ओवैसी का ‘ऑफर’, लालू के सामने ‘अग्निपरीक्षा’… क्या सीमांचल बदल देगा खेल या BJP की ‘गुप्त चाल’ पड़ेगी भारी?
ओवैसी ने क्यों दिया लालू को ऑफर?
Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति में आजकल खूब हलचल मची हुई है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चिट्ठी लिखकर एक बड़ा दांव खेला है. उन्होंने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मिलकर लड़ते हैं. ये पेशकश खास तौर पर सीमांचल इलाके को ध्यान में रखकर की गई है, जहां मुस्लिम आबादी का अच्छा-खासा दबदबा है. लेकिन सवाल ये है कि ओवैसी का ये कदम सिर्फ अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश है, या फिर इसके पीछे बीजेपी की कोई ‘छिपी हुई चाल’ है? आइए, इस पूरे ‘राजनीतिक खेल’ को आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं.
सीमांचल क्यों है इतना खास?
बिहार का सीमांचल इलाका मुस्लिम राजनीति का गढ़ है. इसमें पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज जैसे जिले आते हैं. यहां कुल 24 विधानसभा सीटें हैं, और कमाल की बात ये है कि इनमें से 12 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम आबादी 50% से भी ज़्यादा है. पूरे बिहार में जहां लगभग 17.7% मुस्लिम हैं, वहीं सीमांचल में ये औसत 36-37% तक पहुंच जाता है. यही वजह है कि इन सीटों पर मुस्लिम वोटर ही जीत-हार का फैसला करते हैं.
आपको याद होगा, 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने इसी सीमांचल में 5 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. हालांकि, बाद में उनके 4 विधायक लालू की पार्टी राजद में चले गए, जिससे ओवैसी को तगड़ा झटका लगा. लेकिन फिर भी इस घटना ने साबित कर दिया कि सीमांचल में AIMIM की पकड़ मजबूत है और वो ‘सेक्युलर’ वोटों को, खासकर मुस्लिम वोटों को प्रभावित कर सकते हैं.
ओवैसी का ‘प्यार भरा’ ऑफर
ओवैसी ने अपनी चिट्ठी में साफ-साफ लिखा है कि अगर महागठबंधन (राजद, कांग्रेस और वाम दल) AIMIM को साथ लेता है, तो धर्मनिरपेक्ष वोटों को बंटने से रोका जा सकेगा. इसका सीधा मतलब है कि बीजेपी और उसके साथी एनडीए को सत्ता में आने से रोका जा सकेगा. AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान भी यही बात दोहरा रहे हैं कि उनका मकसद बीजेपी को रोकना है. लेकिन इस पेशकश के पीछे कुछ बड़े चुनावी दांव-पेंच हैं.
सीमांचल पर मजबूत पकड़
2020 में 5 सीटें जीतना और 3 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहना बताता है कि सीमांचल में AIMIM की अच्छी पैठ है. अगर गठबंधन हुआ, तो उन्हें यहां कुछ सीटें मिल सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत और बढ़ेगी.
‘वोट कटवा’ का दाग धोना
2020 में ओवैसी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने ‘वोट कटवा’ की भूमिका निभाई, जिससे महागठबंधन को कई सीटों पर नुकसान हुआ. अब वे ये दाग धोना चाहते हैं.
पुराने झटके से उबरना
4 विधायकों के राजद में जाने से ओवैसी को जो नुकसान हुआ था, वे गठबंधन के जरिए अपनी साख बचाना और सीमांचल में फिर से अपनी धाक जमाना चाहते हैं.
सीमांचल से बाहर भी पैठ
ओवैसी ने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी सिर्फ सीमांचल ही नहीं, बल्कि मिथिलांचल और बिहार के दूसरे हिस्सों में भी उम्मीदवार उतारेगी. अगर गठबंधन नहीं हुआ, तो वे 50 सीटों पर अकेले लड़ने की बात कह चुके हैं.
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क्या ओवैसी को गले लगाएंगे लालू और तेजस्वी ?
लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के लिए ओवैसी का ये ऑफर ‘दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है’ वाली स्थिति है. एक तरफ, AIMIM के साथ आने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा रुक सकता है, जो महागठबंधन के लिए फायदेमंद होगा. लेकिन दूसरी तरफ, राजद को डर है कि अगर सीमांचल की सीटें AIMIM को दे दी गईं, तो उनका अपना प्रभाव कम हो सकता है.
कहीं न कहीं, इसलिए राजद नेता मनोज झा ने कहा है कि अगर ओवैसी बीजेपी को हराना चाहते हैं तो बिहार में चुनाव ना लड़कर AIMIM तेजस्वी यादव की ज़्यादा मदद कर सकती है.
तेजस्वी यादव इन दिनों वक्फ बिल को चुनावी मुद्दा बनाकर मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में लगे हैं. उनकी कोशिश लालू यादव के पुराने ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत करने की है. अगर AIMIM गठबंधन में आती है, तो सीमांचल में राजद की सीटें कम हो सकती हैं, जो तेजस्वी के लिए जोखिम भरा होगा. फिलहाल, तेजस्वी ने ओवैसी के प्रस्ताव पर चुप्पी साध रखी है. कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि राजद अकेले ही मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश करेगा, ताकि सीमांचल पर अपनी पकड़ बनी रहे.
क्या ओवैसी का दांव BJP के काम आएगा?
बिहार की राजनीति में हमेशा ये सवाल उठता रहा है कि क्या ओवैसी की एंट्री बीजेपी को फायदा पहुंचाती है? कुछ लोग कहते हैं कि AIMIM के आने से सेक्युलर वोट बंट जाता है, और इसका सीधा फायदा एनडीए को मिलता है. 2020 के चुनाव में भी ऐसा देखने को मिला था. हाल ही में बीजेपी ने एक नया खेल खेला है. 32 लाख गरीब मुस्लिम परिवारों को ईद पर ‘सौगात-ए-मोदी’ दिया गया. ये कदम मुस्लिम वोटरों को, खासकर पसमांदा मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश थी.
कुछ राजनीतिक पंडित ये भी कहते हैं कि अगर AIMIM अकेले चुनाव लड़ती है, तो वो ‘वोट कटवा’ का रोल निभा सकती है, जिससे बीजेपी को फायदा होगा. दूसरी तरफ, ओवैसी का महागठबंधन से गठबंधन का ऑफर बीजेपी के लिए एक चुनौती भी है, क्योंकि इससे सेक्युलर वोट एकजुट हो सकते हैं.
ओवैसी कैसे बढ़ा रहे बिहार में अपना कद?
ओवैसी बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कई चालें चल रहे हैं. ओवैसी की पूरी रणनीति सीमांचल पर टिकी है, जहां उनकी पार्टी का जनाधार मजबूत है. अगर राजद और कांग्रेस मान जाती है, तो AIMIM को कुछ सीटें मिलेंगी, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ेगी.
अगर बात नहीं बनी, तो ओवैसी तीसरा मोर्चा भी बना सकते हैं, जैसा 2020 में उन्होंने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट के साथ किया था, तब 20 सीटों पर लड़कर 5 जीती थीं. ओवैसी वक्फ बिल और NRC जैसे मुद्दों को उठाकर मुस्लिम वोटरों का ध्यान खींच रहे हैं.
अगर राजद और AIMIM एक साथ आते हैं, तो सेक्युलर वोटों का बंटवारा रुक सकता है, जिससे नीतीश कुमार और बीजेपी को टक्कर मिलेगी. लेकिन अगर गठबंधन नहीं हुआ, तो AIMIM अकेले लड़कर राजद के वोट काट सकती है. बीजेपी को फायदा मिल सकता है अगर AIMIM और राजद का गठबंधन न हो, क्योंकि मुस्लिम वोट बंटेंगे. साथ ही, उनकी ‘सौगात-ए-मोदी’ जैसी योजनाएं मुस्लिम वोटरों को लुभा सकती हैं.
सीमांचल में विकास एक बड़ा मुद्दा है. तेजस्वी यादव ने सीमांचल डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाने का वादा किया है, जबकि ओवैसी मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर जोर दे रहे हैं. अब देखना ये होगा कि जनता किसका साथ देती है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल की राजनीति गेमचेंजर साबित हो सकती है. अब गेंद लालू यादव के पाले में है, और देखना बाकी है कि वो इस ऑफर को मानते हैं या ओवैसी को अकेले ही मैदान में उतरना होगा.