‘राम’, ‘राष्ट्रवाद’ और ‘मोदी मैजिक’…45 साल में ऐसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई BJP
पीएम मोदी और अमित शाह
BJP Foundation Day 2025: 6 अप्रैल 1980 को एक छोटे से दफ्तर में कुछ लोग इकट्ठा हुए. माहौल में उम्मीद थी, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं. उस दिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का जन्म हुआ. आज, 45 साल बाद, यह न सिर्फ भारत की सबसे ताकतवर सियासी ताकत है, बल्कि 18 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भी बन चुकी है. लेकिन यह सफर आसान नहीं था. इसमें उतार-चढ़ाव, ड्रामा, और सनसनी थी. तो चलिए, इस कहानी को विस्तार से जानते हैं.
जनसंघ से बीजेपी तक का सफर
बीजेपी की कहानी को समझने के लिए हमें 1951 में जाना होगा. उस वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी नाम के एक शख्स ने भारतीय जनसंघ की नींव रखी. मुखर्जी कोई साधारण नेता नहीं थे. वे बंगाल के बड़े शिक्षाविद् और देशभक्त थे. उनका सपना था एक ऐसा भारत, जो अपनी संस्कृति और पहचान पर गर्व करे. उस दौर में कांग्रेस का ‘सबको साथ लेकर चलो’ वाला नारा चल रहा था, लेकिन मुखर्जी को लगता था कि इसमें हिंदुओं की आवाज दब रही है. उनका एक बड़ा मुद्दा था कश्मीर. उन्होंने ‘एक देश में दो विधान, दो निशान’ का विरोध किया.
जनसंघ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का साथ मिला, जो आज भी बीजेपी का वैचारिक आधार है. आरएसएस के स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों को जोड़ते थे. 1950 और 60 के दशक में जनसंघ धीरे-धीरे मजबूत हुआ, लेकिन यह कांग्रेस के सामने अभी भी छोटा खिलाड़ी था. फिर आया 1975 का आपातकाल. इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र को कुचल दिया. जनसंघ ने बाकी दलों के साथ मिलकर इसका विरोध किया. 1977 में आपातकाल हटा, और जनता पार्टी के बैनर तले कांग्रेस को हराया गया. जनसंघ भी इसमें शामिल था. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी.
जनता पार्टी में अंदरूनी झगड़े शुरू हो गए. 1980 तक गठबंधन टूट गया. जनसंघ के नेताओं ने सोचा, “अब अपनी अलग राह बनानी होगी.” बस, यहीं से बीजेपी की कहानी शुरू हुई. 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और कुछ साथियों ने नई पार्टी बनाई. नाम रखा, भारतीय जनता पार्टी. मकसद साफ था-राष्ट्रवाद, विकास, और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाना. लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी.
बीजेपी को लगा पहला झटका
1984 में बीजेपी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा. अटल जी जैसे करिश्माई नेता थे, लेकिन उस वक्त देश इंदिरा गांधी की हत्या के गम में डूबा था. सहानुभूति की लहर में कांग्रेस ने 414 सीटें जीत लीं. बीजेपी का स्कोर? सिर्फ 2 सीटें. लोग हंसने लगे, “यह पार्टी तो खत्म हो गई.” लेकिन बीजेपी के नेताओं ने हार नहीं मानी. अटल जी ने कहा, “अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा.” और सच में सूरज निकलने वाला था.
पार्टी ने अपने संगठन पर ध्यान दिया. आरएसएस के स्वयंसेवकों ने गांव-गांव, गली-गली में मेहनत की. बीजेपी ने छोटे-छोटे मुद्दों को उठाया—किसानों की बात, महंगाई का विरोध, और हिंदू पहचान को मजबूत करने की कोशिश. धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे. 1989 में पार्टी ने 85 सीटें जीतीं. यह एक बड़ा संकेत था कि बीजेपी अब खेल में है.
यह भी पढ़ें: ‘लोकपाल’, ‘अनुच्छेद 370’ के बाद अब ‘वक्फ बिल’… एक ही दिन में 14 घंटे तक हुई बहस, लोकसभा में बना नया रिकॉर्ड!
राम मंदिर: वो क्लाइमेक्स जो सब बदल गया
1990 का दशक बीजेपी के लिए वो मोड़ था, जिसने इसे सुपरस्टार बना दिया. बात थी अयोध्या की. राम मंदिर का मुद्दा सदियों से दबा हुआ था. बीजेपी ने इसे उठाया और कहा, “यह हमारी आस्था का सवाल है.” लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली. यह कोई साधारण यात्रा नहीं थी. लाखों लोग सड़कों पर उतर आए. ढोल-नगाड़े बजे, जय श्री राम के नारे गूंजे. पूरे देश में हलचल मच गई.
इस आंदोलन ने बीजेपी को नई ताकत दी. 1991 के चुनाव में पार्टी 120 सीटों तक पहुंच गई. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाई गई. यह घटना विवादास्पद थी, लेकिन बीजेपी की लोकप्रियता आसमान छूने लगी. 1996 में पहली बार बीजेपी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल जी प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन कमजोर था. सरकार सिर्फ 13 दिन चली. लोग कहने लगे, “बीजेपी को सत्ता चलाना नहीं आता.” लेकिन यह तो बस ट्रेलर था—असली फिल्म अभी बाकी थी.
अटल का जादू
1998 में बीजेपी ने सबक सीखा. अटल जी ने गठबंधन की राजनीति को समझा और एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) बनाया. 13 पार्टियों का साथ मिला, और बीजेपी सत्ता में आई. यह पहली बार था जब पार्टी ने पूरे 5 साल सरकार चलाई. इस दौरान कई बड़े धमाके हुए.
पोखरण परमाणु परीक्षण: मई 1998 में भारत ने परमाणु बम का टेस्ट किया. दुनिया हैरान रह गई. अमेरिका ने सख्ती दिखाई, लेकिन भारत ने कहा, “हम अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे.”
कारगिल की जीत: 1999 में पाकिस्तान ने घुसपैठ की, लेकिन भारतीय सेना ने उन्हें धूल चटा दी. अटल जी का नेतृत्व चमक उठा.
हाईवे और अर्थव्यवस्था: गोल्डन क्वाड्रिलेटरल प्रोजेक्ट शुरू हुआ, जिसने देश को सड़कों से जोड़ा. मोबाइल क्रांति भी इसी दौर में शुरू हुई.
1999 में फिर चुनाव हुए. बीजेपी ने 182 सीटें जीतीं और एनडीए के साथ सरकार बनाई. अटल जी की सादगी और शायरी ने लोगों का दिल जीत लिया. लेकिन 2004 में एक ट्विस्ट आया, बीजेपी हार गई. ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा उल्टा पड़ गया. लोग कहने लगे, “शहर चमक रहे हैं, लेकिन गांव अभी भी अंधेरे में हैं.”
विपक्ष के दिन
2004 से 2014 तक बीजेपी विपक्ष में रही. कांग्रेस की अगुवाई वाला यूपीए सत्ता में था. इस दौरान बीजेपी को कई झटके लगे. 2009 में फिर हार, बड़े नेताओं में मतभेद. लेकिन यह इंटरवल बीजेपी के लिए तैयारी का वक्त था. संगठन को मजबूत किया गया. आरएसएस ने जमीनी स्तर पर मेहनत की.
इसी बीच एक नया हीरो उभरा, नरेंद्र मोदी. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने विकास का ऐसा मॉडल पेश किया, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया. 2002 के दंगों ने उन्हें विवादों में डाला, लेकिन उनकी मेहनत और विजन ने बीजेपी को नई उम्मीद दी. 2013 में उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाया गया. कई नेताओं को यह पसंद नहीं आया, लेकिन मोदी का जादू चलने वाला था.
मोदी मैजिक
2014 का चुनाव एक तूफान था. मोदी ने ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा दिया. सोशल मीडिया पर धूम मची. चाय की दुकान से पीएम की कुर्सी तक का उनका सफर लोगों को प्रेरणा देने लगा. नतीजा? बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं.30 साल बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला. मोदी सरकार ने बड़े-बड़े फैसले लिए.
स्वच्छ भारत: गांव-गांव में शौचालय बने.
मेक इन इंडिया: कारोबार को बढ़ावा.
डिजिटल इंडिया: इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का जोर.
नोटबंदी और जीएसटी: ये फैसले विवादास्पद रहे, लेकिन चर्चा में रहे.
2019 में बीजेपी ने और बड़ा धमाका किया. 303 सीटें. धारा 370 हटाना, राम मंदिर का फैसला, और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदमों ने पार्टी को और मजबूत किया.
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
आज बीजेपी के 18 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं, यह अमेरिका की आधी आबादी से भी ज्यादा है.
संगठन की ताकत: बूथ लेवल तक कार्यकर्ता.
आरएसएस का साथ: विचारधारा और मेहनत का कॉम्बो.
सोशल मीडिया: फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप पर बीजेपी का दबदबा.
मोदी का करिश्मा: एक चेहरा, जो देश-विदेश में छाया हुआ है.
बीजेपी ने दक्षिण और पूर्वोत्तर में भी अपनी जड़ें जमाईं. कर्नाटक, असम, त्रिपुरा जैसे राज्य इसके गढ़ बने.
2025 का सीन
2025 में बीजेपी चुनौतियों और मौकों के बीच खड़ी है.आयुष्मान भारत, उज्ज्वला जैसी योजनाएं चल रही हैं. विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी का लक्ष्य 2029 तक सत्ता में बने रहना है. इस बीच बिहार और बंगाल में विधानसभा चुनाव भी होने हैं.
बीजेपी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. दो सीटों से शुरू होकर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने तक का यह सफर मेहनत, जुनून और रणनीति का नतीजा है. 6 अप्रैल को जब बीजेपी अपना 45वां स्थापना दिवस मनाएगी, तो यह सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि एक प्रेरणा होगी.