लालू यादव का पुराना ‘हथियार’ अब तेजस्वी के हाथ…क्या ‘हिंदुत्व’ की काट खोज लाई RJD? इस चाल में फंस सकती है बीजेपी!

अब सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव का यह आरक्षण का मुद्दा बीजेपी और एनडीए के लिए राजनीतिक खतरा साबित होगा या फिर हिंदुत्व की राजनीति के सामने यह मुद्दा ज्यादा देर तक टिक नहीं पाएगा? इस समय, नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों ही एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन तेजस्वी यादव अपनी तरफ से हर उस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उन्हें राजनीतिक फायदा दे सकता है.
Lalu Yadav, Tejashwi Yadav

लालू यादव और तेजस्वी यादव

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया मुद्दा चर्चा में है, और वह है आरक्षण का. यह मुद्दा न केवल बिहार के बल्कि पूरे देश के लिए संवेदनशील और महत्वपूर्ण रहा है. अब, इस मुद्दे को तेजस्वी यादव ने फिर से गर्म कर दिया है, और इसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार और पीएम मोदी पर हमला करते हुए कहा है कि वे आरक्षण के अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रहे हैं. तेजस्वी का कहना है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने से हजारों युवाओं को नौकरी का नुकसान हो रहा है, और इस पर दोनों सरकारें जिम्मेदार हैं.

तेजस्वी यादव का हमला

तेजस्वी यादव ने हाल ही में आरक्षण के मुद्दे पर बयान देते हुए नीतीश कुमार और मोदी सरकार को ‘आरक्षण चोर’ कहकर संबोधित किया. उनका आरोप है कि जब नीतीश कुमार और उनके महागठबंधन ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65% किया था, तो यह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा रोक दिए जाने के कारण, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और पिछड़ा वर्ग के लाखों युवाओं को नौकरी का मौका नहीं मिला. उनके अनुसार, इस फैसले की वजह से 50000 से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा.

तेजस्वी ने TRE 3 शिक्षक भर्ती की मिसाल देते हुए कहा कि आरक्षण लागू न होने के कारण हजारों युवाओं को रोजगार का मौका नहीं मिला. यह मामला सीधे तौर पर बिहार के सामाजिक ढांचे से जुड़ा हुआ है, और तेजस्वी जानते हैं कि इस मुद्दे को उठाकर वे राजनीतिक फायदा उठा सकते हैं. यह मुद्दा जातिवाद और आरक्षण से जुड़ा हुआ है, जो बिहार के बड़े हिस्से के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है.

क्या है आरक्षण का इतिहास?

यह पहला मौका नहीं है जब आरक्षण का मुद्दा बिहार की राजनीति में चर्चा में आया है. पहले भी, जब लालू यादव मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने इस मुद्दे को अपनी राजनीति का अहम हिस्सा बनाया था. 2015 में जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात की थी, तो यह मुद्दा बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव के लिए जीत का जरिया बना था. उस समय, उन्होंने आरक्षण को लेकर बीजेपी के खिलाफ कड़ा अभियान चलाया था, और इससे महागठबंधन को भारी जीत मिली थी.

अब तेजस्वी यादव यह रणनीति अपना रहे हैं. वे मानते हैं कि हिंदुत्व की राजनीति के खिलाफ इस मुद्दे को उठाकर वे बीजेपी और एनडीए को राजनीतिक चुनौती दे सकते हैं. इस समय बिहार में हिंदुत्व की राजनीति को लेकर बीजेपी और उनके समर्थक संगठन काफी सक्रिय हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव के लिए आरक्षण का मुद्दा बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का मुकाबला करने का एक बड़ा मौका बन सकता है.

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तेजस्वी यादव की रणनीति

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस्वी यादव ने यह मुद्दा उठाकर एक लंबी सियासी प्लानिंग शुरू की है. वे चाहते हैं कि आरक्षण का मुद्दा बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव तक गर्म बना रहे. जब आरक्षण जैसी संवेदनशील और समाज को प्रभावित करने वाली बात उठती है, तो यह आसानी से जनमानस में गहरे उतर जाती है. तेजस्वी का मानना है कि अगर यह मुद्दा सही तरीके से प्रचारित किया गया, तो महागठबंधन को राजनीतिक लाभ मिल सकता है. इसके पीछे उनकी रणनीति साफ है. वे चाहते हैं कि नीतीश कुमार और मोदी सरकार पर दबाव बने और आरक्षण के अधिकार की रक्षा हो.

हिंदुत्व की राजनीति और तेजस्वी की काट

इस समय बिहार में हिंदुत्व की राजनीति एक बड़ी ताकत बनकर उभर रही है. आरएसएस, आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, और पंडित रविशंकर जैसे नेता सक्रिय हैं, और बीजेपी इस एजेंडे को आगे बढ़ा रही है. तेजस्वी यादव ने इसे हिंदुत्व की राजनीति की काट बनाने की योजना बनाई है. उनका मानना है कि आरक्षण जैसे मुद्दे को उभारकर वे बीजेपी के हिंदुत्व को चुनौती दे सकते हैं.

क्या आरक्षण का मुद्दा बीजेपी के लिए खतरा बनेगा?

अब सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव का यह आरक्षण का मुद्दा बीजेपी और एनडीए के लिए राजनीतिक खतरा साबित होगा या फिर हिंदुत्व की राजनीति के सामने यह मुद्दा ज्यादा देर तक टिक नहीं पाएगा? इस समय, नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों ही एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन तेजस्वी यादव अपनी तरफ से हर उस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उन्हें राजनीतिक फायदा दे सकता है.

बिहार की राजनीति में यह मुकाबला दिलचस्प होने वाला है. आरक्षण का मुद्दा सिर्फ एक सियासी मुद्दा नहीं, बल्कि यह समाजिक और जातिवादी विचारधारा से भी जुड़ा हुआ है. इसलिए, तेजस्वी यादव की रणनीति और बीजेपी की प्रतिक्रिया इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.

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