दिल्ली में AAP ने कांग्रेस को क्यों दिखाया ठेंगा? पवार के घर बैठक में ही लिखी गई थी स्क्रिप्ट, समझिए केजरीवाल के बयान की इनसाइड स्टोरी
Delhi Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी तैयारियों को तेज़ कर दिया है. यह चुनाव न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पार्टी की प्रतिष्ठा के लिए भी अहम है, क्योंकि यह आप के लिए लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का मौका हो सकता है. हालांकि, इस बीच मीडिया में यह खबरें फैलने लगी थीं कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन कर सकती हैं.
लेकिन, बुधवार सुबह AAP के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया है. उन्होंने एक ट्वीट के ज़रिए यह साफ किया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी किसी भी हालत में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. उनके इस ट्वीट से यह साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहती है, और अब वो अकेले ही चुनाव में मैदान में उतरने का फैसला कर चुकी है.
क्या है केजरीवाल का इरादा?
अरविंद केजरीवाल का यह ऐलान सिर्फ चुनावी रणनीति से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि इसके पीछे AAP की राजनीति का एक बड़ा संदेश भी छिपा हुआ है. दरअसल, कल रात दिल्ली में शरद पवार के घर इंडिया गठबंधन के कई प्रमुख नेताओं की बैठक हुई थी, जिसमें इंडिया गठबंधन के नेता को चुनने की बात की गई थी. इस बैठक में AAP के कुछ नेता भी शामिल थे. हालांकि, इससे पहले ही शरद पवार, अखिलेश यादव और AAP के नेताओं ने ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का नेता बनाए जाने का समर्थन किया था. इसके बाद ही केजरीवाल ने अपनी पार्टी की ओर से यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली में वो कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे.
बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस समय केजरीवाल की आप कांग्रेस के साथ किसी भी तरह का गठबंधन करने से बचना चाहती है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन करने के बावजूद, AAP को कोई खास फायदा नहीं हुआ था. बीजेपी ने दिल्ली की सातों सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि सत्ता विरोधी लहर भी मौजूद थी. ऐसे में AAP को समझ में आ गया था कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से उसे नुकसान भी हो सकता है.
अल्पसंख्यक वोटों पर नज़र
AAP को यह भली-भांति पता है कि दिल्ली में चुनावी गणित का बड़ा हिस्सा अल्पसंख्यक वोटों पर निर्भर करता है. दिल्ली में सत्तारूढ़ दल के पास हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन रहता है, और AAP इस समर्थन को गंवाना नहीं चाहती. यदि कांग्रेस से गठबंधन होता है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान AAP को यह हो सकता है कि अल्पसंख्यक वोट बंट सकते हैं. कांग्रेस पिछले दो विधानसभा चुनावों में दिल्ली में पूरी तरह से विफल रही है, और ऐसे में कांग्रेस के वोट AAP के खिलाफ जा सकते हैं. AAP के लिए यह एक जोखिम हो सकता है, क्योंकि वह जानती है कि दिल्ली में उसका प्रमुख आधार अल्पसंख्यक समुदाय है, और उसे इस वोट बैंक को बचाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है.
यहां पर यह भी ध्यान देना जरूरी है कि AAP ने दिल्ली में कांग्रेस के वोट को तोड़ा था और यही उसकी राजनीतिक सफलता का कारण बना था. इसलिए, AAP किसी भी तरह से कांग्रेस के साथ गठबंधन करके अपने वोट को बंटने का खतरा नहीं लेना चाहती.
राहुल गांधी से दूरी और ममता बनर्जी से नजदीकी
अरविंद केजरीवाल का यह भी संकेत था कि AAP ने अब राहुल गांधी से भी दूरी बना ली है. शरद पवार के घर हुई बैठक के बाद AAP ने ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन के नेता के रूप में समर्थन दिया है. यह संदेश AAP ने दिल्ली में भी दिया कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाय ममता बनर्जी के साथ खड़ी रहेगी. इसका सीधा मतलब है कि AAP ने राहुल गांधी और कांग्रेस से दूरी बनाने का फैसला किया है, और अब वह अपने राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से अलग दिशा में ले जाने की तैयारी कर रही है.
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AAP की नई रणनीति
दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं, और AAP के लिए इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण सवाल है कि वह कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. अगर पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करती है, तो उसे सीटों का बंटवारा करना पड़ेगा, जिससे AAP के लिए अपनी स्थिति कमजोर हो सकती है. इस बार AAP के पास सत्ता में बने रहने की जिम्मेदारी भी है, और वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे उसकी जीत की संभावना प्रभावित हो.
अरविंद केजरीवाल का यह ऐलान दरअसल पार्टी की एक नई रणनीति का हिस्सा है. AAP जानती है कि दिल्ली में उसे अपनी अकेली पहचान बनाए रखनी है और अगर वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करती है तो उसकी चुनावी तस्वीर भी धुंधली हो सकती है.