कभी मुसाफिर खाना के नाम से मशहूर अमेठी से एक बार फिर राहुल ठोकेंगे ताल! जानें इस सीट का सियासी ABCD
Lok Sabha Election 2024: 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर अमेठी में हुआ. इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55 हजार वोटों से हराया. इस चुनाव में बीजेपी को अमेठी में 49.92 फीसदी वोट मिले और राहुल गांधी को 44.05 फीसदी वोट मिले. कहा जा रहा है कि राहुल गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ेंगे. हालांकि, अभी तक यूपी में कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है. आइये यहां विस्तार से जानते हैं अमेठी का सियासी ABCD
दरअसल, अमेठी संसदीय सीट को कांग्रेस का दुर्ग कहा जाता है और इस सीट पर इससे पहले तक 17 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने यहां 16 बार जीत दर्ज की है. 1977 में लोकदल और 1998 में भाजपा को यहां से जीत मिली थी जबकि बसपा और सपा इस सीट से अभी तक अपना खाता भी नहीं खोल सकी है.
1951 से 1962 तक लगातार कांग्रेस की जीत
अमेठी लोकसभा सीट का गठन 1967 में हुआ था. पहले यह सुल्तानपुर दक्षिण सीट का हिस्सा था और 1951 से 1962 तक लगातार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की. आज जिस अमेठी लोकसभा के चुनाव पर देश की नजर रहती है उसका वजूद देश के स्वतंत्र होने के दो दशक बाद आया था. 1971 में इस सीट का नाम मुसाफिर खाना था और इस बार भी कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की. 1977 के लोकसभा चुनाव में संजय गांधी ने यहां से नामांकन दाखिल किया लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
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गांधी बनाम गांधी
1980 में हुए लोकसभा चुनाव में संजय सिंह ने जीत हासिल की. लेकिन एक दुर्घटना में उनकी मौत के बाद राजीव गांधी ने यहां से जीत हासिल की. 1984 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा. लेकिन राजीव गांधी ने जीत दर्ज की. 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी भी यहां से जीते थे.
इस चुनाव में उनके खिलाफ महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी और बीएसपी संस्थापक कांशीराम थे. 1991 में भी राजीव गांधी अमेठी से चुने गये थे. उनके निधन के बाद कांग्रेस नेता कैप्टन सतीश शर्मा यहां से सांसद चुने गए. 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को अमेठी के संजय सिंह ने हराया था.
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क्या है अमेठी का जातीय समीकरण
1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी सांसद चुनी गईं और 2004 से 2009 और 2014 तक लगातार लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी सांसद चुने गए. जातिगत समीकरणों की बात करें तो 18 फीसदी ब्राह्मण, 11 फीसदी ठाकुर, 16 फीसदी यादव 20 फीसदी मुस्लिम और 26 फीसदी दलित हैं. कुल मिलाकर इस सीट पर भी जाति से ऊपर उठकर वोट पड़े हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी फैक्टर बड़ी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यहां सबसे अधिक दलित की आबादी है. ऐसे में अगर मायावती की पार्टी यहां से किसी नेता को उम्मीदवार बनाती है तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए यहां की चुनावी लड़ाई आसान नहीं होगी.
सपा-बसपा फैक्टर
बताते चलें कि साल 2019 में यूपी में बसपा-सपा (BSP-SP) ने मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन अपेक्षित नतीजे नहीं मिलने के बाद गठबंधन टूट गया. 2014 में बसपा ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 19.77% बोट मिले थे. पिछली बार उसने सपा के साथ गठबंधन में 36 सीटों पर चुनाव लड़ा तो भी 19.36% वोट मिले. सिर्फ 36 सीटों पर लड़ने के बावजूद बसपा को पिछले चुनाव के बराबर बोट मिले. इससे साबित होता है कि उसे सपा के मत स्थानांतरित हुए.
अमेठी सीट पर भी कुछ ऐसा ही हुआ. सपा कैडर के वोट तो बसपा को गए लेकिन बसपा का सपा के अन्य सीटों पर नहीं गया. वहीं, सपा को 2014 के चुनाव में 22.35% वोट मिले थे लेकिन 2019 में यह 18% के करीब रहे. पिछली बार वह 80 सीटों पर लड़ी थी लेकिन इस बार 36 सीटों पर लड़ी. साफ है कि सपा को बसपा के वोट थोड़े स्थानांतरित हुए वर्ना उसके मतों का प्रतिशत और कम हो जाता. अब देखना ये होगा कि पिछली बार की तरह इस बार अमेठी में बसपा क्या गुल खिलाती है. इस बार सपा और कांग्रेस एक साथ आ गई है तो राहुल की राह कुछ हद तक आसान हो सकती है.