूत करना चाहते हैं.

बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ रही है. ऐसे में तेजस्वी की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ महागठबंधन के लिए एक नया सियासी समीकरण बना सकती है. ये यात्रा न सिर्फ आरजेडी को मजबूत करेगी, बल्कि कांग्रेस को भी ये संदेश देगी कि बिहार में आरजेडी ही ‘बड़ा भाई’ है. लेकिन क्या तेजस्वी अपनी इस यात्रा से जनता का दिल जीत पाएंगे? या फिर ये सियासी ड्रामा बीजेपी-जेडीयू के सामने फीका पड़ जाएगा?

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