21 अगस्त को भारत बंद! जानें स्कूल कॉलेज और बैंक खुलेंगे या नहीं

भारत बंद को लेकर अभी तक किसी भी राज्‍य सरकार ने आधिकारिक तौर पर दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं. पुलिस-प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है. विरोध प्रदर्शन के दौरान जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी व्यापक कदम उठा रहे हैं.
Bharat Bandh

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bharat Bandh: आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में ‘आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति’ बुधवार को एक दिवसीय भारत बंद करेगी. इस बंद का झारखंड मुक्ति मोर्चा और बसपा ने भी समर्थन किया है. 1 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की 7 न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 बहुमत से फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा था, “सभी एससी और एसटी जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं. कुछ जातियां अधिक पिछड़ी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए – सीवर की सफाई और बुनकर का काम करने वाले. ये दोनों जातियां एससी में आती हैं, लेकिन इस जाति के लोग बाकियों से अधिक पिछड़े रहते हैं. इन लोगों के उत्थान के लिए राज्‍य सरकारें एससी-एसटी आरक्षण का वर्गीकरण (सब-क्लासिफिकेशन) कर अलग से कोटा निर्धारित कर सकती है. ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है. ” सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों ने बंद का ऐलान किया है.

यहां वह सबकुछ है जो आपको जानना चाहिए

भारत बंद को लेकर अभी तक किसी भी राज्‍य सरकार ने आधिकारिक तौर पर दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं. पुलिस-प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है. विरोध प्रदर्शन के दौरान जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी व्यापक कदम उठा रहे हैं. भारत बंद के दौरान सार्वजनिक परिवहन सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं. कुछ जगहों पर निजी दफ्तर बंद किए जा सकते हैं.

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ये सेवाएं जारी रहेंगी

अस्पताल, एम्बुलेंस और चिकित्सा सुविधाएं जैसी आपातकालीन सेवाएं चालू रहेंगी. बैंकों और सरकारी कार्यालयों को बंद करने के बारे में सरकारों की ओर से कोई घोषणा नहीं की गई है. शैक्षणिक संस्थान भी खुलेंगे. आयोजकों ने लोगों से बड़ी संख्या में और शांतिपूर्ण तरीके से भाग लेने का आग्रह किया है.

दलित और आदिवासी संगठनों की मांग

दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) ने मांगों की एक सूची जारी की है, जिसमें फैसले को ‘बदलना’ भी शामिल है. यह तर्क देते हुए कि यह निर्णय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों पर ‘खतरा’ है, संस्था ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार को इस निर्णय को ‘अस्वीकार’ कर देना चाहिए.

इसकी कुछ मांगें हैं: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए ‘न्याय और समानता’; आरक्षण पर संसद का एक नया अधिनियम; केंद्र सरकार की नौकरियों में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों पर जाति-आधारित डेटा जारी करना; उच्च न्यायपालिका में इन समूहों के लिए 50% प्रतिनिधित्व का लक्ष्य; केंद्र व राज्य सरकार की नौकरियों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में बैकलॉग रिक्तियों को भरना. कम से कम तीन राजनीतिक दलों ने बंद को अपना समर्थन दिया है. ये हैं बसपा, झामुमो और राजद. जी न्यूज के अनुसार, तीन राज्य – राजस्थान, केरल, उत्तर प्रदेश -सबसे अधिक प्रभावित होंगे.

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