चॉकलेट से लेकर चुनावी हार तक… Manmohan Singh के जीवन के 5 प्रेरणादायक किस्से
Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, जिनकी प्रतिष्ठा न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण में भी प्रख्यात रही है, आज 92 वर्ष की आयु में हमारे बीच से चले गए. उनका निधन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक अत्यंत दुःखद घटना है. उनकी राजनीतिक यात्रा, आर्थिक सुधारों में योगदान और उनके जीवन के कई पहलू ऐसे हैं जिन्हें सदैव याद रखा जाएगा. मनमोहन सिंह की राजनीति और निजी जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से उनके व्यक्तित्व को और भी खास बनाते हैं.
कैंब्रिज में चॉकलेट पर गुजारा
डॉ. मनमोहन सिंह के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान उनके जीवन का एक दिलचस्प किस्सा सामने आता है. उनकी बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब Strictly Personal में लिखा है कि जब उनके पिता कैंब्रिज में पढ़ाई कर रहे थे, तो आर्थिक तंगी के चलते वह दिनभर चॉकलेट खाकर गुजारते थे. एक बार उन्होंने अपने एक दोस्त से 25 पाउंड उधार मांगे थे, लेकिन दोस्त केवल 3 पाउंड दे पाया, यह कहते हुए कि वह उनसे ज्यादा नहीं दे सकता.
लोकसभा चुनाव में हार और परिवार का धक्का
मनमोहन सिंह ने एक ही बार 1999 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, जब सोनिया गांधी ने उन्हें दक्षिण दिल्ली से उम्मीदवार बनाया था. वह चुनाव हार गए, और यह हार उनके परिवार के लिए बहुत कठिन थी. उनकी पत्नी गुरशरण कौर इस चुनाव के खिलाफ थीं, लेकिन फिर भी वह चुनाव लड़े. चुनाव हारने के बाद उन्होंने कभी लोकसभा चुनाव में भाग लेने का विचार नहीं किया. उनका यह अनुभव इतना कटु था कि उन्होंने चुनावी राजनीति से हमेशा के लिए दूर रहने का निर्णय लिया. इस चुनावी हार के बाद उनकी बेटी दमन सिंह भी मानसिक रूप से टूट गई थीं.
20 लाख रुपये का चुनावी बजट
1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए 20 लाख रुपये का बजट दिया. यह रकम बाकी उम्मीदवारों से ज्यादा थी, लेकिन चुनावी खर्चों के लिए यह काफी कम साबित हुई. मनमोहन सिंह चुनावी दांवपेच और प्रचार की जटिलताओं को नहीं समझते थे. वह मानते थे कि यदि पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है तो स्वाभाविक रूप से सभी कार्यकर्ता उनके लिए काम करेंगे. हालांकि, उन्हें यह समझने में समय लगा कि भारतीय चुनावी प्रणाली में पैसे और समर्थन जुटाने के लिए रणनीतियों की जरूरत होती है, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थे.
“मैं किसी से पैसे नहीं लूंगा”
मनमोहन सिंह का यह ऐतिहासिक बयान उस समय आया जब चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें पैसे की आवश्यकता महसूस हुई. उनका मानना था कि जब उन्हें पार्टी का टिकट मिल गया है, तो कार्यकर्ता स्वाभाविक रूप से उनका समर्थन करेंगे. लेकिन जब चुनावी खर्च बढ़ने लगे और पैसे खत्म हो गए, तो उनके प्रचार प्रबंधक हरचरण सिंह जोश ने उन्हें बताया कि बिना पैसे के चुनाव जीतना मुश्किल होगा. मनमोहन सिंह ने यह कहा था, “मैं किसी से पैसे नहीं लूंगा,” लेकिन बाद में उन्हें अपनी सोच बदलनी पड़ी. अंततः उन्हें चुनाव प्रचार के लिए पैसे जुटाने के लिए कुछ लोगों से मिलना पड़ा, हालांकि उन्होंने कभी इस प्रक्रिया को सहज नहीं माना.
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आर्थिक सुधारों के कारण परिवार में अकेलापन
1991 में जब डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, तो यह कदम उनके लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण था. दमन सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि उस समय उनके पिता के फैसलों के कारण उनके साथ काम करने वाले लोग उनसे दूर हो गए थे. उनका परिवार भी इस दबाव को महसूस कर रहा था, और दमन सिंह को इस दौरान पेशेवर रूप से काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. उन्होंने कहा कि उनके सहकर्मी उनके पिता के आर्थिक सुधारों से असहमत थे और उन्होंने उनसे रिश्ते तोड़ दिए थे, लेकिन इस संघर्ष ने डॉ. मनमोहन सिंह के आत्मविश्वास को और मजबूत किया.
इन किस्सों से यह साफ होता है कि डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन केवल राजनीतिक संघर्षों से नहीं भरा हुआ था, बल्कि उन्होंने अपनी निजी ज़िन्दगी में भी कई कठिनाइयों का सामना किया. उनकी ईमानदारी, संघर्ष और सिद्धांतों पर अडिग रहने की आदतें आज भी उन्हें भारतीय राजनीति का एक अद्वितीय नेता बनाती हैं.