धनखड़ आउट, कौन इन? ‘सरप्राइज’ उम्मीदवार की तलाश में जुटी BJP, रेस में कई बड़े नाम
जगदीप धनखड़ (फाइल तस्वीर)
21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के अप्रत्याशित इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है. सेहत का हवाला देकर दिए गए इस इस्तीफे ने सत्ताधारी एनडीए के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी कर दी है. अब सवाल यह है कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा?
इस पद का महत्व सिर्फ संवैधानिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है, क्योंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है, जो संसदीय कार्यवाही में संतुलन और सरकार की विधायी एजेंडा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आइए, इस रेस में शामिल प्रमुख चेहरों और उनके पक्ष में काम कर रहे राजनीतिक समीकरणों को विस्तार से जानते हैं.
उपराष्ट्रपति का चुनाव
उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों से मिलकर बने इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए होता है. मौजूदा आंकड़ों के अनुसार, एनडीए के पास दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत है, जिसका अर्थ है कि उनका उम्मीदवार आसानी से जीत जाएगा. इसलिए, असली चुनौती विपक्ष को पछाड़ना नहीं, बल्कि एनडीए के भीतर सर्वसम्मति से सबसे उपयुक्त और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उम्मीदवार का चयन करना है. फिलहाल उपराष्ट्रपति के रेस में 4 बड़े नाम हैं.
नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार एनडीए के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. बिहार में जेडीयू एनडीए की एक महत्वपूर्ण सहयोगी भी है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में 12 सीटें जीतकर गठबंधन को बड़ी ताकत दी. नीतीश को उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी जेडीयू को एक बड़ा सम्मान दे सकती है, जिससे बिहार में गठबंधन की एकता और मजबूती बढ़ेगी, खासकर 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले.
मुख्यमंत्री के रूप में लंबे अनुभव के साथ-साथ केंद्र में कई बार मंत्री रह चुके नीतीश का राष्ट्रीय कद उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाता है. कई बार उन्होंने खुद भी मंशा जाहिर की है. नीतीश कुमार एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं. उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर एनडीए देशभर के ओबीसी मतदाताओं को एक मजबूत संदेश दे सकता है कि गठबंधन उनके प्रतिनिधित्व को महत्व देता है. एक और सबसे खास बात, नीतीश को केंद्र में लाकर बिहार में नेतृत्व परिवर्तन का रास्ता भी खुल सकता है, जिससे बीजेपी को राज्य में अपनी स्थिति और मजबूत करने का मौका मिल सकता है, यदि वे ऐसा चाहें. हालांकि, नीतीश कुमार के जाने से बिहार में नेतृत्व का एक शून्य पैदा होगा, जिसे भरना एनडीए के लिए आसान नहीं होगा.
जे.पी. नड्डा
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री. नड्डा ने अध्यक्ष के रूप में पार्टी संगठन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. बीजेपी अध्यक्ष के रूप में नड्डा ने पार्टी को कई राज्यों में चुनावी जीत दिलाई है. उनकी संगठनात्मक क्षमता और आरएसएस से उनकी निकटता उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है. 64 वर्ष की आयु में वे कई अन्य वरिष्ठ नेताओं की तुलना में अपेक्षाकृत युवा हैं, जिससे उन्हें इस गरिमामय पद पर लंबे समय तक सेवा देने का अवसर मिल सकता है. नड्डा की साफ-सुथरी और सौम्य छवि है, जो उन्हें उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के लिए उपयुक्त बनाती है, जहां उन्हें सदन में सभी दलों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की आवश्यकता होगी. उनका कार्यकाल जल्द ही समाप्त होने वाला है.
हालांकि, एक चुनौती यह है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उन्हें इस पद से हटाना केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की आवश्यकता पैदा करेगा. अगर नड्डा उपराष्ट्रपति बनते हैं, तो बीजेपी को जल्द राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करना होगा.
हरिवंश नारायण सिंह
जनता दल यूनाइटेड के राज्यसभा सांसद और 2020 से राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का नाम भी रेस में आगे है. उपसभापति के रूप में उनका अनुभव सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है. उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने में दक्षता दिखाई है. धनखड़ के इस्तीफे के बाद, वह वर्तमान में राज्यसभा के सभापति की जिम्मेदारी भी संभाल सकते हैं. उनकी छवि एक निष्पक्ष और शांत नेता की है, जो सदन में अनुशासन बनाए रखने और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संतुलन स्थापित करने की क्षमता रखते हैं. यह उपराष्ट्रपति पद के लिए एक महत्वपूर्ण गुण है.
और जेडीयू का चेहरा होने के नाते, उनका चयन गठबंधन में जेडीयू की अहमियत को दर्शाता है, जिससे एनडीए की आंतरिक एकता और मजबूत होगी. हालांकि, अन्य दावेदारों की तुलना में उनका राष्ट्रीय राजनीतिक कद थोड़ा कम हो सकता है. बीजेपी शायद अपने किसी वरिष्ठ नेता को इस पद पर प्राथमिकता देना चाहेगी, जिससे भविष्य में उनके लिए और अधिक अवसर खुल सकें.
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मनोज सिन्हा
जम्मू-कश्मीर के वर्तमान उपराज्यपाल और बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता मनोज सिन्हा भी इस रेस में शामिल हैं. वे पहले केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल के रूप में उनका सफल कार्यकाल, जहां उन्होंने शांति और विकास के प्रयासों को आगे बढ़ाया है, बीजेपी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. इससे पहले वे केंद्रीय संचार राज्य मंत्री और रेल राज्य मंत्री भी रह चुके हैं.
पूर्वांचल से ताल्लुक रखने वाले सिन्हा यूपी में बीजेपी के लिए सामाजिक समीकरण साधने में मदद कर सकते हैं, खासकर जब अगले विधानसभा चुनाव नजदीक हों. सिन्हा की छवि एक शांत, सौम्य और कार्यकुशल प्रशासक की है, जो उन्हें उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के लिए उपयुक्त बनाती है. उनकी छवि विवादों से दूर रही है. उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी यह संदेश दे सकती है कि वह विभिन्न पृष्ठभूमि और क्षेत्रों से आने वाले नेताओं को राष्ट्रीय पटल पर अवसर देती है.
उनका राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रोफाइल अन्य नेताओं की तुलना में उतना मजबूत नहीं है, क्योंकि वे मुख्य रूप से प्रशासनिक भूमिका में रहे हैं. जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में उपराज्यपाल के रूप में उनकी वर्तमान भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, और उन्हें उस पद से हटाना केंद्र के लिए एक चुनौती हो सकती है.
इससे पहले भी दो उपराष्ट्रपति ने दिया इस्तीफा
धनखड़ का इस्तीफा भारतीय इतिहास में तीसरा ऐसा मौका है जब किसी उपराष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ा है. पहले वी.वी. गिरी और आर. वेंकटरमण ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था. नियमों के अनुसार, अगले छह महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव करना अनिवार्य होगा.
बीजेपी और एनडीए अब जल्द ही गहन आंतरिक विचार-विमर्श करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस के शीर्ष नेता इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. यह निर्णय सिर्फ एक संवैधानिक नियुक्ति नहीं होगी, बल्कि एनडीए के भविष्य की राजनीतिक रणनीति, सामाजिक समीकरणों को साधने और गठबंधन की एकता को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी होगा.
यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए इन सभी समीकरणों को साधते हुए किस चेहरे पर दांव लगाता है. क्या यह एक अनुभवी राजनेता होगा, गठबंधन का एक प्रमुख सहयोगी, या कोई नया ‘सरप्राइज’ चेहरा?