मौर्य-अशोक काल से लेकर लालू-नीतीश तक…बिहार की वो बातें जो नहीं जानते होंगे आप!

अगर बिहार की राजनीति की बात करें, तो जयप्रकाश नारायण का नाम कौन भूल सकता है. 1974 में बिहार में 'समाजवादी आंदोलन' की शुरुआत की, जिसने पुरानी राजनीतिक धारा को बदल दिया. JP के नेतृत्व में छात्र और युवा वर्ग ने मिलकर बिहार में बदलाव की हवा चलाई. यह आंदोलन आपातकाल के खिलाफ था और बिहार में न केवल राजनीतिक जागरूकता का, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी एक नया दौर शुरू हुआ.
Bihar diwas 2025

बिहार दिवस 2025

Bihar Diwas 2025: बिहार…सिर्फ एक राज्य नहीं, एक इतिहास है. एक ऐसी जड़, जिसने न सिर्फ भारतीय राजनीति और समाज को आकार दिया, बल्कि पूरी दुनिया को भी अपनी ओर खींचा. आज बिहार दिवस पर जब हम इस राज्य की यात्रा पर निकलते हैं, तो बस समझिए, ये कोई सामान्य इतिहास नहीं, बल्कि एक ऐसी कहानी है, जिसे अगर सही तरीके से देखा जाए, तो यह हर किसी को प्रेरित कर सकती है. तो चलिए, जानते हैं बिहार के उन शानदार योगदानों के बारे में, जिनकी वजह से देश और दुनिया में बिहार की एक अलग पहचान है.

गौरवशाली इतिहास से लेकर सोशल चेंज तक

मगध साम्राज्य: द ग्रेट ‘मौर्य और गुप्त’ पावर

बिहार के इतिहास की जब भी बात होती है, तो मगध साम्राज्य का जिक्र सबसे पहले होता है. यही वह जगह थी जहां मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ. चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे शासकों ने भारतीय राजनीति को नया आकार दिया. और जब बात “किंग्स” की हो, तो अशोक का नाम कैसे न लिया जाए? जो ना सिर्फ भारत में, बल्कि एशिया और पूरी दुनिया में अपने शांति के सिद्धांतों के लिए जाने गए. अशोक की ही वजह से बौध धर्म का प्रचार हुआ और बोधगया, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई, बिहार का एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया.

तब की राजधानी, आज का पटना

पटलिपुत्र (जो अब पटना है) का ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा है. मौर्य और गुप्त साम्राज्य के समय यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक और सांस्कृतिक राजधानी थी. यहां की सड़कों पर राजा, सैनिक और व्यापारी चलते थे, और इसे दुनिया का सबसे संपन्न शहर कहा जाता था. साथ ही, यहां नालंदा विश्वविद्यालय था, जो उस समय दुनिया का सबसे बड़ा शैक्षिक संस्थान था. आज भी, बिहार अपनी शिक्षा के इतिहास को गर्व से याद करता है.

गजब का लोक कला और इतिहास

मधुबनी पेंटिंग – पेंटिंग के जरिए बिहार की पहचान

मधुबनी पेंटिंग. सुनते ही आपके दिमाग में एक रंगीन तस्वीर उभरने लगती है, है न? यही वो कला है जिसने बिहार को दुनिया भर में पहचान दिलाई. कागज, कपड़े या दीवारों पर की जाने वाली यह पेंटिंग ना सिर्फ सुंदर है, बल्कि इसका हर एक रंग और डिजाइन एक गहरी कहानी छुपाए हुए है.

मखाना – बिहार का सुपरफूड!

और हां, बिहार के एक और अद्भुत योगदान को कैसे भूल सकते हैं? मखाना – वो स्वादिष्ट और सेहतमंद काजू, बादाम, या अखरोट के बराबर सुपरफूड! मखाना बिहार का ऐसा आहार है, जिसने न सिर्फ भारतीय खाने के हलकों में, बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है.

बिहार के सुपौल, अररिया, सारण और सीतामढ़ी जिलों में उगाए जाने वाले मखाने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बहुत मशहूर हैं. मखाने को विशेष रूप से खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है, क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर, और ऐंटीऑक्सिडेंट्स भरपूर होते हैं. इसे लोटस सीट का बीज भी कहा जाता है और इसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है, जैसे स्नैक्स, खीर, हलवा और यहां तक कि सलाद में भी.

आज मखाना का सेवन बहुत लोकप्रिय हो चुका है, खासकर हेल्थ कंश्यस लोगों के बीच. और मखाना का ये बढ़ता हुआ कारोबार बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार और आय का एक अच्छा स्रोत भी दे रहा है. तो, बिहार ने सिर्फ अपने इतिहास और संस्कृति से ही नहीं,बल्कि इस छोटे से सुपरफूड से भी दुनिया को अपना दीवाना बना लिया है. इसलिए, अगर आपने मखाना नहीं चखा, तो ये बिहार के स्वादिष्ट और सेहतमंद तोहफे को भी एक बार जरूर ट्राय करें!

यह भी पढ़ें: कैश, तबादला और अफवाहें… जस्टिस वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, फायर ब्रिगेड के बयान में भी ‘झोल’!

महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा

बिहार का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है. 1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह किया था, जो एक बड़े आंदोलन का हिस्सा बना. यह आंदोलन आज़ादी की लहर को तेज़ी से फैलाने के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ. गांधीजी ने यहां किसानों के हक के लिए लड़ाई लड़ी, और चंपारण ने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नई दिशा दी.

राजनीति के वो ट्विस्ट्स और टर्न्स

जयप्रकाश नारायण और समाजवादी लहर

अगर बिहार की राजनीति की बात करें, तो जयप्रकाश नारायण का नाम कौन भूल सकता है. 1974 में बिहार में ‘समाजवादी आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसने पुरानी राजनीतिक धारा को बदल दिया. JP के नेतृत्व में छात्र और युवा वर्ग ने मिलकर बिहार में बदलाव की हवा चलाई. यह आंदोलन आपातकाल के खिलाफ था और बिहार में न केवल राजनीतिक जागरूकता का, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी एक नया दौर शुरू हुआ.

लालू प्रसाद यादव और पिछड़ों की राजनीति

अब बात करते हैं 1990 की, जब बिहार की राजनीति में एक और बड़ा मोड़ आया. वो थे लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने बिहार की राजनीति में गरीबों और पिछड़ों के अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ाया. लालू जी ने समाज के निचले वर्ग को मुख्यधारा में लाकर उनकी आवाज़ को बुलंद किया. हालांकि, उनके शासनकाल में कई विवाद भी सामने आए, लेकिन समाज की तस्वीर बदलने का काम उन्होंने जरूर किया. और फिर यही से शुरू हुई बिहार में “जातिवाद” की राजनीति!

नितीश कुमार का उदय और बिहार का ‘सुधार’

फिर आया 2005 का साल और नितीश कुमार का नेतृत्व. नितीश कुमार ने बिहार को ‘राजनीतिक अराजकता’ से बाहर निकालकर इसे फिर से विकास की राह पर डाला. शिक्षा, स्वास्थ्य, और सड़कों में सुधार के साथ बिहार ने फिर से अपना खोया हुआ आत्मविश्वास पाया. नितीश जी ने बिहार में कानून व्यवस्था को सुधारने और सशक्त सरकार बनाने के लिए जो काम किया, वह बेमिसाल था. बिहार में विकास की जो तस्वीर नितीश कुमार ने पेश की, वो बाकी भारतीय राज्यों के लिए एक उदाहरण बन गई.

तो क्या बिहार का आज वही पुराना बिहार है, जो कुछ साल पहले था? जवाब है, नहीं!
बिहार आज भी बहुत कुछ सुधार रहा है, और ये सुधार इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हो रहे हैं. हालांकि, यह राज्य अभी भी कई मुद्दों से जूझ रहा है, जैसे बेरोज़गारी, शिक्षा की गुणवत्ता, और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव. लेकिन, इन समस्याओं का समाधान दूर नहीं है. अगर इस राज्य की राजनीति अपनी सही दिशा में रहे, तो आने वाले समय में बिहार निश्चित रूप से भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक बन सकता है. हालांकि, जिस रफ्तार से नीतीश काम कर रहे थो, अब थोड़ा स्लो हो गए हैं.

बिहार का असल पॉवर!

बिहार की असली ताकत यहां के लोग हैं. यहां के लोग मेहनत, संघर्ष और जज़्बे के लिए जाने जाते हैं. चाहे वह बिहारी मजदूर हों जो पूरे देश में काम कर रहे हैं, या फिर राज्य के युवा जो बाहर जाकर अपना नाम रोशन कर रहे हैं, बिहार का हर नागरिक समाज और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहा है. ये लोग ही बिहार के असली ‘हीरो’ हैं, जो इस राज्य की पहचान और गौरव को बनाये हुए हैं.

आज के दिन, जब हम बिहार के इतिहास और भविष्य की बातें करते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि बिहार कभी भी पीछे नहीं था. यह राज्य हमेशा सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक बदलाव का एक प्रतीक रहा है. चाहे वो मगध साम्राज्य की गोल्डन ऐरा हो या फिर आज का बिहार, इसकी ताकत कभी कम नहीं हुई.

बिहार का सबसे बड़ा योगदान न तो उसकी सड़कों में है, न ही उसके इंफ्रास्ट्रक्चर में, बल्कि बिहार का असल योगदान है उसकी जड़ों, उसकी संस्कृति, और सबसे बढ़कर यहां के लोगों की मेहनत और जज़्बे में. तो बिहार! तेरी गाथा कभी खत्म नहीं होगी.

ज़रूर पढ़ें