केजरीवाल की सियासी ‘चाल’, क्यों कांग्रेस के माथे पर दिख रही है चिंता की लकीरें?
Kejriwal Resignation: अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक सफर हमेशा से अप्रत्याशित और चौंकाने वाला रहा है. उनके पहले बेल और फिर इस्तीफे की घोषणा वाले दांव ने देशभर की राजनीति में हलचल मचा दी है. दिल्ली की सत्ता में मजबूती से जमी आम आदमी पार्टी के इस कदम से न सिर्फ बीजेपी बल्कि कांग्रेस भी सियासी रूप से बेचैन नजर आ रही है. खासकर कांग्रेस के लिए केजरीवाल का यह चाल शतरंज की बिसात पर सबसे बड़ा दांव साबित हो सकता है, जो उसे कई राज्यों में कमजोर कर चुका है.
केजरीवाल का दांव और कांग्रेस की चुनौती
कांग्रेस की मुश्किलें इस समय दोहरी हैं. एक ओर पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई दिल्ली में लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता ने उसे गोवा, गुजरात, पंजाब जैसे राज्यों में भी कड़ी टक्कर दी है. ऐसे में अगर केजरीवाल का इस्तीफे का दांव सफल होता है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है.
दिल्ली में 2013 से पहले कांग्रेस का किला मजबूत था, लेकिन केजरीवाल की पार्टी के उभार के बाद कांग्रेस की सियासी जमीन दिल्ली में बुरी तरह से खिसक गई. 2015 और फिर 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि पार्टी शून्य पर सिमट गई. कांग्रेस के वोट बैंक को आप ने तेजी से अपनी ओर खींच लिया, और इससे कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई.
यह भी पढ़ें: “सिर्फ मुरली नहीं, सुरक्षा के लिए सुदर्शन भी जरूरी”, सीएम योगी का बड़ा बयान
दिल्ली में कांग्रेस की सियासी जमीन
केजरीवाल की राजनीतिक पारी की शुरुआत ही कांग्रेस के खिलाफ हुई थी. 2013 में पहली बार दिल्ली चुनाव में 28 सीटें जीतकर केजरीवाल ने कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक को झटका दिया था. कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई, जबकि बीजेपी पहले स्थान पर थी. तब से लेकर अब तक आप ने दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस को लगभग निष्क्रिय कर दिया है.
2015 के चुनाव में आप की भारी जीत और कांग्रेस की शून्य पर सिमटने की कहानी ने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि कांग्रेस के लिए दिल्ली में वापसी मुश्किल है. केजरीवाल के हालिया इस्तीफे की घोषणा ने दिल्ली की राजनीति को फिर से बीजेपी और आप के मुकाबले में बदल दिया है, जिसमें कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही.
पंजाब में कांग्रेस की हार का कारण
दिल्ली के बाद पंजाब कांग्रेस के लिए एक बड़ा गढ़ था. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी, लेकिन 2022 के चुनावों में आप ने कांग्रेस को बाहर कर दिया. पंजाब में 92 सीटों पर जीतकर आम आदमी पार्टी ने सत्ता अपने हाथों में ले ली, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 23 प्रतिशत रह गया. यहां भी कांग्रेस को आप के हाथों बड़ी हार का सामना करना पड़ा.
गोवा और गुजरात में भी कांग्रेस की सियासी जमीन पर सेंध
केजरीवाल की पार्टी ने सिर्फ दिल्ली और पंजाब में ही नहीं, बल्कि गोवा और गुजरात में भी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं. गोवा चुनाव में आप ने 6 प्रतिशत वोट प्राप्त किए, जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 23 प्रतिशत रह गया. इसी तरह, गुजरात चुनाव में भी आप ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर राष्ट्रीय पार्टी बनने का दर्जा प्राप्त कर लिया.
हरियाणा पर केजरीवाल की नजर
अब आप की नजर हरियाणा पर है. यह केजरीवाल का होम स्टेट है. हाल के चुनावों में हरियाणा की कुछ सीटों पर आप को मिली बढ़त ने पार्टी को उम्मीद दी है कि वह यहां किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है.
हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर रही है, लेकिन केजरीवाल के इस कदम से अब राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं. हरियाणा केजरीवाल का गृह राज्य होने के कारण आप के लिए यहां जीत की संभावना मजबूत हो सकती है, और यह कांग्रेस के लिए एक और झटका साबित हो सकता है.
केजरीवाल की बेल और इस्तीफे की चाल सिर्फ एक सियासी दांव नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम है, जो कांग्रेस के सियासी भविष्य को और मुश्किलों में डाल सकता है. आप की लगातार बढ़ती ताकत और कांग्रेस के कमजोर पड़ते प्रदर्शन से यह साफ होता जा रहा है कि देश की राजनीति में अब एक नया ध्रुवीकरण हो रहा है. कांग्रेस को इस स्थिति से निपटने के लिए एक मजबूत रणनीति बनानी होगी, वरना उसका खेल और बिगड़ सकता है.