इफ्तार का ‘वक्फ’ कनेक्शन! क्या इस बार ‘कुफी’ नहीं पहन पाएंगे CM नीतीश? मुस्लिम संगठनों ने दिया बड़ा झटका

बिहार विधानसभा चुनाव में इस विवाद का सामाजिक और राजनीतिक असर देखना दिलचस्प होगा. जहां एक तरफ नीतीश कुमार की साख अल्पसंख्यक समुदाय में दांव पर है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल, विशेषकर आरजेडी, इस मौके का फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेंगे. मुस्लिम वोट बैंक को लेकर इस बायकॉट का गहरा असर हो सकता है, खासकर चुनावी मौसम में जब हर वोट की कीमत बढ़ जाती है.
Nitish Kumar

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

Bihar Politics: चुनावी साल में बिहार की राजनीति में हर दिन कुछ नया देखने को मिल रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिनका राजनीतिक करियर हमेशा सेक्युलर छवि और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ मेलजोल की वजह से चर्चित रहा है, अब एक बड़े संकट से जूझ रहे हैं. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर क्या है ये संकट? दरअसल, बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र, मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बायकॉट कर दिया है.

क्या है बायकॉट की वजह?

नीतीश कुमार पर ये दबाव बढ़ने का कारण है वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024. जेडीयू ने केंद्र सरकार के इस विधेयक का समर्थन किया है, जिसे मुस्लिम संगठनों ने संविधान विरोधी और उनके धार्मिक अधिकारों के खिलाफ बताया है. प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध करते हुए नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी से दूरी बनाने का ऐलान किया.

इस विधेयक में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण, विवाद निपटान प्रक्रिया और वक्फ बोर्ड की संरचना को लेकर संशोधन किए गए हैं. मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह विधेयक उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने वाला कदम हो सकता है.

किस-किसने लिया बायकॉट का फैसला?

इस बायकॉट में शामिल प्रमुख संगठनों में जमीयत उलेमा-ए-हिंद, इमारत-ए-शरिया, जमात-ए-इस्लामी, खानकाह मोजीबिया, और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संस्थान शामिल हैं. इन संगठनों ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि जब तक नीतीश कुमार वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करेंगे, तब तक वे उनके इफ्तार कार्यक्रमों से दूर रहेंगे.

इमारत-ए-शरिया के जनरल सेक्रेटरी मुफ्ती सईदुर्रहमान ने कहा, “नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में हम शामिल नहीं होंगे, क्योंकि उनकी पार्टी का समर्थन उन कदमों का है, जो हमारे समुदाय के हित में नहीं हैं.”

आरजेडी का रुख

आरजेडी ने मुस्लिम संगठनों के इस फैसले का स्वागत किया है. आरजेडी के प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा, “जेडीयू मुस्लिमों के साथ दोहरा मापदंड अपना रही है. एक तरफ वक्फ बिल का समर्थन और दूसरी तरफ इफ्तार की दावत देना, यह असमंजस का संकेत है.”

आरजेडी ने यह भी आरोप लगाया कि नीतीश कुमार का इफ्तार आयोजन केवल सियासी नाटक है, ताकि वो मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ खींच सकें, जबकि असल में उनका समर्थन बीजेपी और अन्य हिंदुत्ववादी दलों के एजेंडों के साथ है.

जेडीयू ने इस पूरे विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि नीतीश कुमार की सेक्युलरिज्म के प्रति प्रतिबद्धता जगजाहिर है. जेडीयू प्रवक्ता नवल शर्मा ने कहा, “नीतीश कुमार ने हमेशा अल्पसंख्यकों के हित में काम किया है और वे पिछले कई वर्षों से इफ्तार पार्टी का आयोजन कर रहे हैं. ये कोई नई बात नहीं है.”

बीजेपी ने मुस्लिम संगठनों के बायकॉट को निंदनीय बताते हुए कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की अवैध कब्ज़ों से रक्षा करना है, न कि किसी समुदाय के अधिकारों को छीनना. बीजेपी प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा, “मुस्लिम समुदाय को इस विधेयक को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है. यह उनके हितों की रक्षा करेगा.”

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विधानसभा चुनाव पर ‘इफ्तार’ का असर?

बिहार विधानसभा चुनाव में इस विवाद का सामाजिक और राजनीतिक असर देखना दिलचस्प होगा. जहां एक तरफ नीतीश कुमार की साख अल्पसंख्यक समुदाय में दांव पर है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल, विशेषकर आरजेडी, इस मौके का फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेंगे. मुस्लिम वोट बैंक को लेकर इस बायकॉट का गहरा असर हो सकता है, खासकर चुनावी मौसम में जब हर वोट की कीमत बढ़ जाती है.

आखिरकार, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि बिहार चुनाव 2025 अब केवल जाति-धर्म और क्षेत्रीय राजनीति के मुद्दे पर नहीं, बल्कि संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के सवाल पर भी लड़ें जाएंगे. बिहार के चुनावी मैदान में जितनी तेज़ी से बयानों की सियासत हो रही है, उतनी ही तेज़ी से मुस्लिम संगठनों का इफ्तार पार्टी का बायकॉट नीतीश कुमार के लिए नई राजनीतिक चुनौतियों को जन्म दे सकता है.

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